शुक्रवार

राष्ट्रभाषा हिन्दी हो

राष्ट्रभाषा हिन्दी हो
आहत होती घर में माता
गर सम्मान न मिल पाए,
उसके पोषित पुत्र सभी अब
गैरों के पीछे धाए।

हिन्दी की भी यही दशा है
आज देश में अपने ही,
सर का ताज न कभी बनेगी
टूट गए वो सपने ही।।

हिन्द के वासी हिन्दुस्तानी
कभी हार ना मानेंगे,
राष्ट्रभाषा हिन्दी हो ये
बच्चा-बच्चा जानेंगे।।

आज यही ललकार हमारी
सब हिन्दी के रिपुओं से।
मान वही हम वापस लेंगे
था जो इसका सदियों से।।

©मालती मिश्रा 'मयंती'✍️

योग का महत्व

योग का महत्व
 योग का महत्व

योग एक आध्यात्मिक प्रकिया है जिसके अंतर्गत शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने का काम होता है अर्थात् योग के द्वारा एकाग्रचित्त होकर तन और मन को आत्मा से जोड़ते हैं। गीता में श्रीकृष्ण ने एक स्थल पर कहा है 'योगः कर्मसु कौशलम्‌' अर्थात् योग से कर्मो में कुशलता आती है। हमारे देश का प्राचीन इतिहास बेहद गौरवशाली रहा है, हमारा देश ऋषि-मुनियों का देश रहा है और उस समय ऋषि-मुनि नित्य योग क्रिया करते थे, कदाचित् इसीलिए वर्तमान समय में बहुत से लोग इसे धर्म से जोड़कर देखते हैं और इसका विरोध करते हैं किन्तु इसे धर्म से जोड़ना सर्वथा गलत ही है और धर्म से जोड़कर इसे न अपनाने के सिर्फ दो ही कारण हो सकते हैं, एक तो अज्ञानता और दूसरा राजनीतिक कारण। यदि इन दो कारणों को छोड़ दिया जाए तो योग का विरोध करने या इसे न अपनाने का कोई औचित्य नहीं।
वर्तमान समय में रोजमर्रा के भागमभाग भरे जीवन, प्रदूषण से युक्त वातावरण, अशुद्ध और अनियमित आहार, अनियमित जीवनशैली के कारण लोग मानसिक तनाव, शारीरक व मानसिक अस्वस्थता जैसी कई समस्याओं से जूझ रहे हैं, हर दस में से छः व्यक्ति मोटापे का शिकार दिखाई देता है। ऐसी परेशानियों से आराम पाने के लिए वो दवाइयाँ लेना प्रारंभ करते हैं और धीरे-धीरे उनका जीवन ही दवाइयों पर निर्भर हो जाता है। साथ ही लोग मोटापे से राहत पाने के लिए व्यायाम करते हैं, बहुधा लोग दिन में कई- कई घंटे व्यायामशाला में व्यतीत करते हैं और कोच की सलाह पर तरह-तरह के हेल्थ पाउडर आदि पर पैसा पानी की तरह बहाते हैं। योग इन सारी समस्याओं का एकमात्र उपाय है। योग करने से हमारे मस्तिष्क को शांति मिलती है, ध्यान केंद्रित करने में आसानी होती है, तनाव से मुक्ति मिलती