शीर्षक- सावन सबको भाए
सावन का यह मास सुहाना
सबके मन को भाय।
पल में उजला पल अंधेरा
दिन में सपन दिखाय।
जल भर-भर ले आए बदरा
धरती पर बरसाय।
प्यास बुझी तपती धरती की
हरियाली मुसकाय।
दादुर मोर पपीहा बोले
गीत मिलन के गाय।
स्वाति बूंद की चाह लिए अब
पपिहा आस लगाय।
धानी चूनर धरती ओढ़े
मन ही मन मुसकाय।
पुरवैया के मंद झकोरे
पा तरुवर बिहंसाय।
कांधे हलधर लेकर भूधर
सावन राग सुनाय।
हरा भरा मदमाता यौवन
प्रकृति देह पर छाय।
अमवा की डारी पर झूलें
सखियां सब बिसराय।
मधुर गीत चहुंदिश में गूंजे
सावन सबको भाय।।
©मालती मिश्रा 'मयंती'
सावन का यह मास सुहाना
सबके मन को भाय।
पल में उजला पल अंधेरा
दिन में सपन दिखाय।
जल भर-भर ले आए बदरा
धरती पर बरसाय।
प्यास बुझी तपती धरती की
हरियाली मुसकाय।
दादुर मोर पपीहा बोले
गीत मिलन के गाय।
स्वाति बूंद की चाह लिए अब
पपिहा आस लगाय।
धानी चूनर धरती ओढ़े
मन ही मन मुसकाय।
पुरवैया के मंद झकोरे
पा तरुवर बिहंसाय।
कांधे हलधर लेकर भूधर
सावन राग सुनाय।
हरा भरा मदमाता यौवन
प्रकृति देह पर छाय।
अमवा की डारी पर झूलें
सखियां सब बिसराय।
मधुर गीत चहुंदिश में गूंजे
सावन सबको भाय।।
©मालती मिश्रा 'मयंती'