यह सत्य सनातन है कि अच्छाई को बार-बार परीक्षा के मार्ग से गुजरना पड़ता है किंतु यह भी सत्य है कि बार-बार आग में तपने के बाद सोना कुंदन बन जाता है | जब सतयुग में भी सत्य को परीक्षा के दुर्गम मार्गों पर चलना पड़ता था तो यह तो कलयुग है फिर आज यदि हम सिर्फ यह सोचकर कि "जीत तो सत्य की ही होगी" निष्क्रिय होकर बैठ जाएँ तो इसमें कोई संदेह नहीं कि सत्य को हार का मुँह देखना पड़े...गलत नहीं कहा गया कि "इक दिन ऐसा कलयुग आएगा, हंस चुगेगा दाना-दुनका कौवा मोती खाएगा" आज यही सत्य चहुँओर व्याप्त है, आखिर समय की मार से न कोई बचा है न बचेगा फिरभी समय का फेर समझकर अपने कर्तव्यों से विमुख नहीं होना चाहिए...एकबार फिर जो परीक्षा की अग्नि में तपकर निखरे वही कुंदन...
शुभरात्रि
साभार.....मालती मिश्रा
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