शनिवार

जन्माष्टमी


जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ..
लो आ गई आज
माखन मिश्री वाली सुबह
वो दही हांडी की शाम
वो वसुदेव की मथुरा
वो नन्द बाबा का गाम
वो यमुना का कूल
वो कदंब की डारी
वो गोपियन का उलाहना
सुनती जसुमति महतारी
नटखट कन्हैया की
बंसी सुनती गैया
कान्हा की तुनक पर
रीझती यशोदा मैया
वो रास रचैया
कर छत्र पुरंदर धारी
कालिया के नथैया
मोहन त्रिपुरारी
कंश के हंता
गिरधारी भगवंता
आज फिर से
जरूरत है तुम्हारी
अन्याय अहंकार से
दुनिया पगी है
तुमसे ही कान्हा अब
आस लगी है
कलयुग का कंस कान्हा
सब पर है भारी
यह पाप धरा से
हरो हे मुरारी।।
मालती मिश्रा 'मयंती'✍️
चित्र.. साभार..गूगल से

खून रिश्तों का

खून रिश्तों का
ऑर्डर...ऑर्डर...ऑर्डर...जज साहब ने मेज़ पर हथौड़ा पटकते हुए कहा। जज साहब की आवाज सुनकर लोगों की भीड़ से खचाखच भरे हुए अदालत के कमरे में अचानक सन्नाटा छा गया। आज अदालत में ऐसा केस आया था जो बेटियों की गरिमा पर कलंक था, जिसने माँ-बेटी के रिश्ते को कलंकित कर दिया था। रवि और किशोर दोनों भाइयों ने अपनी छोटी बहन दीक्षा पर मुकदमा किया था कि उसने अपनी माँ को किडनैप करके कहीं बंधक बनाकर रखा है और अब वह माँ के नकली या जबरन दस्तखत लेकर उनकी पुस्तैनी हवेली हथियाना चाहती है। माँ अपनी हवेली तीनों बच्चों के नाम करना चाहती थी पर यह भनक लगते ही दीक्षा उन्हें बहाने से अपने घर ले गई और तबसे उन्हें कहीं ऐसी जगह बंधक बनाकर रखा है जिसके विषय में वे दोनों नहीं जानते। लिहाज़ा कोर्ट के समन पर आज दीक्षा कोर्ट में हाजिर हुई है, उसे देखते ही वहाँ मौजूद हर व्यक्ति उसे न जाने क्या-क्या कह रहा है।

"मैं गीता पर हाथ रखकर कसम खाती हूँ कि जो कहूँगी सच कहूँगी, सच के सिवा कुछ न कहूँगी।" दीक्षा ने कटघरे में खड़े होकर गीता पर हाथ रखकर कसम खाई।

"श्रीमती दीक्षा जी क्या यह सत्य है कि आप रवि और किशोर जी की इकलौती बहन हैं और  आपकी माता जी अपनी हवेली में तीनों को बराबर का हिस्सेदार बनाना चाहती थीं?"

"जी, सत्य है।"
"फिर आपने उन्हें किडनैप क्यों किया? भाइयों के वकील ने कहा।

"मैंने उन्हें किडनैप नहीं किया, वो अपनी मर्जी से मेरे साथ आई हैं।"

"यदि अपनी मर्जी से गई हैं तो आप उन्हें उनके बेटों से मिलने क्यों नहीं देतीं?"

"क्योंकि वो खुद मिलना नहीं चाहतीं।"

"आप झूठ बोल रही हैं, आपके दोनों भाइयों का कहना है कि जब आपको पता चला कि आपकी माँ अपनी वसीयत में आप तीनों को बराबर का हकदार बनाने वाली थीं तो आपने बहाने से उन्हें अपने घर बुलाया और उन्हें वहीं बंधक बना लिया, तब से आपने उन्हें किसी से मिलने नहीं दिया, कोई नहीं जानता कि वो अब कैसी हैं? जीवित भी हैं या नहीं! और अब आपने उनके नाम से अपने भाइयों को हवेली खाली करने के लिए नोटिस भेजा है। बताइए क्या यह सच है?"

"यह सरासर झूठ है जज साहब।"

"आपके पास अपनी बात को सही साबित करने के लिए कोई सबूत है?" वकील ने कहा।

"जी है, मेरी माँ है वो सबूत।" दीक्षा बोली।

अदालत में फिर से खुसफुसाहट शुरू हो गई, सभी एक-दूसरे का मुँह देखने लगे। भाइयों के चेहरों के रंग उड़ गए। दोनों एक-दूसरे को ऐसे देखने लगे जैसे आँखों ही आँखों में कुछ बातें कीं और किशोर उठकर बाहर जाने लगा। तभी दीक्षा बोल पड़ी-
"कहाँ जा रहे हैं दादा? माँ बाहर नहीं मिलेंगी आपको।"
किशोर की जैसे चोरी पकड़ी गई हो वह बिना कुछ बोले झेंपकर वहीं बैठ गया।

