किस ओर जा रहा देश ये मेरा.....
जिसने दिया शून्य का ज्ञान
जिसपर करते थे हम मान
जो कहलाया विश्व गुरू
विज्ञान का जहाँ से जन्म शुरू
सत्ता के लोभी जीवों ने
डाला इस पर डेरा...
किस ओर जा रहा देश ये मेरा...
कालिदास, पाणिनी से विद्वान
आर्यभट्ट, चाणक्य महान
इस धरती पर ले जन्म जिन्होंने
ज्ञान से बढ़ाया इसका मान
गंगा-जमुना, सतलुज की धारा ने
जिसका पाँव पखेरा..
किस ओर जा रहा देश ये मेरा...
गाँधी, बुद्ध की ये धरती
जिसे पाने को दुनिया मरती
सम्राट अशोक जिसका सिर-मौर्य
गाता विश्व जिसकी संस्कृति का शौर्य
देश विरोधी जयचंदों ने
आज है उसको घेरा
किस ओर जा रहा देश ये मेरा....
अपनी सुसंस्कृति की खातिर
पूजा गया सदा जो देश
उसी संस्कृति का पालन आज
पैदा करने लगा है क्लेश
पाश्चात्य आडंबरों ने आकर
मान्यताओं को है बिखेरा
किस ओर जा रहा देश ये मेरा...
पूजी जाती थी जो नारी
लगती है आज वही भारी
जन्म से पहले मार दिया
जन्मी तो दुत्कार दिया
नारी की अवमानना में किसी ने
कोई कसर न छोड़ा
किस ओर जा रहा देश ये मेरा...
जिस देश की धरती शस्य श्यामला
पेट भरे बिन पूछे धर्म
आज उसी के चंद सपूत
भरें तिजोरी किए बिन कर्म
बाधा बने जो इनकी राहों का
असहिष्णु बता उसे ही घेरा
किस ओर जा रहा देश ये मेरा....
किस ओर....
साभार....मालती मिश्रा
बहुत बहुत ही शानदार रचना की प्रस्ुतुति। बेहद सार्थक रचना। अच्छे बिंदुओं को उठाया है आपने।
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, आपकी टिप्पणी मेरी लेखनी को प्रेरित करेगी
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, आपकी टिप्पणी मेरी लेखनी को प्रेरित करेगी
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संजय भास्कर जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संजय भास्कर जी
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