रविवार

चाँद का सफर

चंदा तू क्यों भटक रहा
अकेला इस नीरव अंधियारे में
क्या चाँदनी है तूझसे रूठ गई
तू ढूँढ़े उसे जग के गलियारे में
तुझ संग तेरे संगी साथी हैं तारे 
जो तुझ संग फिरते मारे-मारे 
मैं अकेली संगी न साथी 
ढूँढ़ू खुद को बिन दिया बाती
उस जग में खुद को खो चुकी हूँ
जहाँ ढूँढ़े तू अपना साथी
कैसी अनोखी राह है मेरी 
व्यथा अपनी किसी से न कह पाती 
हे चंदा! कितनी समानता है हममें
तू भी अकेला हम भी अकेले 
फिर भी कितने विषम हैं दोनों
जग तुझको चाहे और हमको झेले 
अपनी कुछ खूबी मुझे भी दे दे 
ज्यों दाग के होते हुए भी तू  जग में
सबका प्रिय बना अकेले-अकेले 

मालती मिश्रा 

कहा जाता है "यत्र नार्यस्य पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता" अर्थात् जहाँ नारी पूजी जाती है वहाँ देवताओं का वास होता है। हमारे देश में तो नारी को देवी का दर्जा दिया जाता था, जी हाँ मैं 'था' कहूँगी क्योंकि अब नहीं दिया जाता। अब तो नारियों को गाली दी जाती है और इस कुकृत्य में सिर्फ पुरुष ही शामिल हैं ऐसा कहना गलत होगा। जब स्त्रियाँ किसी सम्माननीय और जिम्मेदार ओहदों पर पहुँच जाती हैं तब उनमें से भी कुछ स्वयं की अर्थात् स्त्री की मर्यादा भूल जाती हैं। स्वयं को देवी के रूप में स्थापित करने का प्रयास करती हैं। वहीं दूसरी ओर कुछ समाज के जिम्मेदार समझे जाने वाले पुरुष स्वयं की मर्यादा भूल कर अपशब्दों का प्रयोग करने लगते हैं। ठीक है आपसे किसी स्त्री का देवी बनना नहीं बर्दाश्त होता तो न सही परंतु स्वयं की मर्यादा का पालन तो करते, आपसे तो वह भी नहीं हुआ तो समाज का मार्गदर्शन क्या करेंगे? 
पुरुष तो सदैव से स्त्री पर आधिपत्य जमाने का प्रयास करता रहा है, और तरह-तरह के नियमों रीति-रिवाजों कें बंधन में उसे बाँधने का प्रयास किया जाता रहा है, निःसंदेह इसकी शुरुआत अपने घर से ही किया है, अपने को श्रेष्ठ दर्शाने तथा स्त्री को कमजोर बनाए रखने के लिए अपशब्दों यहाँ तक की शारीरिक प्रताड़ना भी दिया जाता रहा है परंतु अब समय बदल चुका है, सोच बदल रही है, स्त्री जागरूक हो रही है और अपना हित-अहित, मान-सम्मान बखूबी समझती है, ऐसे में यह हमारे राजनेताओं और राजनेत्रियों को भी समझना चाहिए कि जिस शब्द से उनका सम्मान हताहत हो सकता है उसी शब्द से एक साधारण स्त्री का सम्मान भी हताहत हो सकता है, सम्मान सभी का बराबर होता है।
बसपा अध्यक्ष मायावती के लिए बीजेपी नेता दयाशंकर जी ने अभद्र भाषा या टिप्पणी का प्रयोग किया जो कि उन्हें नहीं करना चाहिए था....बीजेपी ने संज्ञान लेते हुए अपने नेता को अपनी पार्टी से ही सस्पेंड कर दिया तथा उ०प्र० सरकार कानूनी कार्यवाही कर रही है, दयाशंकर जी आत्मसमर्पण करने को भी तैयार हैं, उसके बाद आगे की जो कानूनी प्रक्रिया होगी वह तो होगी ही। 
अब जवाब में मायावती जी के नेताओं या मैं ये कहूँ कि चाटुकारों ने क्या किया? दयाशंकर जी की बारह साल की बच्ची और उनकी पत्नी को गंदी-गंदी गालियाँ दे रहे हैं उनका अपमान कर रहे हैं!!!!! क्यों? किसलिए? क्या इन सब में उन दोनों का कोई दोष था? या फिर वो मायावती नहीं हैं इसलिए उनको कोई भी कुछ भी कह सकता है? और सोने पर सुहागा तो यह कि मायावती स्वयं को देवी कहने वाली, उन्हें रोक भी नहीं रहीं क्यों??? 
बदला लेने के लिए जो इस निम्न स्तर तक गिर जाए वो देवी तो क्या इंसान कहलाने योग्य भी नही होता। 
बीजेपी ने तो अपने नेता को निकाल दिया, अब क्या मायावती भी ऐसा ही कदम उठा सकती हैं? नहीं करेंगी। क्योंकि वह सिर्फ दिखावा करती हैं राजनीति भी उनके लिए महज स्वयं को सर्वोपरि सिद्ध करने और प्रसिद्ध हासिल करने का जरिया मात्र है अन्यथा अपने सदस्यों को अबतक उन्हें दंडित कर देना चाहिए था। 
इतना सबकुछ होने के बाद उनकी ही पार्टी की महिला सदस्य राष्ट्रीय चैनल पर आकर यह करती हैं कि बीजेपी ने उस समय प्रदर्शन क्यों नहीं किया जब 'बहन जी' के खिलाफ उसके सदस्य ने अभद्र टिप्पणी की.... इसका तात्पर्य तो यही हुआ कि बीजेपी ने दंडित करके गलती की उसे प्रदर्शन करना चाहिए था..... और क्योंकि बीजेपी ने प्रदर्शन नही किया तो आप लोग स्त्रियों का अपमान करेंगे..... 
अब सवाल यही है कि यदि एक स्त्री ही दूसरी स्त्री के लिए ऐसे विचार रखती है तो स्त्री सम्मान की बात कौन करेगा? 
आज किसी राजनीतिक पार्टी की अध्यक्ष का महिला या दलित होना महिलाओं और दलितों के सम्मान का द्योतक नहीं हो सकता। आज महिला ही महिला की शत्रु बनी हुई है, यदि सर्वोपरि कुछ है तो वह है 'सत्ता की भूख'।
यदि सचमुच हम महिलाओं का सम्मान चाहते हैं तो साधारण महिलाओं को स्वयं अपने लिए लड़ना होगा न कि किसी मायावती पर निर्भर रहकर लाचार बने रहने से सम्मान प्राप्त हो जाएगा।
मालती मिश्रा 

