शीर्षक- उठो लाल
उठो लाल अब सुबह हो गई
देखो कलियाँ भी खिल आईं,
चिड़िया चहक उठीं डाली पर
तुमको गीत सुनाने आईं।
पूरी रात नींद भर सोकर
मन से तमस दूर कर डाला,
बाल सूर्य ने आँखें खोलीं
पूरा विश्व लाल कर डाला।
भीनी खुश्बू ले पुरवैया
द्वार तुम्हरे दस्तक देती,
नवल प्रभात की ये ताजगी
मन के सब विकार हर लेती।
आज तो मुझे सोने दो माँ
सन्डे का सुख लेने दो माँ,
हर दिन सुबह विद्यालय भागूँ
अपनी मधुर नींद को त्यागूँ।
तब भी सूरज आता होगा
कलियों को महकाता होगा,
मंद पवन भी बहती होगी
सभी उठें ये कहती होगी।
पर चिड़ियों की मधुर चहक को
क्या कोई सुन पाता होगा,
सुरभित बयार की खुश्बू से
मन कैसे महकाता होगा।
भाग दौड़ से भरी जिन्दगी
कैसे उगता सूरज देखें,
वातावरण की दूषित हवा
कब सौरभ पुष्पों का निरखे।
सुन लो प्यारे सूरज दादा
इतनी तो तुम दया दिखाते,
हफ्ते भर संग किया परिश्रम
आज आप रविवार मनाते ।।
मालती मिश्रा, दिल्ली✍️