जिस प्रकार घर के प्रत्येक सदस्य का अपने घर-परिवार के प्रति कोई न कोई कर्तव्य होता है और हर सदस्य अपने कर्तव्यों का निर्वहन पूरी जिम्मेदारी से करता है, उसी प्रकार समाज में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति अपने समाज और राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का पूरी ईमानदारी से पालन करे तो शायद हमें यह कहने की आवश्यकता ही न पड़े कि सरकार कुछ नहीं करती। हम ये नहीं कहते कि सरकारें हमेशा सही ही करती हैं यदि ऐसा होता तो कोई परेशानी ही क्यों होती परंतु क्या अपने कर्तव्यों का बोझ भी सरकार पर डाल कर सिर्फ कमियाँ गिनवाने के लिए खड़े हो जाना ही हमारा काम है? या यही समस्याओं का हल है.....मैं समझती हूँ कि नहीं।
हर पाँच साल में हमें एक मौका तो मिलता ही है कि हम स्वहित से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में कोई फैसला लें और ऐसी सरकार का चुनाव करें जो हमारी समस्याओं का निदान कर सके। उस समय हमें क्या दिखता है, हम क्या चुनते हैं.......
उस वक्त हम चुनते हैं वो सरकार जो हमें फ्री में लैपटॉप बाँटती है, उस समय हम चुनते हैं वो सरकार जो हमें फ्री वाई-फाई, फ्री पानी, फ्री बिजली देने का वादा करती है, उस समय हम चुनते हैं वो सरकार जो हवा में ख्वाबों के महलों के सपने दिखाती है, उस समय हम वो सरकार चुनते हैं जो हमें आरक्षण देने का वादा करती है, उस वक्त हम वो सरकार चुनते हैं जो संघमुक्त भारत देने का वादा करती है। इनसे भी आगे यदि कुछ सोचते हैं तो ये कि फलाँ उम्मीदवार हमारे धर्म या जाति का है या हमारा रिश्तेदार है तो उसे ही चुनना चाहिए, फिर वो किस पार्टी से संबंध रखता है, कैसा बैकग्राउंड है, कैसी मानसिकता है, शिक्षित है या नहीं? इन सब विषयों पर नहीं सोचते। सोचते हैं तो बस इतना कि वो व्यक्तिगत रूप से हमें कितना लाभ पहुँचा सकता है।
कुल मिलाकर हम एक ऐसी सरकार चुनते हैं जो हमें अकर्मण्यता परोसती है, जो हमें बिना परिश्रम ऊँचे-ऊँचे ख्वाब दिखाती है और जब हमारी पसंद की सरकार बन जाती है, दूसरे शब्दों में मैं कहूँ कि जब हम अपने ही हाथों उस डाल को काट चुके होते हैं जिनपर हम बैठे थे, तब गिरने के बाद शिकायत करते हैं कि केंद्र में बैठी सरकार हमारी मदद नहीं करती।
इतना तो सभी जानते होंगे कि घर का मुखिया ही घर का हित-अहित देखेगा और करेगा, गाँव का मुखिया तो गाँव के विषय में सोचेगा और करेगा। वही स्थिति केंद्र और राज्य सरकारों की भी होती है। जब आपके घर का मुखिया यानि राज्य सरकार ही गलत है तो गाँव के मुखिया यानि केंद्र सरकार पर उँगली क्यों उठाना। केंद्र सरकार को तो हमने ही कमजोर बनाया तो जिसे हमने चुना जिसको ताकत दिया उसी से कहें और यदि बुराई ही करनी है तो उसी की करें। परंतु ऐसा भी नही कर सकते क्योंकि अपनी ही रचना यानि अपने ही क्रियेशन को कोई गलत कैसे कहे.....
हमारी तो आदत बन चुकी है अपनी हर असफलता हर गलती की जिम्मेदारी भगवान पर डालने की, भगवान ही नहीं चाहता तो हम कर ही क्या सकते हैं...ये हमारा सबसे सरल और उपयोगी बहाना बन चुका है, उसी प्रकार जहाँ केंद्र सरकार पर दोषारोपण करना हो पीछे नहीं हटते। यदि बुराई के खिलाफ हर घर से एक-एक हाथ भी बाहर आए तो करोड़ों हाथ बनते हैं फिर हमें बुराई और अत्याचार से निपटने के लिए किसी पर आश्रित नही होना होगा। और जो हमारी कमजोरियों का फायदा उठाकर अपनी राजनीति चमकाना चाहते हैं उनके लिए भी सबक होगा।
मालती मिश्रा