शनिवार

लोकतंत्र को रोपित करने के लिए 
संग्रहित किए तुमने बीज,
कुछ बीज आ गए महत्वाकांक्षा के
कुछ स्वार्थ, देशद्रोह के उनके बीच।
धरने और आंदोलन के 
खाद से पोषित कर किया बलिष्ठ,
जनमत के पानी से उसको 
सींच कर बना दिया विशिष्ट।
लोकतंत्र और देशभक्ति के 
नाम का जो वृक्ष उगाया,
आज वो वृक्ष वायुमंडल को 
घोटालों से कर रहा प्रदूषित।
अपने स्वार्थ का फल पकाने को
उस वृक्ष पर गजेंद्र को लटकाया जाता है,
देशद्रोह करने वालों को
सम्माननीय बनाया जाता है।
यदि ऐसा हर किसान हो मन्ना
तो खेतों में बंदूक उगेंगे,
नही उगेगा मीठा गन्ना।
हर घर में गोले-बम बनेंगे,
नहीं चलेगा बापू का चरखा।
कृषि प्रधान इस देश में मन्ना
कैसी कृषि तुमने कर डाली,
देने चले थे समानाधिकार सबको
एकाधिकार की खुजली दे डाली।
बापू के आंदोलन को लजाया,
धरनों का तुमने नाम डुबाया।
अब आंदोलन की उपज एक ही
धरना का शहंशाह कहलाता है,
कर्म न करता खुद से कुछ भी
कर्मरत पर अभियोग लगाता है।
क्या यही लोकतंत्र देने आए थे,
या जनता का सुख हरने आए थे।
यदि नही तुम्हारा लाभ है इसमें
तो क्यों शांति से अब बैठ रहे,
क्यों अपने कुपोषित वृक्ष की जड़ को
खोदने की युक्ति न निकाल रहे।
क्यों नहीं उसे काटने को 
धरना आंदोलन करते हो,
या अपनी उपज से ही अब तुम
कुछ फल की आशा करते हो।।
मालती मिश्रा 


