बुधवार

स्मृतियाँ

स्मृतियाँ

स्मृतियों का खजाना, 

सदा मेरे पास होता है।

घूम आती हूँ उन गलियों में, 

जब भी मन उदास होता है।

माँ की वो पुरानी साड़ी का पल्लू,

जब मेरे हाथ होता है।

माँ के ममता से भीगे आँचल का,

स्नेहिल अहसास होता है।


बचपन का दामन छूट गया,

पर स्मृतियों ने साथ निभाया है।

जब भी अकेली पाती हूँ खुद को,

स्मृतियों ने मन बहलाया है।

बचपन के सब सखा सहेली, 

स्मृतियों में आ जाते हैं।

घायल मन के जज्बातों को, 

स्नेहसिक्त कर जाते हैं।


मालती मिश्रा  'मयंती'✍️

गुरुवार

जीने का विज्ञान- योग



पार्थ दवाइयों का लिफाफा थैले में डालता हुआ मेडिकल स्टोर से बाहर निकला और वहीं सामने खड़ी अपनी मोटर साइकिल की ओर बढ़ा तभी उसे लगा कि किसी ने उसे पुकारा है, वह वहीं ठिठक गया और इधर-उधर देखने लगा। 

पार्थ!!

दुबारा वही आवाज कानों में पड़ी, इस बार आवाज साफ सुनाई पड़ी तो वह आवाज की दिशा में देखने लगा। सड़क के दूसरी ओर से अर्णव आती-जाती कारों और मोटर साइकिलों से बचता-बचाता उसकी ओर ही आ रहा था। 

"हलो अर्णव! कैसा है तू?" 

अर्णव के पास आते ही पार्थ हाथ आगे बढ़ाते हुए बोला।

"मैं तो बिल्कुल ठीक हूँ, पर तुझे क्या हो गया है? पहचान में ही नहीं आ रहा, कितना मोटा हो गया है, तोंद निकल आई है यार!" 

अर्णव हैरानी से उसे ऊपर से नीचे तक देखता हुआ बोला।

"क्या करूँ यार सब लॉकडाउन की देन है, कई महीनों से घर में बैठे रहे कहीं आना-जाना होता नहीं था तो मोटा तो होना ही था और अब तो थायराइड भी हो गया तो वैसे भी कंट्रोल करना मुश्किल हो रहा है। पर तू बिल्कुल फिट है बल्कि पहले से भी ज्यादा स्मार्ट और फिट लग रहा है कैसे?" पार्थ मायूसी भरे स्वर में बोला।


"अगर मैं कहूँ कि ये भी लॉकडाउन की देन है तो गलत नहीं होगा।"

"मतलब?"

"घर चल मैं सब बताता हूँ।" कहते हुए अर्णव पार्थ की मोटर साइकिल पर बैठ गया और दोनों पार्थ के घर की ओर चल दिए।


"हाँ तो अब बता कि लॉकडाउन में तूने ऐसा क्या किया जिससे तू इतना स्वस्थ है?"

पानी पीकर गिलास मेज पर रखते हुए पार्थ बोला।

"योगा।" अर्णव बोला।

"क्या?? योगा!" पास ही खड़ी पार्थ की मम्मी की आवाज़ में हैरानी झलक रही थी।

"जी आंटी जी योगा। उस खाली समय का मैंने सदुपयोग किया और योग सीखा। योग के बहुत फायदे होते हैं, हमारे शरीर में स्फूर्ति बनी रहती है, हम बीमार भी नहीं पड़ते। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि अगर पार्थ ने भी योगा किया होता तो यह भी पूरी तरह से सेहतमंद होता। 

क्यों पार्थ! तू तो जानता है न कि मोटापा कई बीमारियों की जड़ है?" अर्णव पार्थ से मुखातिब होते हुए बोला।

"न सिर्फ जानता हूँ बल्कि भोग रहा हूँ। थायराइड, कब्ज, थकान, आलस्य और न जाने कितनी परेशानियाँ हमेशा मुझे घेरे रहती हैं। तू ही बता क्या कोई योग है जो मेरी समस्या हल कर दे?" पार्थ विनयपूर्ण लहजे में बोला। 


