बुधवार

सावन सबको भाए

सावन सबको भाए
शीर्षक- सावन सबको भाए सावन का यह मास सुहाना सबके मन को भाय। पल में उजला पल अंधेरा दिन में सपन दिखाय। जल भर-भर ले आए बदरा धरती पर बरसाय। प्यास बुझी तपती धरती की हरियाली मुसकाय। दादुर मोर पपीहा बोले गीत मिलन के गाय। स्वाति बूंद की चाह लिए अब पपिहा आस लगाय। धानी चूनर...

शनिवार

सुविधाओं में सिमटते रिश्ते

सुविधाओं में सिमटते रिश्ते
आज जिंदगी चलती नहीं दौड़ती है, लोग  बोलते नहीं बकते हैं, आज के दौर में मानव जितनी तेजी से आगे बढ़ता जा रहा है, उतनी ही तेजी से अपना बहुत कुछ पीछे छोड़ता जा रहा है और विडंबना यह है कि उसे इसका आभास तक नहीं। जब सुविधाएँ कम थीं तब आपसी मेलजोल अधिक था, जैसे-जैसे सुविधाएँ...