मंगलवार

जिस प्रकार खरगोश से आसमान गिरने की खबर सुनकर जंगल के सभी जानवर उसके पीछे-पीछे भागने लगे वही हाल हमारे देश के बुद्धिजीवियों का भी है और मीडिया के तो कहने ही क्या.....
कोई भी खबर मिली नहीं कि हमारे देश के बुद्धिजीवी बिना सोचे समझे अपनी कलम का जादू दिखाना शुरू कर देते हैं, देश के जागरूक नागरिक का दिखावा करते हुए भूल जाते हैं कि सिक्के के दोनों पहलुओं को जानकर ही उनपर राय देना जागरूक नागरिक का कर्तव्य है।
मालती मिश्रा

बुधवार

हिंदी हमारी भाषा है.....

हिंदी हमारी भाषा है.....
हिंदी हमारी भाषा है 
मेरी प्रथम अभिलाषा है,
भारत देश के गरिमा की 
यही परिष्कृत परिभाषा है।
हिंदी हमारी भाषा है..

जिसको अपनी भाषा का 
ज्ञान नहीं सम्मान नहीं,
बेड़ियों में बँधी हुई
उसकी हर प्रत्याशा है।
हिंदी हमारी भाषा है..

पर भाषा पर संस्कृति से
इसको कोई गुरेज़ नहीं,
हर भाषा-शब्द आकर इसमें
लवण सदृश घुल जाता है।
हिंदी हमारी भाषा है..

हिन्दुस्तान की जान है हिंदी
हम सबका अभिमान है हिंदी,
आओ सब मिल गर्व से बोलें
यही भविष्य की आशा है।
हिंदी हमारी भाषा है..

अपने-पराए के भेद-भाव का
इसमें कोई भाव नहीं
नुक्ता जो क़दमों में पड़ी हुई
उसको मस्तक पे सजाता है।
हिंदी हमारी भाषा है..

सबको संग ले चलने वाली
क्षेत्रीय भाषाओं में घुलने वाली
देश का हर भाषा-भाषी
इससे खुद जुड़ जाता है।
हिंदी हमारी भाषा है..
मालती मिश्रा

शुक्रवार

धार्मिक कानून और देश

धार्मिक कानून और देश
दरअसल हम अभी भी परदेशी ही हैं, सिर्फ किसी देश में पैदा हो जाने मात्र से हम उस देश के या वह देश हमारा नहीं हो जाता। जब तक हम देश को भली-भाँति जान नहीं लेते जब तक  उसकी संस्कृति उसकी शक्ति या दुर्बलता हमारे भीतर रच बस नहीं जाती तब तक हम उसके नही हो सकते। देश में बहुत से ऐसे जड़ पदार्थ हैं और हम भी उन्हीं की भाँति मात्र एक जड़ पदार्थ बनकर रह रहे हैं, देश ने हमें नही अपनाया न हमने देश को। हम यहाँ पैदा जरूर हुए परंतु इसकी मिट्टी की सोंधी खुशबू हमारी आत्मा में न बस सकी, हम यहाँ के जड़त्व के मोहपाश में बँधे होकर इसे अपना कहने लगे हैं। जो हमें लुभाते हैं और हम उसी के वशीभूत हो उसे पाने की लालसा में देश को अपना कहने लगते हैं। जो मोह से अभिभूत है वही चिरकाल का परदेशी है। वह नहीं समझता कि वह कहाँ है, किसका है?
जो हमें प्यारा होता है, जो हमारा होता है या हम जिसके होते हैं, उसकी हर अच्छाई-बुराई को हम दिल से अपनाते हैं। उसके सम्मान के लिए कुछ भी कर गुजरने को तत्पर रहते हैं परंतु इसी देश में जन्म लिया इसकी माटी का तिलक किया,  आज भी इसके प्रति अपनी अखंड भावना दर्शाने से डर लगता है।
हर देश के नागरिक को अपने देश और राष्ट्रगान के प्रति श्रद्धा होती है परंतु हमारे देश में ही किसी खास संप्रदाय के लोगों को राष्ट्रगान गाने की इज़ाजत उनका ही धर्म नहीं देता। कहते हैं कि शरिया कानून उन्हें जन गण मन और वंदेमातरम् गाने की इज़ाजत नहीं देता है, फिर सवाल यह उठता है कि जन-गण-मन और वंदेमातरम् जिस देश की आत्मा हैं आपका कानून आपको उस देश में रहने की इज़ाजत कैसे देता है? भारत माता की धरती पर जन्म लेकर इसे ही अपनी कर्मभूमि बनाने वाले को 'भारत माता की जय' बोलने से कौन-सा कानून रोकता है। कौन-सा कानून है जो माँ को माँ का सम्मान देने से रोकता हो? यदि कोई धर्म मनुष्य को मानव-धर्म निभाने से रोकता है तो वह धर्म नहीं। हर धर्म व्यक्ति को पहले इंसान बाद में हिंदू या मुसलमान बनाता है।
किसी भी देश में रहने वाले हर नागरिक का प्रथम कर्तव्य अपनी मातृभूमि के प्रति समर्पण और उसका सम्मान होना चाहिए, धर्म और मज़हब दूसरे स्थान पर होते हैं। यदि हमें अपने ईश्वर की आराधना के लिए अपनी अधिकृत भूमि और बेफिक्री और सुकून के दो पल ही न मिलें तो धर्म के प्रति कर्तव्य कहाँ निभाएँगे?
हमारा घर हमारा देश तब ही हमारा होता है जब हम तन-मन से उसके होते हैं जब हमारे देश की मिट्टी की खुशबू हमारी आत्मा में बसती है और अनायास ही हमारे मुँह से ही नहीं दिल से निकलता है "वंदेमातरम्" तब हम इस देश के हो पाते हैं। तब हम इसके हो पाते हैं जब सिर्फ हम इसमें नहीं बल्कि यह हममें बसता है, अन्यथा तो हम पैदा होकर परदेशी बनकर रहते हुए पशुओं के समान अपना भरण-पोषण करते हुए एक दिन परदेशी ही बनकर चले जाएँगे और सवाल रह जाएगा धार्मिक कानून बड़ा या देश........
मालती मिश्रा