"जरूर यार, बल्कि मैं तो कहूँगा कि योग ही तेरी सारी समस्याओं का समाधान है।"


"योग भी एक प्रकार का व्यायाम ही तो है, इससे बीमारी कैसे ठीक हो सकती है?" पार्थ की मम्मी बोलीं।

"आंटी जी योग सिर्फ व्यायाम नहीं है बल्कि यह  व्यावहारिक स्तर पर, शरीर, मन और भावनाओं को संतुलित करने और तालमेल बनाने का एक साधन है। सार्वभौमिक चेतना के साथ व्यक्तिगत चेतना का एक होना ही योग है। अगर हम कहें कि योग जीवन को सही तरीके से जीने का विज्ञान है, तो गलत न होगा। इसे हमें अपने रोज के क्रियाकलापों में शामिल करना चाहिए।

गुरुदेव श्री श्री रविशंकर जी कहते हैं "योग सिर्फ व्यायाम और आसन नहीं है, यह भावनात्मक एकीकरण और रहस्यवादी तत्व का स्पर्श लिए हुए एक आध्यात्मिक ऊँचाई है, जो आपको सभी कल्पनाओं से परे की कुछ एक झलक देता है।"


"अच्छा! तो मुझे विस्तारपूर्वक ठीक से बता कि मुझे कैसे और कौन सा योग करना चाहिए, जिससे मेरी समस्या का समाधान हो सके और इससे क्या-क्या फायदे होंगे?" पार्थ ने कहा।


"वैसे तो योग के सभी आसन हमारे लिए लाभदायक ही होते हैं परंतु तेरे लिए तो 'मत्स्यासन' सबसे अधिक लाभदायक है।" अर्णव ने कहा।


"मत्स्यासन! इसका क्या मतलब होता है और ये मेरे लिए कैसे लाभकारी हो सकता है?"


"सुन! मत्स्यासन संस्कृत शब्द 'मत्स्य' से निकला है। इस आसन में व्यक्ति के शरीर का आकार मछली जैसा प्रतीत होता है इसीलिए इसे मत्स्यासन कहते हैं, इसे अंग्रेजी में Fish Yoga Pose भी कहते हैं। यह योग गले और थायराइड के लिए अति उत्तम है, यह पेट की चर्बी को कम करता है, कब्ज़ को खत्म करता है, फेफड़ों और सांस के रोग को भी ठीक करता है। इतना ही नहीं मधुमेह के मरीज के लिए इन्सुलिन स्राव में भी मददगार साबित होता है और साथ ही यह रीढ़ को लचीला बनाता है और घुटनों और कमर दर्द से भी राहत दिलाता है। इसके और भी कई फायदे होते हैं बस आवश्यकता है कि इसे सही विधि से किया जाए।" 

अर्णव ने पार्थ और उसकी मम्मी को समझाते हुए बताया।


"सचमुच यार सुनकर तो ऐसा लग रहा है कि यही मेरी परेशानियों का इलाज है। ये आसन कैसे होता है, क्या तू मुझे सिखाएगा?" 

पार्थ विनय पूर्वक बोला।


"हाँ-हाँ क्यों नहीं! अभी बताता हूँ तू ध्यान से सुन, यह आसन पीठ के बल लेटकर किया जाता है, इसके लिए पहले पद्मासन में बैठ जा फिर धीरे-धीरे पीछे की ओर झुकते हुए पीठ पर लेट जाना, पैरों को पूर्ववत् स्थिति में रखना और फिर बाएँ पैर को दाएँ हाथ से और दाएँ पैर को बाएँ हाथ से पकड़ना लेकिन ध्यान रहे कि कोहनियों को जमीन पर ही टिका रहने देना और घुटने भी जमीन से सटे होने चाहिए। अब इसी स्थिति में साँस लेते हुए सिर को पीछे की ओर लेकर जाना और फिर धीरे-धीरे साँस लो और धीरे-धीरे साँस छोड़ो। इस अवस्था को अपनी सहूलियत के हिसाब से तब तक रखो जब तक रख सको फिर एक लंबी साँस छोड़ते हुए अपनी पहले वाली अवस्था में आ जाओ। इसे एक चक्र कहते हैं, इसी प्रकार तीन से पाँच चक्र रोज करो।"