है, कार्य करने में मन लगता है, यह न सिर्फ हमारे मस्तिष्क को ताकत पहुँचाता है बल्कि हमारी आत्मा को भी शुद्ध करता है। शरीर की अलग-अलग समस्याओं के लिए अलग-अलग योगासन होते हैं। जो व्यक्ति नियमित रूप से योग करते हैं वो शारीरिक व मानसिक व्याधियों से दूर रहते हैं। अतः योग को दैनिक जीवन में नियमित रूप से अपनाना चाहिए ताकि बीमारियों, कुंठाओं से दूर रहकर एक स्वस्थ, सकारात्मक और सार्थक जीवन का लाभ उठाया जा सके।
प्रात: काल का समय, योग करने के लिए सर्वथा उपयुक्त होता है। सुबह के समय वातावरण स्वच्छ होता है और ऐसे वातावरण में
योग करने से व्‍यक्‍ति के मस्‍तिष्‍क तथा शरीर की सभी इंद्रियाँकी गतिमान होती हैं, जिससे व्‍यक्‍ति का मन एकाग्र होकर कार्य करता है। योग रूपी साधना का जीवन में होना आवश्यक  है। यह एक ऐसी दवा है, जो बगैर खर्च के रोगियों का इलाज करने में सक्षम है। वहीं यह शरीर को ऊर्जावान बनाए रखता है। यही कारण हैं कि युवाओं द्वारा बड़े पैमाने पर जिम और एरो‍बि‍क्‍स को छोड़कर योग अपनाया जा रहा है।
योग हमारी संस्कृति का एक अभिन्न अंग है और वर्तमान समय में १७७ से भी अधिक देशों ने इसकी महत्ता को समझा और अपनाया है।
अंग्रेजी दवाइयों के आदी हो चुके नई पीढ़ी के लोगों में जब विभिन्न संस्थाओं द्वारा योग के प्रति जागृति लाने का प्रयास किया गया तथा इन्होंने विदेशों में भी योग के प्रति रुझान को जाना तब अपनी संस्कृति की ओर इनका भी रुझान हुआ। हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री ने २७ सितंबर २०१४ को संयुक्त राष्ट्र महासभा में योग की विशेषताओं पर भाषण देकर इसके महत्व को बताया जिसके फलस्वरूप १९९ सदस्यों की इस संस्था में से १७७ देशों ने २१ जून को अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मान्य किया और तब से प्रत्येक वर्ष साल के सबसे बड़े दिन २१ जून को विश्व स्तर पर योगदिवस मनाया जाने लगा। साथ ही स्वामी रामदेव और आचार्य बालकृष्ण के सहयोग से योग को सम्पूर्ण विश्व में प्रसारित कर मानव कल्याण हेतु निरन्तर प्रयास किए जा रहे हैं। एक नए भारत के अभ्युदय हेतु आचार्यकुलम् की भी स्थापना की गई, जिससे यहाँ से प्रशिक्षण प्राप्त कर निकले विद्यार्थी भविष्य में भी भारतीय संस्कृति के वाहक बनें और योग को आगे ले जाने का स्रोत बने।

