एक समय था कि समाज के आम लोग स्वयं को राजनीति से दूर रखने में ही अपनी शराफत समझते थे, कहा जाता था कि राजनीति एक दलदल है उसमें जो उतर गया वो बुराइयों से अछूता नहीं रह सकता।हमारे माननीय मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी राजनीति को काली और गंदी कहा था परंतु क्या हुआ स्वयं इसी राजनीति में आए और इसकी कालिमा को और गहरी कर दिया। आजकल सर्व साधारण लोग भी राजनीति को सफलता की सीढ़ी मान बैठे हैं और इस सफलता की ऊँचाई पर पहुँचने की चाह में इतने गिरते चले जाते हैं कि कब राष्ट्रद्रोही बन जाते हैं उन्हें यह जानने की आवश्यकता ही महसूस नहीं होती और चंद सत्ता की भूखी राजनीतिक पार्टियाँ ऐसे लोगों को अपनी कुर्सी तक पहुँचने का चारा बना लेते हैं, इसके लिए वे इन्हें सारी सुविधाएँ, सुरक्षा मुहैया करवाती हैं और ये मूर्ख सपनों के आसमान में उड़ने लगते हैं।
कन्हैया वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इसका जीता जागता उदाहरण है, न ही उसे ये पता है कि वो चारा मात्र बन रहा है और न ही उसे ये पता कि दिल्ली ने एक केजरी पैदा करके काफी कुछ सिर्फ एक साल में भुगत लिया है अब दूसरा केजरी तो पैदा नहीं होने देगी।
कन्हैया की मूर्खता का अंदाजा उसके भाषण से भी लगाया जा सकता है। वह मोदी जी से कह रहा है...हम क्या मांगे आज़ादी..
आज़ादी वह भी गरीबी से...क्या इस मूर्ख को यह नहीं पता कि इस देश को गरीबी मोदी जी ने नहीं, साठ साल के कांग्रेस शासन ने दी है। यह गरीबी इसकी आँखों पर लालच की पट्टी बाँधने वाले बिहार के लालू-नीतीश ने दी है। बल्कि मैं कहूँगी कि जिस गरीबी की तुम बात कर रहे हो,वह किसी और ने नहीं तुम्हारे ही वामपंथी नेताओं ने दी है। जिन्हें तुम अपना आदर्श मानते हो। यदि तुम्हारी अक्ल से कुछ देर के लिए लालच का परदा हट सके तो एक बार गौर से बंगाल, बिहार जैसे राज्यों की तरफ देखो...तुम्हें सब समझ आ जाएगा। इस देश की गरीबी मोदी की देन नहीं है। इस देश की गरीबी तुम जैसे मूर्ख लड़को की देन है। जो मेहनत करने के बजाए...कैंपस में नारे लगाने में अपनी शान समझते हैं। तुम जैसों को गरीबी से लड़ना नहीं है। उसे पालना, पोसना और बड़ा करना है ताकि तुम कल नेता बन सको। तुम्हें तुम्हारी गरीबी की इतनी ही चिंता होती तो कॉलेज खत्म होने के बाद तुम कैंपस में नेतागीरी नहीं कर रहे होते। तुममें गरीबी से लड़ने की समझ होती तो कैंपस में लेदर का जैकिट और जींस की पैंट पहनकर स्टाईल मारने की जरूरत नहीं होती। तुम्हें गरीबी इतनी ही डसती तो तुम गांधी की तरह अपने कपड़े अब तक दान कर चुके होते। तुम चाहते तो किसी होटल, दुकान, मॉल या शो रूम में पार्ट टाइम काम कर रहे होते। महीना दर महीना अपने मां-पिता को चार पैसे भेज रहे होते। लेकिन नहीं... जेएनयू की सारी मुफ्त सुविधाएं पाकर तुम मगरूर हो गए हो। तुम्हें काहे की गरीबी कि चिंता। गरीबी से तुम नहीं बल्कि आम करदाता लड़ रहे हैं। जो अपना टैक्स इसलिए कटवा रहे हैं ताकि गरीब घर से आए बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा मिल सके। ताकी पढ़-लिखकर वो गरीबी के नारे नहीं बल्कि उसे दूर करने के उपाय बता सकें और अपने साथ इस देश की भी गरीबी दूर कर सकें।