"अरे वाह अर्णव ये तूने बहुत अच्छी चीज मुझे बताई, मैं इसे कल से ही शुरू कर दूँगा लेकिन पता नहीं ठीक से कर पाऊँगा या...." पार्थ हिचकते हुए बोला।


"एक रास्ता है जिससे तुझसे कोई गलती भी नहीं होगी और नियमितता भी बनी रहेगी।" अर्णव पार्थ की बात को बीच में ही काटकर बोला।


"वो क्या?" 

"कल से रोज सुबह तू मेरे घर आ जाया कर हम दोनों साथ में योग किया करेंगे।"


"हाँ बेटा ये ठीक रहेगा तुम अर्णव के घर चले जाया करो, साथ में करोगे तो गलती भी नहीं होगी।" पार्थ की मम्मी जो अभी तक चुपचाप दोनों की बातें सुन रही थीं, बोल पड़ीं।


"तो तय रहा पार्थ तू कल से मेरे घर आ रहा है। अभी मैं चलता हूँ। नमस्ते आंटी जी।" कहते हुए अर्णव बाहर की ओर चल दिया। 

पार्थ अपनी दवाइयों को मेज पर फैलाकर उन्हें बड़े ध्यान से देख रहा था और मन ही मन सोच रहा था कि अब मुझे नियमित रूप से  योगाभ्यास करके अपनी बीमारियों को खत्म करना है और जल्द ही इन दवाइयों से छुटकारा पाना है।


©मालती मिश्रा 'मयंती'✍️


मंगलवार

राजनीति का शिकार भारत का किसान

राजनीति का शिकार भारत का किसान

 

राजनीति का शिकार भारत का किसान

'किसान'..... इस साधारण से शब्द में एक ऐसी महान छवि समाई हुई है जो संपूर्ण मानव समाज का ही नहीं बल्कि पशु-पक्षियों का भी पोषक है, जो अन्नदाता है। जो स्वयं भूखा रहकर औरों का पेट भरता है, जो स्वयं चीथड़े लपेट औरों के लिए कपास और रेशम तैयार करता है। 'जय जवान जय किसान' का नारा यही दर्शाता है कि ये दोनों ही समाज और देश के वो कर्णधार हैं जिनके कंधों पर देश का रक्षण और भरण-पोषण टिका हुआ है, जिनके कारण ही देश का अस्तित्व कायम हैं बाकी सब तो उत्कृष्टता बढ़ाने की सामग्री हैं। यदि घर की दीवारें ही न हों तो सजाएँगे किन्हें?

सदियों से यही चला आ रहा है किसान अपने दिन का आराम और रात की नींदें कुर्बान करके अपनी फसल को पुत्रवत् पोषित करता है।

