शुक्रवार

आरक्षण का पाश

आरक्षण का पाश
आरक्षण के पाश में बँधकर प्रतिभाएं दम तोड़ रहीं,
जाति-धर्म के नाम पर देखो सरस्वती मुख मोड़ रही।

आरक्षण की तलवार है चलती योग्यता की गर्दन पर,
सक्षम बन क्या करना है सफल हैं आरक्षण के दम पर।

समानता का अधिकार तो शोभा है बस कहने भर की,
गर समान हैं सभी आज तो आरक्षण क्यों है दम भरती।

आरक्षण पाकर आगे बढ़ने की जितनी खींचा-तानी है,
मेहनत कर योग्यता पाने की उतनी न किसी ने ठानी है।

देश बढ़ा तो हम भी बढ़ेंगे यही विकास की माया है,
बिन मेहनत सबकुछ पाने को शत्रुओं ने उकसाया है।

आरक्षण के भ्रम में आज सब कौशल से आँखें मूँद रहे,
दृढ़ नींव पर ही भवन टिकते हैं ये सत्य सभी भूल रहे।

परिश्रम की राह पर चलकर जिसने प्रतिभा पायी है,
अवसर की इक नन्ही किरण ने उसको राह दिखाई है।

बिन मेहनत सब कुछ पा लेना ये तो सिर्फ छलावा है,
मुफ्त बाँट कर भविष्य बनाना ये भी महज दिखावा है।

फ्री का लालच दिखा दिखाकर निष्क्रियता फैला रहे,
तुम्हारे ज्ञान को कुंठित करके अपना तख्त सजा रहे।

मानव का उत्थान है करना तो ज्ञान के दीप जलाओ, 
घर-घर के हर इक कोने से अज्ञानता का तिमिर हटाओ।

ज्ञान चक्षु खुल जाएँगे तो पथ प्रशस्त तुम अपना करना,
मुफ्त की सुविधा मुफ्त रोटी से भला है भूखे सो रहना।

आरक्षण पाने की खातिर जितना जोर आजमाते हैं,
आधा भी जो मेहनत करते वो हाथ नहीं फैलाते हैं।

धरने-आंदोलन के बल पर आरक्षण तो तुम पा लोगे
बारी आएगी जब कौशल की तो मुँह छिपाते डोलेगे।

डिग्री व सर्टिफिकेट नकली सब आरक्षण की माया है,
मुफ्त भरोसे रहने वाला कब सम्मान से जी पाया है।
मालती मिश्रा