माँ-बाबा की सिखाई बातों को
मैंने आँख बंद कर स्वीकार किया
सारा दिन सारी रातों को
पढ़ने में ही गुजार दिया
खेलकूद और मौज-मस्ती ने
मुझे भी खूब रिझाया था
पर मेहनत करके ही जीतोगे
मैंने मूलमंत्र ये पाया था
बाबा की बस एक बात
मैने जीवन में उतारा था
जीवन गर मौज में जीना है
तो अभी मौज का त्याग करो
शिक्षारूपी क्रीडाक्षेत्र में
हर संभव जीत का प्रयास करो
ध्यान रहे कि जीवन में
हक किसी का मत हरना
आरक्षण के खैरात की खातिर
स्वाभिमान को आहत मत करना
जाग-जाग कर रातों को मैंने
नींदों का व्यापार किया
बारी आई लाभ कमाने की तो
आरक्षण ने बाजी मार लिया
जीवन की रणभूमि में
आरक्षण का हथियार चला
मेहनत और गुणवत्ता के शस्त्रों को
बेरहमी से नकार दिया
सज्जनों की कही बातें
मुझको याद फिर आती हैं
अयोग्यता बैठी कुर्सी तोड़े
योग्यता हुकुम बजाती है |
मालती
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