रविवार

माँ केवल माँ ही होती है

माँ केवल माँ ही होती है..

संतान   हँसे  तो  हँसती  है।
मन ही मन खूब विहँसती है।।
अपनी नींद त्याग कर माँ तो।
शिशु  की नींद सदा सोती है।
माँ केवल माँ ही होती है।।

खोकर निज अस्तित्व हमेशा
शिशु  की पहचान बनाती है।
उसके भविष्य की ज्योति हेतु
निज  वर्तमान  सुलगाती है।।
खुद के वो सपने त्याग सदा
बच्चे  के  स्वप्न  सँजोती  है।
माँ केवल माँ ही होती है।।

घने पेड़ की छाया से भी
माँ  शीतल  छाया  देती है।
निष्ठुर कष्टों में बच्चों को
निज ममता से ढक लेती है।।
सूखे बिस्तर पर पुत्र सुला
खुद गीले में वह सोती है।
माँ केवल माँ ही होती है।।

मालती मिश्रा 'मयंती'✍️

3 टिप्‍पणियां:

  1. रवीन्द्र सिंह जी मेरी रचना को सम्मिलित करने और सूचना देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. उत्तर
    1. धन्यवाद नवीन जी, कुछ बदला है क्या आपने?

      हटाएं

Thanks For Visit Here.