डम डम डमरू बाजे,
गले में विषधर साजे।
जटाओं में गंगा मां करतीं हिलोर,
आई सुहानी नागपंचमी का भोर।
द्वार सम्मुख नाग बने,
गोरस का भोग लग।
करना कृपा हम पर हे त्रिपुरार,
दूर करो जग से कोरोना की मार।
सखियों में धूम मची,
धानी चूनर से सजीं।
गुड़िया बनाए अति सुंदर सजाय,
भाई-बहन मिल गुड़िया मनाय।
सरकंडे शस्त्रों में ढले,
भाई सब साथ चले।
रणक्षेत्र बने देखो नदिया के तीर,
गुड़िया पीटेंगे आज बहनों के वीर।
सावन की हरियाली,
झूलों से सजी डाली।
झूल रहीं संग मिल गाँवन की नार,
चहुँदिशि में गूँज रही कजरी मल्हार।
©मालती मिश्रा 'मयंती'✍️