वह मौसम की हर मार से उसे बचाने का प्रयास करता है। पूस-माघ की कड़कड़ाती सर्दी में भी यदि उसे आभास हो कि सुबह पाला पड़ने वाला है तो उस पाले से अपनी फसल को बचाने के लिए वह हड्डियाँ गलाने वाली सर्दी की परवाह किए बिना रात को खेतों में पानी भरता है ताकि सुबह का पाला उसकी फसल खराब न कर सके। उस भयंकर सर्दी में भी वह फसल की रखवाली के लिए घर की छत का आनंद छोड़कर खेतों में पड़ी टूटी-फूटी झोपड़ी में सोता है, हिंदी के महान साहित्यकार 'मुंशी प्रेमचंद' की कहनी 'पूस की रात' में किसान की इसी दशा का वर्णन मिलता है। कठोर परिश्रम और देख-रेख के बाद जब वह अंकुर निकलते देखता है तो इस प्रकार प्रसन्न होता है जैसे एक पिता अपने पुत्र को पहली बार देखकर प्रसन्न होता है। लहलहाती फसल को देखकर उसकी छाती उसी प्रकार गर्व से फूल जाती है जिस प्रकार अपने पुत्र की तरक्की से एक पिता की।
उस फसल को देखकर उसे अपनी पत्नी की वह सूती साड़ी याद आती है जो कई जगह से सिलकर पहनने लायक बनाई गई है, उसे अपनी पत्नी के लिए नई साड़ी की उम्मीद उस फसल में नजर आती है, अपने बच्चों की कई महीने से रुकी हुई स्कूल की फीस और किताबें तथा बूढ़े पिता के टूटे हुए चश्में की उम्मीद नजर आती है। बिटिया की शादी के लिए बचत करने के सपने भी आँखों में पलने लगते है। वह फसल कटकर घर आने से पहले पूरे परिवार के महीनों से रुकी जरूरतों के पूरा होने की उम्मीद जगा देती है, इसीलिए फसल को किसी भी प्रकार की क्षति से बचाने के लिए, उसे समय पर पानी और खाद मिले इसके लिए किसान हर संभव प्रयास करता है यहाँ तक कि उसके खाद, सिंचाई आदि की व्यवस्था के लिए फसल पकने पर कर्ज चुका देने की पूरी आशा के साथ वह कर्जदार भी बन जाता है।
खेत की जोताई, बीज रोपाई, सिंचाई ,फसल की खाद आदि से लेकर अनाज घर तक लाने के लिए वह न जाने कितनी नींदें और कितने समय का भोजन भी त्याग चुका होता है परंतु जब उसकी आवश्यकताओं के पूरा होने का समय आता है तो इसी फसल को तैयार होने तक लिया गया कर्ज उसके समक्ष मुँह बाए खड़ा होता है। वह चाह कर भी कर्ज से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाता, चाह कर भी अपने सपने पूरे करना तो दूर अपनी आवश्यक आवश्यकताएँ भी पूरी नहीं कर पाता। उसी फसल में से उसे अगली फसल में लगने वाला खर्च भी निकालना होता है और पूरे साल परिवार का भरण-पोषण भी करना है सामाजिक और पारिवारिक जिम्मेदारियाँ भी पूरा करना है ऐसे में यदि अनाज का उचित मूल्य न मिल सके या उसे बेचने की सही सुविधा का अभाव हो तो वह तो वैसे ही असहाय हो जाता है।
हमारे हिंदी साहित्यकारों ने अपने साहित्य में किसानों की जिस दयनीय दशा का उल्लेख किया है माना कि वर्तमान समय में किसानों की स्थिति उससे भिन्न है परंतु यह भी सत्य है कि पूर्णतया भिन्न नहीं है, किसान आज भी कर्ज के बोझ तले दबा है, किसान आज भी मौसम की मार झेलता है, वह पहले मदद के लिए साहूकारों का मुँह देखता था, वह आज भी मदद के लिए सरकार का मुँह देखता है। आज भी उसे अपनी मेहनत को औने-पौने दाम में बेचना पड़ता है।
इतनी समस्याएँ क्या कम थीं जो आजकल राजनीतिक पार्टियों द्वारा आए दिन आंदोलन, बंद आदि करवाकर इनके लिए और समस्या खड़ी कर दी जाती हैं। खेत के खेत खड़ी फसलों को बर्बाद कर दिया जाता है, ट्रक के ट्रक सब्जियाँ, दूध आदि बर्बाद किए जाते हैं, जो कि किसान की स्वयं की सहमति नहीं होती उससे जबरन करवाया जाता। कोई भी किसान पुत्रवत पाली गई फसल बर्बाद नहीं कर सकता। ऐसी अनचाही परिस्थिति का वह राजनैतिक शिकार होता है और अनचाहे ही राजनीति के जाल में फँस जाता है।

मालती मिश्रा 'मयंती'