हाँ तो मिसेज दीक्षा आप कह रही थीं कि आपकी माँ सबूत है, तो बताइए कहाँ हैं आपकी माँ?" वकील का ध्यान किशोर की ओर देखकर जज ने पूछा।
"जज साहब वो यहीं इसी अदालत में हैं, आपकी अनुमति हो तो मैं उन्हें यहाँ लाना चाहूँगी।" दीक्षा बोली।
उसकी बात सुनते ही सभी एक-दूसरे को ऐसे देखने लगे जैसे पहचानने की कोशिश कर रहे हों।
"अनुमति है।" जज ने कहा।
दीक्षा कटघरे से निकलकर दर्शक दीर्घा की अंतिम पंक्ति में पहुंची, पीछे से दूसरी सीट पर कोने की ओर बैठी एक महिला उठी जिसने चेहरे को छिपाने के लिए बड़े-बड़े ग्लास का मोटी सी फ्रेम वाला चश्मा लगा रखा था तथा साड़ी का पल्लू आधे कपाल तक लटका हुआ था जिससे कोई पहली ही नजर में आसानी से उन्हें नहीं पहचान सकता था। वह वहाँ से निकलकर धीरे-धीरे बाहर आईं और कटघरे की ओर बढ़ीं।

"जज साहब मैं जो भी कहूँगी सच कहूँगी। मैं शारदा देवी रवि, किशोर और दीक्षा की माँ हूँ। मुझे मेरी बेटी ने किडनैप नहीं किया बल्कि मैं अपने बेटों से अपनी जान बचाकर भागी हूँ।"
ऑर्डर...ऑर्डर। अचानक उठे लोगों के शोर को चुप कराते हुए जज ने कहा- "ये आप क्या कह रही हैं? पूरी बात बताइए।"

"जज साहब हमारी पुस्तैनी हवेली हमारे पूर्वजों की धरोहर है। मेरे बाद मेरे बच्चे ही इसके वारिस होते, लेकिन मेरे बेटों के मन में लालच आ गया और ये उस हवेली को किसी बिल्डर को बेचना चाहते थे। जब मैं दस्तखत के लिए तैयार नहीं हुई, तो इन्होंने मुझे कोई दवा देनी शुरू कर दी, जिससे मैं बीमार रहने लगी। कभी-कभी तो मेरे हाथ-पैर बेजान से हो जाते।" अदालत में इतना सन्नाटा छाया हुआ था कि सुई गिरने की आवाज़ भी सुनाई दे जाती।
"आपको कैसे पता चला कि आपके साथ जो भी हो रहा है वो दवा के कारण हो रहा है?" वकील ने कहा।
"एक दिन मैं सो रही थी, रवि मुझे जगा रहा था पर मैं हिल नहीं पा रही थी लेकिन मैं सब सुन सकती थी, जब मेरे शरीर में कोई हरकत नहीं हुई तो वह किशोर से बोला कि ये कुछ रिस्पॉन्स नहीं कर रही हैं, कहीं तूने डोज़ ज्यादा तो नहीं दे दिया? हमें इन्हें जिन्दा रखना है, मर गईं तो सारे किए कराए पर पानी फिर जाएगा। जज साहब मैं हिल नहीं पा रही थी पर उस समय मेरी आत्मा रो रही थी, मेरी परवरिश पर मुझे धिक्कार रही थी। उसके बाद जब मैं थोड़ी ठीक हुई तो मैंने खाना-पीना छोड़ दिया ताकि ये मुझे कोई दवा न दें सकें और मौका पाकर मैंने अपनी बेटी को फोन किया और सबकुछ बता दिया। वो आई और मुझे डॉक्टर को दिखाने के बहाने अपने साथ ले गई, तब से मेरा इलाज चल रहा है। जज साहब! जिस हवेली के कारण मेरे बेटों ने रिश्तों का खून कर दिया, अब मैंने उस हवेली से इन्हें बेदखल करके उसमें वृद्धाश्रम बनवाने का फैसला लिया है।"

रवि और किशन को मानो काटो तो खून नहीं, उन्हें कहाँ पता था कि माँ को सबकुछ पता है, नहीं तो वो अदालत तक आने की भूल ही न करते।

©मालती मिश्रा 'मयंती'✍️

रविवार

हम भारत के वासी हैं

हम भारत के वासी हैं
हम भारत के वासी हैं
ये सदा गर्व से कहते हैं,
पर वीर जवानों के कारण ही
हम सदा सुरक्षित रहते हैं।

स्वजनों का स्नेह छोड़कर
ये सीमा पर डटे ये रहते हैं,
सर्दी गर्मी या वर्षा हो
सब हंस-हंस कर सहते हैं।

हम चैन से घरों मे सोते हैं क्योंकि
वो रातों को जागते हैं,
घर की सुरक्षा देकर हमको
खुद खुले अंबर तले रहते हैं।

हमारी सुरक्षा की खातिर वो
अपनी परवाह न करते हैं
आंधी, शीत, वर्षा या तूफां
सदा उपस्थित रहते हैं।

हे भारत नंदन वीर धरा के
मैं तुमको अभिनंदन करती,
एक-एक बलिदान तुम्हारे
को शत-शत वंदन करती।।
मालती मिश्रा 'मयंती'✍️