पली बड़ी नाजों में थी
क्यों विधना ने रीत बनाई
बेटी क्यों होती है पराई
ससुर में देखूँ छवि पिता की
बाबुल तुमने यही समझाया
पिता ससुर ने सालों से
मुझको परदे में ही छिपाया
क्या मेरी शक्लो-सूरत बुरी है
जो मेरी किस्मत पल्लू से जुड़ी है
या मेरी वाणी में कटुता है
जो मुख खोलने पर प्रतिबंध लगा है
क्यों मैं स्वेच्छा से हँस नहीं सकती
क्यों स्वतंत्र हो जी नही सकती
बाबुल तुमने कभी न रोका
पर ससुर में वो भाव कभी न देखा
ननद के सिर पर हाथ फेरती
सासू माँ जब भी दिख जाएँ
माँ तेरे आँचल की ममता
उस पल मुझको बहुत रुलाए
कातर अँखियाँ तकती रहती हैं
अनजाने ही आस लगाए,
सासू माँ की ममता की कुछ बूँदें
काश मुझ पर भी बरस जाए।।।
मालती मिश्रा