मालती मिश्रा 'मयंती'✍️

गुरु दक्षिणा की अद्भुत मिसाल 'राष्ट्रीय हिन्दी विकास सम्मेलन'


 

'पूर्वोत्तर हिन्दी अकादमी शिलांग' के तत्वावधान में आयोजित त्रिदिवसीय हिन्दी विकास सम्मेलन अद्भुत, चिरस्मरणीय और अनुकरणीय रहा। 24 से 26 मई 2019 के यह तीन दिन कार्यक्रम में पधारे साहित्यकारों के साहित्यिक जीवन में नवीन ऊर्जा का स्रोत और प्रेरणास्रोत के रूप में चिरस्थाई सिद्ध होंगे। देश भर से कई राज्यों से पधारे साहित्यसेवियों ने अनवरत दो दिन तक साहित्यामृत का अमृत पान करते हुए अपनी लेखनी को सशक्त किया तथा एक ही स्थान पर एक साथ भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के लेखकों-कवियों का संगम निश्चय ही साहित्यिक कुंभ में स्नान करने जैसा रहा। एक ही स्थान पर विभिन्न विचारधाराओं, विभिन्न संस्कृतियों से परिचित होने का सुअवसर प्राप्त हुआ। शिविरार्थी रचनाकारों का आपसी सहयोग, सौहार्दपूर्ण मेल-मिलाप और सांस्कृतिक समन्वय अनूठा रहा। शिविरार्थियों के ठहरने की व्यवस्था गोल्फ पाइन गेस्ट हाउस में की गई थी तथा समारोह आयोजन स्थल 11 वीं वाहिनी सैक्टर मुख्यालय सीमा सुरक्षा बल मौपट शिलांग में रखा गया था। आवासीय स्थल और समारोह स्थल के दूर-दूर होने से आयोजक मंडल को निःसंदेह दुश्वारियों का सामना करना पड़ा किन्तु समारोह स्थल का बी.एस.एफ. कैन्ट में होना हमारे लिए फौजी भाइयों के सानिध्य का अद्भुत और गौरवशाली अनुभव रहा। कार्यक्रम स्थल पर पहुँचने पर सभी साहित्यकारों का भारतीय परंपरानुसार 'अतिथि देवो भव' के भाव को सर्वोपरि रखते हुए तिलक लगाकर, हाथ में मंगल कामना सूत्र बाँधकर तथा अंग वस्त्र स्वरूप दुपट्टा डालकर स्वागत करना हृदयतल को छू गया।
श्रीमती उर्मि कृष्ण (शुभ तारिका अंबाला छावनी) के निर्देशन तथा अकादमी के अध्यक्ष डॉ. विमल बजाज की अध्यक्षता में यह साहित्यिक अनुष्ठान संपन्न हुआ।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि मौपट सेक्टर मुख्यालय के उप महानिरीक्षक श्री अवतार सिंह शाही थे तथा विशिष्ट अतिथि श्री शंकरलाल गोयंका (जीवनराम मुंगी देवी गोयंका चैरिटेबल ट्रस्ट के ट्रस्टी प्रभारी), सीसुब मौपट के समादेष्टा कुलदीप सिंह और समाजसेवी श्री पुरुषोत्तम दास चोखानी का हिन्दी भाषा के प्रति समर्पण और योगदान देखकर मन स्वतः कृतज्ञ भाव से अभिभूत हो जाता है।
कार्यक्रम का श्री गणेश दीप प्रज्ज्वलन, सरस्वती वंदना,स्वागत-गीत व डॉ.महाराज कृष्ण जैन की प्रतिमा पर पुष्पांजलि से हुआ। ज्ञात हुआ कि प्रति वर्ष इस प्रकार के भव्य आयोजन के द्वारा हिन्दी भाषा के विकास व प्रोन्नयन का कार्य डॉ० अकेला भाई का अपने गुरु डॉ० महाराज कृष्ण जैन के प्रति गुरु दक्षिणा है। गुरु दक्षिणा का यह स्वरूप भाषा के क्षेत्र में किसी भी धार्मिक अनुष्ठान से कहीं अधिक महत्वपूर्ण और अनुकरणीय है। इसकी उपयोगिता और उपलब्धियों को शब्दों में नहीं बाँधा जा सकता।
