'पूर्वोत्तर हिन्दी अकादमी शिलांग' के तत्वावधान में आयोजित त्रिदिवसीय हिन्दी विकास सम्मेलन अद्भुत, चिरस्मरणीय और अनुकरणीय रहा। 24 से 26 मई 2019 के यह तीन दिन कार्यक्रम में पधारे साहित्यकारों के साहित्यिक जीवन में नवीन ऊर्जा का स्रोत और प्रेरणास्रोत के रूप में चिरस्थाई सिद्ध होंगे। देश भर से कई राज्यों से पधारे साहित्यसेवियों ने अनवरत दो दिन तक साहित्यामृत का अमृत पान करते हुए अपनी लेखनी को सशक्त किया तथा एक ही स्थान पर एक साथ भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के लेखकों-कवियों का संगम निश्चय ही साहित्यिक कुंभ में स्नान करने जैसा रहा। एक ही स्थान पर विभिन्न विचारधाराओं, विभिन्न संस्कृतियों से परिचित होने का सुअवसर प्राप्त हुआ। शिविरार्थी रचनाकारों का आपसी सहयोग, सौहार्दपूर्ण मेल-मिलाप और सांस्कृतिक समन्वय अनूठा रहा। शिविरार्थियों के ठहरने की व्यवस्था गोल्फ पाइन गेस्ट हाउस में की गई थी तथा समारोह आयोजन स्थल 11 वीं वाहिनी सैक्टर मुख्यालय सीमा सुरक्षा बल मौपट शिलांग में रखा गया था। आवासीय स्थल और समारोह स्थल के दूर-दूर होने से आयोजक मंडल को निःसंदेह दुश्वारियों का सामना करना पड़ा किन्तु समारोह स्थल का बी.एस.एफ. कैन्ट में होना हमारे लिए फौजी भाइयों के सानिध्य का अद्भुत और गौरवशाली अनुभव रहा। कार्यक्रम स्थल पर पहुँचने पर सभी साहित्यकारों का भारतीय परंपरानुसार 'अतिथि देवो भव' के भाव को सर्वोपरि रखते हुए तिलक लगाकर, हाथ में मंगल कामना सूत्र बाँधकर तथा अंग वस्त्र स्वरूप दुपट्टा डालकर स्वागत करना हृदयतल को छू गया।
श्रीमती उर्मि कृष्ण (शुभ तारिका अंबाला छावनी) के निर्देशन तथा अकादमी के अध्यक्ष डॉ. विमल बजाज की अध्यक्षता में यह साहित्यिक अनुष्ठान संपन्न हुआ।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि मौपट सेक्टर मुख्यालय के उप महानिरीक्षक श्री अवतार सिंह शाही थे तथा विशिष्ट अतिथि श्री शंकरलाल गोयंका (जीवनराम मुंगी देवी गोयंका चैरिटेबल ट्रस्ट के ट्रस्टी प्रभारी), सीसुब मौपट के समादेष्टा कुलदीप सिंह और समाजसेवी श्री पुरुषोत्तम दास चोखानी का हिन्दी भाषा के प्रति समर्पण और योगदान देखकर मन स्वतः कृतज्ञ भाव से अभिभूत हो जाता है।
कार्यक्रम का श्री गणेश दीप प्रज्ज्वलन, सरस्वती वंदना,स्वागत-गीत व डॉ.महाराज कृष्ण जैन की प्रतिमा पर पुष्पांजलि से हुआ। ज्ञात हुआ कि प्रति वर्ष इस प्रकार के भव्य आयोजन के द्वारा हिन्दी भाषा के विकास व प्रोन्नयन का कार्य डॉ० अकेला भाई का अपने गुरु डॉ० महाराज कृष्ण जैन के प्रति गुरु दक्षिणा है। गुरु दक्षिणा का यह स्वरूप भाषा के क्षेत्र में किसी भी धार्मिक अनुष्ठान से कहीं अधिक महत्वपूर्ण और अनुकरणीय है। इसकी उपयोगिता और उपलब्धियों को शब्दों में नहीं बाँधा जा सकता।
इसके अलावा एक अन्य चीज ने मुझे बेहद आकर्षित किया वो था समयनिष्ठ होना। सम्पूर्ण कार्यक्रम पूर्वनिर्धारित समय के अनुसार हुआ, इसका श्रेय निःसंदेह कार्यक्रम के आधार स्तंभ डॉ० अकेला भाई को जाता है क्योंकि उन्होंने इसकी नीव तो तभी रख दी थी जब यह कार्यक्रम पूर्वनिर्धारित समय पर होना असंभव प्रतीत हो रहा था तब भी उन विषम परिस्थितियों में भी यह सम्मेलन पूर्वनियोजित समय पर ही करवाकर एक मिसाल कायम किया और समय की यह पाबंदी वहीं से प्रारंभ होकर अंत तक बनी रही, जो हमारे लिए अनुकरणीय है।
