शनिवार

आई सुहानी नागपंचमी



डम डम डमरू बाजे, 
गले में विषधर साजे।
जटाओं में गंगा मां करतीं हिलोर,
आई सुहानी नागपंचमी का भोर।

द्वार सम्मुख नाग बने,
गोरस का भोग लग।
करना कृपा हम पर हे त्रिपुरार,
दूर करो जग से कोरोना की मार।

सखियों में धूम मची, 
धानी चूनर से सजीं।
गुड़िया बनाए अति सुंदर सजाय,
भाई-बहन मिल गुड़िया मनाय।

सरकंडे शस्त्रों में ढले,
भाई सब साथ चले।
रणक्षेत्र बने देखो नदिया के तीर,
गुड़िया पीटेंगे आज बहनों के वीर।

सावन की हरियाली, 
झूलों से सजी डाली।
झूल रहीं संग मिल गाँवन की नार,
चहुँदिशि में गूँज रही कजरी मल्हार।

©मालती मिश्रा 'मयंती'✍️

मंगलवार

ऐ जिंदगी गले लगा ले

ऐ जिंदगी गले लगा ले
ऐ जिंदगी गले लगा ले...

विरक्त हुआ मन तुझसे जब भी
तूने कसकर पकड़ लिया
नई-नई आशाएँ देकर
मोहपाश में जकड़ लिया
ऐ जिंदगी क्या यही तेरे रंग
जिनको मैंने चाहा था
तेरे हर इक गम को मैंने
गले लगा के निबाहा था
भूल के मेरी नादानी को
फिर आशा की किरण जगा दे
ऐ जिंदगी गले लगा ले।

साया भी जब साथ छोड़ दे
ऐसा गहन अँधेरा है
जीवन की जो आस जगा दे
ऐसा न कोई सवेरा है
तेरे हर पल अंक में भरकर
उसको जीभर जीती हूंँ
तार-तार हो चुके हृदय को
उम्मीदों के तार से सीती हूँ
क्यों बन गई आज तू निष्ठुर
क्या है मेरा कसूर बता दे
ऐ जिंदगी गले लगा ले।

©मालती मिश्रा 'मयंती'✍️