इसके अलावा एक अन्य चीज ने मुझे बेहद आकर्षित किया वो था समयनिष्ठ होना। सम्पूर्ण कार्यक्रम पूर्वनिर्धारित समय के अनुसार हुआ, इसका श्रेय निःसंदेह कार्यक्रम के आधार स्तंभ डॉ० अकेला भाई को जाता है क्योंकि उन्होंने इसकी नीव तो तभी रख दी थी जब यह कार्यक्रम पूर्वनिर्धारित समय पर होना असंभव प्रतीत हो रहा था तब भी उन विषम परिस्थितियों में भी यह सम्मेलन पूर्वनियोजित समय पर ही करवाकर एक मिसाल कायम किया और समय की यह पाबंदी वहीं से प्रारंभ होकर अंत तक बनी रही, जो हमारे लिए अनुकरणीय है।
श्रीमती जयमति जी का सरस्वती वंदना तथा स्वागत गान और ज्योति जी के तबला वादन ने संपूर्ण वातावरण को संगीतमय बना दिया। अरुणा उपाध्याय जी का कुशल मंच संचालन प्रशंसनीय था, विभिन्न प्रातों से आए सभी कवियों के द्वारा मधुर कंठ से सरस काव्य पाठ अवर्णनीय था। पुस्तकों का लोकार्पण अद्वितीय था। पूर्वोत्तर राज्यों में हिंदी के विकास हेतु विद्वानों द्वारा शोधपरक आलेख भी बेहद संतुलन और रोचकता के साथ प्रस्तुत किए गए। सभी साहित्यकारों का सम्मान और मुख्य अतिथि तथा अध्यक्ष का वक्तव्य सभी कुछ एक संतुलन में किसी माला में पिरोये मोतियों की भाँति संतुलित रूप से गतिमान रहा। समारोह के सांस्कृतिक पड़ाव के रूप में सांस्कृतिक संध्या का आयोजन बड़ा भव्य रहा जिसमें असमियाँ लोकनृत्य, बिहू, राजस्थानी, हरियाणवीं, भोजपुरी लोकनृत्य व लोकगीत की प्रस्तुति प्रांतों की संस्कृतियों से परिचित कराने का रोचक और प्रशंसनीय माध्यम बना।
आयोजन का अंतिम पड़ाव शिविरार्थियों को पर्यटन के द्वारा मेघालय के प्राकृतिक व दर्शनीय स्थलों पर भ्रमण के द्वारा वहाँ की संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य से परिचित करवाना था। फौजी भाइयों की सुरक्षा और सानिध्य में शिलांग का एलीफेंटा फॉल, चेरापूंजी के मावसमाई केव, अत्यंत रोमांचकारी अनुभव रहा। थांगखरांग पार्क में सहभोज एक अनूठा अनुभव था। बांगला देश की सीमा का अवलोकन, सेवेन सिस्टर्स फॉल के  मनोहर दृश्य व मेघालय के खासी हिल्स का वह प्राकृतिक सौंदर्य तथा ईको पार्क का वह मनोरम दृश्य हमारे मन को गुदगुदाने लगे। बादलों का बार-बार धरती पर उतरना और फिर लुप्त हो जाना मानों हमारा स्वागत करने को तत्पर हों।
साहित्यिक आयोजन के इस तीसरे दिवस ने पूरे कार्यक्रम में चार चाँद लगा दिया। विगत दो दिवसों में जिन लोगों से हमारा परिचय आधा-अधूरा रह गया था बस में गन्तव्य तक जाते हुए वह परिचय न सिर्फ पूर्ण हुआ बल्कि अंत्याक्षरी जैसे खेल के द्वारा बेहद मनोरंजक भी रहा।
फौजी भाइयों का सानिध्य उनका समर्पण व सेवा भाव को शब्दों में बाँधना संभव नहीं। हिन्दी भाषा के विकास हेतु इस आयोजन को सम्पन्न कराने में डॉ० अकेला भाई व उनके सभी सहयोगियों की कर्मठता अवर्णनीय है। साथ ही संपूर्ण कार्यक्रम के प्रत्येक पहलू से पूरे मेघालय को परिचित करवाने यानि संपूर्ण मीडिया कवरेज के दक्षतापूर्ण निर्वहन का उल्लेख न करूँ तो यह वर्णन अधूरा रहेगा दैनिक पूर्वोदय के पत्रकार योगेश दुबे जी ने जिस दक्षता के साथ संपूर्ण कार्यक्रम को कवरेज देकर अपने समाचार पत्र द्वारा आम जनता तक पहुँचाया वह काबिले तारीफ है।
परम आदरणीया उर्मि कृष्ण दीदी, आ० डॉ० अकेला भाई और उनके सभी सहयोगियों तथा हमारे देश के गौरव हमारे सैनिक भाइयों को नमन करते हुए यही कामना करती हूँ कि 'पूर्वोत्तर हिन्दी अकादमी' हिन्दी के विकास के लिए इसी प्रकार अनवरत क्रियाशील रहे।

