डम डम डमरू बाजे,
गले में विषधर साजे।
जटाओं में गंगा मां करतीं हिलोर,
आई सुहानी नागपंचमी का भोर।
द्वार सम्मुख नाग बने,
गोरस का भोग लग।
करना कृपा हम पर हे त्रिपुरार,
दूर करो जग से कोरोना की मार।
सखियों में धूम मची,
धानी चूनर से सजीं।
गुड़िया बनाए अति सुंदर सजाय,
भाई-बहन मिल गुड़िया मनाय।
सरकंडे शस्त्रों में ढले,
भाई सब साथ चले।
रणक्षेत्र बने देखो नदिया के तीर,
गुड़िया पीटेंगे आज बहनों के वीर।
सावन की हरियाली,
झूलों से सजी डाली।
झूल रहीं संग मिल गाँवन की नार,
चहुँदिशि में गूँज रही कजरी मल्हार।
©मालती मिश्रा 'मयंती'✍️
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 25 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंदिव्यता जी बहुत-बहुत आभार आपका
हटाएं
जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
26/07/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
कुलदीप ठाकुर जी बहुत-बहुत आभार आपका
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंआ० सुशील कुमार जोशी जी हार्दिक आभार
हटाएंआदरणीया मैम,
जवाब देंहटाएंनाग पंचमी उत्सव का बहुत सुंदर वर्णन। पढ़ के मन में ही उत्सव का आनंद अनुभव होने लगा।
अनंता सिन्हा जी रहे दिल से शुक्रिया
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंअनुराधा चौहान जी हृदयतल से धन्यवाद आ०
हटाएंनागपंचमी का सजीव चित्रण
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
बधाई
आदरणीय ज्योति करें जी 🙏नमन आपको
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