व्यथित हृदय मेरा होता था
देख के बार-बार,
राष्ट्रवाद को जब जहाँ मैं
पाती थी लाचार।
संविधान ने हमें दिया है
चयन हेतु अधिकार,
राष्ट्रहित के लिए बता दो
किसकी हो सरकार।
लालच की विष बेल बो रहे
करके खस्ता हाल,
जयचंदों को आज बता दो
नहीं गलेगी दाल।
चयन हमारा ऐसा जिससे
बढ़े देश का मान,
विश्वगुरु फिर कहलाएँ और
भारत बने महान ।।
©मालती मिश्रा 'मयंती'✍️
जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
30/08/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
रचना को शामिल करने और सूचित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद कुलदीप ठाकुर जी
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