असल बात तो यह है कि तुम्हें गरीबी से कोई लेना देना नहीं है। तुम्हें तो गरीबी के नाम पर अपना लाल परचम लहराना है ताकी अगले सौ सालों तक तुम इस देश में गरीब और गरीबी को बनाए रख सको। यदि तुम्हें गरीबी की इतनी ही चिंता है तो अपने नज़दीकी बैंक शाखा में जाओ। वहां से स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया जैसी सरकारी योजना का लाभ उठाओ। लोन के लिए अप्लाई करो। काम करो। अपना एक व्यवसाय खड़ा करो। चार गरीबों को नौकरियां दो। ये कैंपस में खड़े होकर नारे लगाने से गरीबी दूर होने वाली नहीं है। शायद तुम नहीं जानते कि गरीबी का एक नारा सौ गरीबो को जन्म देता है। कहां तो तुम कहते हो कि गरीबों को भीख नहीं रोज़गार चाहिए। यदि ऐसा है तो एक बार फिर अपने बिहार, अपने बंगाल की तरफ देखो। क्यों वहां से सारे कल कारखाने तबाह कर दिए गए। पूछो अपने आकाओं से कि क्या उन्होंने ऐसा कर गरीबी खत्म की या उसे बढ़ाया।
जीवन में कुछ सकारात्मक सोचो। लाल सलाम कहने भर से गरीबी दूर हो जाती तो अब तक बंगाल तरक्की के रास्ते पर होता। लाल सलाम कहने भर से गरीबी से जंग जीती जाती तो इस दुनिया की आधे से अधिक आबादी लाल होती। सूरज भी लाल निकलता और बसंत का रंग भी लाल कहा जाता। चीन का लाल झण्डा भी आज दुनिया में लाल सलाम की वजह से नहीं अपने औद्योगिक विकास की वजह से बुलंद है।
हंसी तो तब आती है जब तुम गरीबी से ल़ड़ने के लिए राहुल और केजरीवाल जैसे नेताओं के साथ खड़े होते हो। ऐसे नेता जिन्होंने कभी गरीबी का ओर-छोर तक देखा नहीं है। जिन्हे ये भी नहीं पता कि भूख-प्यास किस चिड़िया का नाम है, जो गरीबों के साथ खुद को खाना खाते हुए दिखाने के लिए स्टूडियो में झोपड़ी का सेट लगवाकर शूटिंग करता है और मीडिया में फैलाता है कि गरीब किसान के साथ खाना खाया, जिन्हें नहीं मालूम की कड़कड़ाती ठंड में बिना कपड़े के कैसे रात गुजारी जाती है। तुम ऐसे नेताओं के साथ गरीबी की जंग लड़ना चाहते हो?
अब भी वक्त है सम्हल जाओ। तुम नहीं जानते कि तुम्हारे ये गरीबी के नारे तुम्हारे आकाओं को कितना आनंद देते हैं। तुम्हें तुम्हारे भूखे पेट की इतनी ही चिंता है तो अपने ही नेता राजब्बर से उस ढ़ाबे का पता पूछो जहां 5 रुपए में भर पेट खाना मिलता है।
सरकार, मंत्री, सन्तरी, पुलिस, विपक्ष सभी कन्हैया में इतने व्यस्त है कि पकिस्तान को खुद बताना पड़ रहा है भाई आंतकी भेजे है ,फुर्सत मिले तो देख लेना।
3000 रुपये कमाने वाली गरीब माँ का बेटा कन्हैया, जब 75लाख वकीलों की फीस देने के बाद सशर्त जमानत लेकर 30लाख की फॉर्चूनर से तिहाड़ से बाहर आता है तब कसम कजरी की, अपने देश की गरीबी पर इतराने को जी चाहता है!
मात्र 8300 लोगो द्वारा चुना गया छात्र नेता 125 करोड़ लोगो द्वारा चुने गये प्रधानमंत्री का मजाक उड़ाता है और मिडिया उसका सीधा प्रसारण करता है और कितनी आजादी चाहिये ?
अंत में यही कहना चाहूँगी कि यदि गरीबी ऐसी ही बेबस होती है, यदि गरीबी को बड़े-बड़े नेताओं द्वारा इतना ही सम्मान,इतनी प्राथमिकता मिलती है तो क्यों कोई गरीबी छोड़ना चाहेगा???
यदि JNU में गरीबों को इतना सम्मान मिलता है तो क्यों कोई गरीब छात्र जे एन यू छोड़ना चाहेगा?? वहीं रहेगा, गरीब बना रहेगा, नेतागिरी करेगा पर गरीबी को गले लगा कर रखेगा ।