मालती मिश्रा 'मयंती' ✍️
दिल्ली- 53
9891616087

गुरुवार

गुलामी

गुलामी
200 वर्षों तक अंग्रेजों की गुलामी करते-करते हम मानसिक रूप से गुलाम बनकर रह गए हैं। पहले अंग्रेजों की गुलामी करते थे, अब अंग्रेजी की गुलामी करते हैं।
मालती मिश्रा

सोमवार

पुस्तक समीक्षा : 'अन्तर्ध्वनि' (काव्य संग्रह)

मालती मिश्रा मयंती
अंतर्ध्वनि
मालती मिश्रा मयंती
अंतर्ध्वनि

पुस्तक समीक्षा : अन्तर्ध्वनि

समीक्षक : अवधेश कुमार 'अवध'
मनुष्यों में पाँचों इन्द्रियाँ कमोबेश सक्रिय होती हैं जो अपने अनुभवों के समन्वित मिश्रण को मन के धरातल पर रोपती हैं जहाँ से समवेत ध्वनि का आभास होता है, यही आभास अन्तर्ध्वनि है। जब अन्तर्ध्वनि को शब्द रूपी शरीर मिल जाता है तो काव्य बन जाता है। सार्थक एवं प्रभावी काव्य वही होता है जो कवि के हृदय से निकलकर पाठक के हृदय में बिना क्षय के जगह पा सके और कवि - हृदय का हूबहू आभास करा सके।
नवोदित कवयित्री सुश्री मालती मिश्रा जी ने शिक्षण के दौरान अन्त: चक्षु से 'नारी' को नज़दीक से देखा। नर का अस्तित्व है नारी, किन्तु वह नर के कारण अस्तित्व विहीन हो जाती है। शक्तिस्वरूपा, सबला और समर्थ नारी संवेदना हीन पुरुष - सत्ता के चंगुल में फँसकर अबला हो जाती है। बहुधा जब वह विद्रोह करती है तो  अलग - थलग, अकेली व असमर्थित और भी दयनीय होकर लौट आती है। प्रकृति का मानवीकरण करके कवयित्री स्त्री के साथ साम्य दिखलाने की कोशिश की है और इस प्रयास में वह छायावाद के काफी निकट होती है। नैतिक अवमूल्यन से कवयित्री आहत है फिर भी राष्ट्रीयता की भावना बलवती है तथा सामाजिक उथल- पुथल के प्रति संवेदनशील भी।
यद्यपि स्त्री विमर्श, सौन्दर्य बोध, प्रकृति चित्रण, सामाजिक परिवेश, सांस्कृतिक समन्वय, पारिवारिक परिमिति सुश्री मालती मिश्रा की लेखनी की विषय वस्तु है तथापि केन्द्र में नारी ही है। बहत्तर कविताओं से लैस अन्तर्ध्वनि कवयित्री की पहली पुस्तक है । भाव के धरातल पर कवयित्री की अन्तर्ध्वनि पाठक तक निर्बाध और अक्षय पहुँचती है । कविताओं की क्रमोत्तर संख्या के साथ रचनाकार व्यष्टि से समष्टि की ओर अग्रसर देखी जा सकती है। अन्तर्ध्वनि शुरुआती कविताओं में आत्म केन्द्रित है जो धीरे - धीरे समग्रता में लीन होती जाती है। स्वयं की पीड़ा जन साधारण की पीड़ा हो जाती है तो अपने दर्द का आभास कम हो जाता है।
कुछ कविताओं का आकार काफी बड़ा है फिर भी भाव विन्यास में तनाव या विखराव नहीं है अतएव श्रेयस्कर हैं । न्यून अतुकान्त संग सर्वाधिक तुकान्त कविताओं में गीत, गीतिका और मुक्तक लिखने की चेष्टा परिलक्षित है, जिसमें छंद की अपरिपक्वता स्पष्ट एवं अनावृत है किन्तु फिर भी भावपक्ष की मजबूती और गेय - गुण अन्तर्ध्वनि को स्तरीय बनाने हेतु पर्याप्य है। अन्तर्ध्वनि की कविता 'प्रार्थना खग की' द्रष्टव्य है जिसमें खग मानव से वृक्ष न काटने हेतु प्रार्थना करता है -
"करबद्ध प्रार्थना इंसानों से,
करते हम खग स्वीकार करो।
छीनों न हमारे घर हमसे,
हम पर तुम उपकार करो ।।"
' बेटी को पराया कहने वालों' कविता में कवयित्री एक बेटी की बदलती भूमिका को उसके विशेषण से सम्बद्ध करते हुए कहती है -
"जान सके इसके अन्तर्मन को
ऐसा न कोई बुद्धिशाली है
भार्या यह अति कामुक सी
सुता बन यह सुकुमारी है
स्नेह छलकता भ्राता पर है
पत्नी बन सब कुछ वारी है।"
उन्वान प्रकाशन द्वारा प्रकाशित मात्र रुपये 150 की 'अन्तर्ध्वनि' में 'मजदूर', 'अंधविश्वास', 'तलाश', 'प्रतिस्पर्धा' और 'आ रहा स्वर्णिम विहान' जैसी कविताएँ बेहद प्रासंगिक हैं। एक ओर जहाँ शिल्प में दोष से इन्कार नहीं किया सकता वहीं रस के आधिक्य में पाठक - हृदय का निमग्न होना अवश्यम्भावी है। माता - पिता को समर्पित सुश्री मालती मिश्रा की अन्तर्ध्वनि को आइए हम अपनी अन्तर्ध्वनि बनाकर स्नेह से अभिसिंचित करें।
समीक्षक एवं लेखक
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अवधेश कुमार 'अवध'
मेघालय 9862744237