छोड़ दे तू वो घर-बार
आजा तू अब मेरे साथ
मैं दूँगा तुझको परिवार
न पा सकी जिसमें सम्मान
तोड़ दे वो रिश्ता नादान
जीने की राह मैं सिखाऊँगा
तुझको सम्मान दिलाऊँगा
समझौते कर-कर इस जीवन में
तू तो जीना भूल गई
धर्म निभाने की शर्म में
बेबसी की सूली पर झूल गई
सब कष्ट तेरे मिटा दूँगा
गर मुझपर हो विश्वास तेरा
पग-पग पर पुष्प बिछा दूँगा
जो हाथ में आए हाथ तेरा
जीवनसंगिनी बनाकरके
अपना अभिमान बनाऊँगा
प्रेम मेरा निश्छल निस्वार्थ
ये दुनिया को बतलाऊँगा"
इन वादों के साथ में ही
इस सत्य को भी बतलाते तुम
अपनी सत्यता दर्शाने को
इक बार तो ये कह जाते तुम
कि" एक शर्त बस मेरी है
गर कहा नहीं तो छल होगा
बढ़ेंगे मेरे कदम वहीं
जहाँ परिवार का बल होगा
परिवार के इतर तुम मुझसे
न कोई भी आशा करना
परिवार से ही है मेरी
सांसों का चलना रुकना
गर अग्रज भगिनी न चाहेंगे
तो सिंदूर का रिश्ता जो सच्चा है
खून के रंग की तुलना में तो
वो सिंदूर का रंग भी कच्चा है।"
मालती मिश्रा
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