ऐ जिंदगी गले लगा ले...
विरक्त हुआ मन तुझसे जब भी
तूने कसकर पकड़ लिया
नई-नई आशाएँ देकर
मोहपाश में जकड़ लिया
ऐ जिंदगी क्या यही तेरे रंग
जिनको मैंने चाहा था
तेरे हर इक गम को मैंने
गले लगा के निबाहा था
भूल के मेरी नादानी को
फिर आशा की किरण जगा दे
ऐ जिंदगी गले लगा ले।
साया भी जब साथ छोड़ दे
ऐसा गहन अँधेरा है
जीवन की जो आस जगा दे
ऐसा न कोई सवेरा है
तेरे हर पल अंक में भरकर
उसको जीभर जीती हूंँ
तार-तार हो चुके हृदय को
उम्मीदों के तार से सीती हूँ
क्यों बन गई आज तू निष्ठुर
क्या है मेरा कसूर बता दे
ऐ जिंदगी गले लगा ले।
©मालती मिश्रा 'मयंती'✍️
विरक्त हुआ मन तुझसे जब भी
तूने कसकर पकड़ लिया
नई-नई आशाएँ देकर
मोहपाश में जकड़ लिया
ऐ जिंदगी क्या यही तेरे रंग
जिनको मैंने चाहा था
तेरे हर इक गम को मैंने
गले लगा के निबाहा था
भूल के मेरी नादानी को
फिर आशा की किरण जगा दे
ऐ जिंदगी गले लगा ले।
साया भी जब साथ छोड़ दे
ऐसा गहन अँधेरा है
जीवन की जो आस जगा दे
ऐसा न कोई सवेरा है
तेरे हर पल अंक में भरकर
उसको जीभर जीती हूंँ
तार-तार हो चुके हृदय को
उम्मीदों के तार से सीती हूँ
क्यों बन गई आज तू निष्ठुर
क्या है मेरा कसूर बता दे
ऐ जिंदगी गले लगा ले।
©मालती मिश्रा 'मयंती'✍️
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 14 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया, किसी तकनीकी समस्या के कारण कोई भी टिप्पणी दिखाई नहीं दी आज सभी दिखाई दिए हैं।
हटाएंनई-नई आशाएँ देकर
जवाब देंहटाएंमोहपाश में जकड़ लिया
सुन्दर प्रस्तुति
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय
हटाएंबहुत सुंदर मीता! व्यथा में भीगे स्वर।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद मीता
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंनवीन जी धन्यवाद
हटाएंशानदार
जवाब देंहटाएं🙏
हटाएंधन्यवाद ओंकार जी
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीया।
जवाब देंहटाएं