गुरुवार

'सेक्युलर' एक राजनीतिक शब्द

'सेक्युलर' एक राजनीतिक शब्द
आजकल समाज, देश और मुख्यतः मीडिया में 'सेक्युलर' शब्द बहुत प्रचलित है। कोई इस शब्द के प्रयोग में अपनी शान समझते हैं तो कुछ लोग इस शब्द को गाली की तरह भी प्रयोग करते हैं। लोग समझते हैं कि यदि वह अपने आप को सेक्युलर यानी धर्म-निरपेक्ष दर्शाएँगे तो समाज में उनका सम्मान बढ़ जाएगा। परंतु आजकल यह धर्म-निरपेक्षता या सेक्युलरिज्म महज स्वार्थ-सिद्धि का जरिया मात्र रह गया है। इस शब्द का प्रयोग सिर्फ और सिर्फ राजनीति में किया जाता है, और राजनीति मे सेक्युलरिज्म सिर्फ वोट-बैंकिंग का साधन है। आज जनता को समझना चाहिए उसे अपनी सोच-समझ को जागृत करना चाहिए और यह देखना चाहिए कि क्या सेक्युलर कहलाने वाले तथाकथित राजनीतिज्ञों से सचमुच समाज में समता और एकता की भावना पनपी है???? 
धर्म-निरपेक्ष का तात्पर्य है कि सभी धर्मों को समान समझना और उनका सम्मान करना....इसका तात्पर्य यह तो बिल्कुल नहीं कि हम किसी अन्य धर्म के सम्मान हेतु अपने धर्म का अपमान करें!!! साधारण सी बात है कि यदि हम अपने ही धर्म का सम्मान नहीं कर सकते तो दूसरों के धर्म का सम्मान कैसे कर सकते हैं? ऐसा सम्मान मात्र दिखावा और आडंबर ही हो सकता है सत्य नहीं। धर्म-निरपेक्षता का यह अर्थ तो कदापि नहीं हो सकता कि अन्य धर्म को बढ़ावा देने हेतु अपने धर्म का ह्रास करें। आजकल धर्म-निरपेक्षता के नाम पर यही हो रहा है, अपना मुस्लिम वोट बैंक बढ़ाने के लिए हिंदू राजनेता टोपी पहन कर नमाज तक पढ़ने का दिखावा करते हैं और यह सोचते हैं कि उनके हिंदू होने के कारण हिंदू वोट तो उनके हैं ही नमाज पढ़कर, इफ्तार पार्टी देकर वो मुस्लिम वोट भी हासिल कर लेंगे। इस एक विषय पर हमें मुस्लिमों की तारीफ जरूर करनी चाहिए कि वो अपने-आप को सेक्युलर दर्शाने के लिए अपना धर्म छोड़ मंदिरों में पूजा करने नहीं जाते, कहने का तात्पर्य हे़ै कि वो दिखावा नहीं करते।
आजकल सेक्युलरिज्म समाज में समानता नहीं विषमता का द्योतक हो चला है। जो लोग पहले दूसरों के धर्मों का सम्मान अपनी खुशी से करते थे वो आज अपने धर्म को अपमानित होते देख सिर्फ अपने धर्म की रक्षा में जुट गए हैं और होना भी यही चाहिए, यदि एक पुत्र अपनी माँ का अपमान करेगा तो दूसरे पुत्र का कर्तव्य है कि वह उसे रोके।
सेक्युलरिज्म ने हमें क्या दिया??? असुरक्षा, घृणा, अपमान,एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ और इन सबसे बड़ा और खतरनाक आतंकवाद!!! हम कितना भी कह लें कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता परंतु यह सभी जानते हैं कि चाहे आतंकवाद का धर्म न भी हो परंतु आतंकवादियों का धर्म जरूर होता है और राजनीतिक पार्टियों के नेता स्वयं को सेक्युलर और उदारवादी दिखाने के लिए तथा दूसरे धर्म विशेष के लोगों के प्रति स्वयं को निष्ठावान तथा समर्पित दिखाने के लिए उनके भीषण कुकृत्यों को भी सही सिद्ध करने का प्रयास करते हैं यही कारण है कि समाज ही नहीं देश में बड़े पैमाने पर अपराध और अपराधिक तत्व पनपते हैं। और एक धर्म जो सदा से स्वयं के अतिथि देवो भव के मूल्यों को लेकर चला वह आज अपने इन्हीं परोपकारी भावनाओं के कारण स्वयं को छला हुआ महसूस कर रहा है। इस 'सेक्युलर' शब्द ने समाज में समानता के भाव तो नहीं परंतु एक-दूसरे के धर्मों के प्रति घृणा भाव जरूर भर दिया है। इसने धर्मों के मध्य प्रतिद्वंद्वता का भाव भर दिया है जिसके कारण दो धर्म और समुदाय के मध्य दुश्मनी का भाव भरकर ये सेक्युलर सिर्फ तमाशबीन बन गए हैं, जब ये दुश्मनी की हवा धीरे-धीरे मद्धिम होने लगती है तो ये किसी न किसी का शिकार करके फिर से आग को हवा देकर दूर से तमाशबीन बन जाते हैं।

साभार....मालती मिश्रा 

बुधवार

बेटी

बेटी
बेटी को पराया कहने वालों
प्रकृति की अनुपम कृति यह प्यारी है,
जिस खुदा ने फूँके प्राण हैं तुमने
उसने यह अनमोल छवि सँवारी है।
नर को केवल तन दिया है पर
नारी में अपनी कला उतारी है,
तन-मन की कोमल यह कान्ता
भावों की अति बलशाली है।
जान सके इसके अन्तर्मन को
ऐसा न कोई बुद्धिशाली है,
भार्या यह अति कामुक सी
सुता बन यह सुकुमारी है।
स्नेह छलकता भ्राता पर है
पत्नी बन सबकुछ वारी है,
पा सकोगे इस सम संपत्ति कोई
जो पराया धन कह गुहारी है।

कैसी अनोखी तुलना है यह.......

इक कोख से जन्में दो संतान
एक पराया धन दूजा कुल की शान!!
कुल दीपक की प्रचंडता से जब-जब
लगा दहकने कुल की शान,
अपनी स्नेहमय शीतलता से इसने तब
कुल की शान सँवारी है।
बेटी को पराया....

मालती मिश्रा