क्यों भागते हैं लोग खुशियों के पीछे
खुशियाँ तो हैं छलावा,
छिपा कर दर्द दिल में
करते हैं सब दिखावा
चिपका कर होठों पर झूठी मुस्कान
लिए फिरते हैं दिल में दर्दोंं का तूफान
फिर भी खुशियों को ही मानके
अपना सच्चा हमसफर,
दुखों से छुड़ाते रहते दामन
दर्द कहता सच्चा दोस्त हूँ मैं तेरा
कर मुझ पर ऐतबार ऐ इंसान....
खुशियाँ आएँगीं.....
झलक दिखलाकर चली जाएँगीं,
मैं सदा रहूँगा साथ तेरे
तू जोड़कर रिश्ता अपना...
मुझसे सच्चे दिल से
फिर देख दर्द में भी कैसे....
मुस्कुराता है तू ,
पाएगा हमेशा साथ मुझे....
कभी तन्हा खुद को पाएगा न तू
साभार....मालती मिश्रा
खूबसूरत रचना।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद राजेश कुमार जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद राजेश कुमार जी
जवाब देंहटाएंख़ुशी सभी तलाशते हैं भले ही वे छलावा हैं। सब जानकार भी अनजान बने रहना हमें अच्छा लगता है। .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
धन्यवाद कविता जी आपके शब्द मेरे लिए अनमोल हैं
जवाब देंहटाएंवाकई, निःशब्द रह गया!
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद संजय जी
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद संजय जी
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