सोमवार

बचपन की राखी

रंग बिरंगे धागों से सजी राखी मन को अब भी लुभाती है
सच में! वो बचपन की राखी बहुत याद आती है
वो भाई संग लड़ना-झगड़ना, राखी नहीं बाधूँगी ऐसी धमकी देना
और रंग-बिरंगी राखियों से सजे बाजार देखकर मन ही मन खुश हो जाना
भाइयों के लिए सबसे अच्छी राखी चुनना और उसे खरीदने के लिए गुल्लक फोड़ देना
भाई बिन सूनी ये राखी मन ही मन वही सारे दृश्य दुहराती है
सच में! वो बचपन की राखी बहुत याद आती है

चौकी पूरना, और थाली में रोली कुमकुम चंदन अक्षत मिठाई संग राखी सजाना
और मनुहार भरी नजरों से फिर भाई को तकना,
सारे लड़ाई-झगड़े का एक ही पल में फुर्र हो जाना
बस हमारी सारी दुनिया हमारे बंधन तक ही सिमट आना
पलकों तक आकर ठहरी बूँदें, मन ही मन सजी उसी थाल में आकर लुप्त हो जाती हैं।
सच में! वो बचपन की राखी बहुत याद आती है।

मालती मिश्रा 'मयंती'✍️

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