बेटी को पराया कहने वालों
प्रकृति की अनुपम कृति यह प्यारी है,
जिस खुदा ने फूँके प्राण हैं तुमने
उसने यह अनमोल छवि सँवारी है।
नर को केवल तन दिया है पर
नारी में अपनी कला उतारी है,
तन-मन की कोमल यह कान्ता
भावों की अति बलशाली है।
जान सके इसके अन्तर्मन को
ऐसा न कोई बुद्धिशाली है,
भार्या यह अति कामुक सी
सुता बन यह सुकुमारी है।
स्नेह छलकता भ्राता पर है
पत्नी बन सबकुछ वारी है,
पा सकोगे इस सम संपत्ति कोई
जो पराया धन कह गुहारी है।
कैसी अनोखी तुलना है यह.......
इक कोख से जन्में दो संतान
एक पराया धन दूजा कुल की शान!!
कुल दीपक की प्रचंडता से जब-जब
लगा दहकने कुल की शान,
अपनी स्नेहमय शीतलता से इसने तब
कुल की शान सँवारी है।
बेटी को पराया....
बेटी को पराया....
मालती मिश्रा
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