दुनिया की भीड़ में
रोज मर्रा की भागमभाग मे
हमारा रिश्ता न जाने कहाँ खो गया
सूर्य की लाली लाती थी जो मुस्कान
वो लाली वो मुस्कान
सूरज की आखिरी किरण बन गए
सदा के लिए लबों से जुदा हो गए
जीवन एक इम्तहान है
मानकर चले थे
पर्चा था कठिन हल न हुए
मेहनत और लगन सब धरे रह गए
बातें तो बहुत मचलती हैं दिल में
लबों तक आते ही खो जाती हैं शून्य में
अनदेखी-अनजानी सी कोई दीवार
खड़ी हो गई है हमारे दरमियाँ
चाहा बहुत कि गिरा दें इसे
पर सहारा देने वाले हाथ
न जाने कहाँ खो गए
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