श्रीमती जयमति जी का सरस्वती वंदना तथा स्वागत गान और ज्योति जी के तबला वादन ने संपूर्ण वातावरण को संगीतमय बना दिया। अरुणा उपाध्याय जी का कुशल मंच संचालन प्रशंसनीय था, विभिन्न प्रातों से आए सभी कवियों के द्वारा मधुर कंठ से सरस काव्य पाठ अवर्णनीय था। पुस्तकों का लोकार्पण अद्वितीय था। पूर्वोत्तर राज्यों में हिंदी के विकास हेतु विद्वानों द्वारा शोधपरक आलेख भी बेहद संतुलन और रोचकता के साथ प्रस्तुत किए गए। सभी साहित्यकारों का सम्मान और मुख्य अतिथि तथा अध्यक्ष का वक्तव्य सभी कुछ एक संतुलन में किसी माला में पिरोये मोतियों की भाँति संतुलित रूप से गतिमान रहा। समारोह के सांस्कृतिक पड़ाव के रूप में सांस्कृतिक संध्या का आयोजन बड़ा भव्य रहा जिसमें असमियाँ लोकनृत्य, बिहू, राजस्थानी, हरियाणवीं, भोजपुरी लोकनृत्य व लोकगीत की प्रस्तुति प्रांतों की संस्कृतियों से परिचित कराने का रोचक और प्रशंसनीय माध्यम बना।
आयोजन का अंतिम पड़ाव शिविरार्थियों को पर्यटन के द्वारा मेघालय के प्राकृतिक व दर्शनीय स्थलों पर भ्रमण के द्वारा वहाँ की संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य से परिचित करवाना था। फौजी भाइयों की सुरक्षा और सानिध्य में शिलांग का एलीफेंटा फॉल, चेरापूंजी के मावसमाई केव, अत्यंत रोमांचकारी अनुभव रहा। थांगखरांग पार्क में सहभोज एक अनूठा अनुभव था। बांगला देश की सीमा का अवलोकन, सेवेन सिस्टर्स फॉल के मनोहर दृश्य व मेघालय के खासी हिल्स का वह प्राकृतिक सौंदर्य तथा ईको पार्क का वह मनोरम दृश्य हमारे मन को गुदगुदाने लगे। बादलों का बार-बार धरती पर उतरना और फिर लुप्त हो जाना मानों हमारा स्वागत करने को तत्पर हों।
साहित्यिक आयोजन के इस तीसरे दिवस ने पूरे कार्यक्रम में चार चाँद लगा दिया। विगत दो दिवसों में जिन लोगों से हमारा परिचय आधा-अधूरा रह गया था बस में गन्तव्य तक जाते हुए वह परिचय न सिर्फ पूर्ण हुआ बल्कि अंत्याक्षरी जैसे खेल के द्वारा बेहद मनोरंजक भी रहा।
फौजी भाइयों का सानिध्य उनका समर्पण व सेवा भाव को शब्दों में बाँधना संभव नहीं। हिन्दी भाषा के विकास हेतु इस आयोजन को सम्पन्न कराने में डॉ० अकेला भाई व उनके सभी सहयोगियों की कर्मठता अवर्णनीय है। साथ ही संपूर्ण कार्यक्रम के प्रत्येक पहलू से पूरे मेघालय को परिचित करवाने यानि संपूर्ण मीडिया कवरेज के दक्षतापूर्ण निर्वहन का उल्लेख न करूँ तो यह वर्णन अधूरा रहेगा दैनिक पूर्वोदय के पत्रकार योगेश दुबे जी ने जिस दक्षता के साथ संपूर्ण कार्यक्रम को कवरेज देकर अपने समाचार पत्र द्वारा आम जनता तक पहुँचाया वह काबिले तारीफ है।
परम आदरणीया उर्मि कृष्ण दीदी, आ० डॉ० अकेला भाई और उनके सभी सहयोगियों तथा हमारे देश के गौरव हमारे सैनिक भाइयों को नमन करते हुए यही कामना करती हूँ कि 'पूर्वोत्तर हिन्दी अकादमी' हिन्दी के विकास के लिए इसी प्रकार अनवरत क्रियाशील रहे।
मालती मिश्रा 'मयंती' ✍️
दिल्ली- 53
9891616087
धन्यवाद शिवम् जी
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