'इतिहास को इतिहास ही रहने दो नया आयाम न दो' जी हाँ जिस तरह 'गुड़गाँव' का नाम बदल कर 'गुरुग्राम' और 'औरंगजेब' रोड का नाम बदल कर 'डॉ० कलाम रोड' कर दिया गया तो कुछ लोगों का ऐतराज जताना तो बनता है, भई बड़े प्यार से इन नामों को वर्षों से पोषित किया गया था और अचानक आकर कोई गैर लुटियंस सरकार इन्हें बदल दे!!! घोर अन्याय है, एक तो सत्ता हाथ से जाने का दर्द और उस पर नश्तर चलाने का काम ये नाम परिवर्तन की प्रक्रिया से हो रहा है।
खैर ये तो रही कटाक्ष की बात अब आते है सत्य पर....
अभी हाल ही में जनरल वी० के० सिंह ने 'अकबर' रोड का नाम बदल कर 'महाराणा प्रताप' रोड करने की माँग की है, इस बात से ही कांग्रेसियों में अच्छी खासी खलबली और विरोध का वातावरण है, फिर ऋषि कपूर के ट्वीट (जिसमें उन्होंने गाँधी परिवार को आइना दिखा दिया है) ने आग में घी डालने का काम किया है, विरोधियों के तोते उड़े हुए हैं उन्हें सबकुछ अपने हाथों से फिसलता हुआ महसूस हो रहा है। सचमुच छोटी-छोटी सी बातों, छोटे-छोटे से कार्यों का भी विरोध प्रदर्शन इतने बड़े स्तर पर होना यह दर्शाता है कि इतने सालों में कांग्रेस ने सत्ता में रहकर सिर्फ अपने चापलूसों की फौज बढ़ाई है जो समय आने पर उसके नमक का कर्ज चुका सकें, विपक्ष में भी कांग्रेस का सिर्फ एक ही मकसद है सरकार के विकासोन्मुख कार्यों को बाधित करना, इससे देश का विकास बाधित हो रहा है इस बात से उन्हें कोई लेना देना नहीं।
ऋषि कपूर जी ने कहा कि देश की संपत्ति और सड़कों पर किसी एक परिवार की बपौती नहीं तो क्या गलत कहा? सत्य ही तो है जहाँ देखो वहीं गाँधी परिवार के नाम पर सड़कें, इमारतें, अस्पताल, योजनाएँ, पुरस्कार सभी कुछ है, सवाल करने पर ये जवाब मिलता है कि कांग्रेस ने अर्थात् गाँधी परिवार ने देश के लिए बहुत कुर्बानियाँ दी हैं। इसका तात्पर्य तो ये हुआ कि देश को आजाद अकेले गाँधी परिवार ने कराया बाकी सभी शहीदों की शहादत तो नगण्य हो गई। रिटायर्ड मेजर जनरल डी जी बख्शी ने अभी हाल ही में किसी न्यूज चैनल पर एक आंकड़ा दिया 60000 में से 26000 सैनिकों की शहादत का परिणाम है देश की आजादी, फिर ताज किसी एक परिवार के सिर पर क्यों!!!!
नाम बदलने का विरोध करने वालों का इल्जाम है कि मौजूदा सरकार इतिहास बदलने का प्रयास कर रही है परंतु वह ये क्यों भूल जाते हैं कि इतिहास को गलत पेश करने का कार्य तो उन्होंने ही किया था क्या इतिहास सिर्फ किसी एक परिवार की कहानी कहता है? सरकार का कर्तव्य है कि इतिहास को सत्य और पूरा पेश किया जाए तो देर से ही सही सरकार कर रही है। अभी तक तो राजनीति में चापलूसी ही होती रही है राज्य सरकारें केंद्र में मौजूद कांग्रेस सरकार (गाँधी परिवार) को खुश करने के लिए किसी न किसी गाँधी के नाम पर किसी सड़क या इमारत का नामकरण कर देतीं जैसे मुंबई में ही 'बांद्रा वर्ली सी लिंक' का नाम बदल कर 'राजीव सेतु' कर दिया गया। परंतु उस समय यह सवाल नही उठाया गया कि सरकार का ध्यान कार्य की बजाय नाम परिवर्तन पर क्यों है। यदि नामकरण करना ही है और ऐसे लोगों के नाम पर करना है जिनका योगदान देश के प्रति रहा हो तो गाँधी परिवार से ज्यादा महत्वपूर्ण नाम हैं- सुभाष चंद्र बोस, शहीद भगत सिंह, राजगुरू, लक्ष्मी बाई, महाराणा प्रताप और भी बहुत से, परंतु हर जगह इन्हें नजर अंदाज किया गया। मुंबई में किसी भी महान फिल्मी व्यक्तित्व के नाम पर कुछ भी नहीं है, जबकि कला के क्षेत्र में लता मंगेशकर, रफी, किशोर कुमार जैसे कितने ही ऐसे महान कलाकार हैं जिन्होंने विदेशों में भी हमारे देश का नाम बढ़ाया है। खेल जगत में किसी खिलाड़ी के नाम कोई पुरस्कार नही परंतु 'राजीव गाँधी गोल्ड कप कबड्डी' हो सकता है जैसे राजीव गाँधी ही कबड्डी के जन्मदाता रहे हों। ऐसे-ऐसे लोगों के नाम पर योजनाओं पुरस्कारों के नाम रखे गए जिन्होंने स्वयं के बलबूते पर कुछ भी नहीं किया, जिन्हें विरासत में प्रसिद्धि और चाटुकारिता में उपलब्धि मिल गई। जैसे 'राजीव गाँधी खेल रत्न' 'इंदिरा आवास योजना' 'संजय गाँधी योजना' 'राजीव गाँधी स्पेशलिटी हॉस्पिटल' आदि।
आजादी के बाद सत्ता कांग्रेस के हाथ में क्या आई बाकी सभी स्वतंत्रता सेनानियों की शहादत उनके योगदान को दरकिनार कर संपूर्ण उपलब्धि एक ही परिवार के नाम कर दिया गया और दशकों से उसी का महिमामंडन होता आ रहा है।
मेरा प्रश्न महज एक ही है कि इमारतों या सड़कों का नामकरण क्यों होता है? इसलिए कि लोग उस इमारत या सड़क को जानें ? या उस व्यक्ति को याद रखें और आने वाली पीढ़ियाँ उन्हें जाने जिनका नाम उन बेजान चीजों को दिया गया है.......
शायद दोनों.....या फिर दूसरा विकल्प ज्यादा सही है...
ऐसे में तो यही कहूँगी कि राजनीति से या सत्ता से जुड़े व्यक्तित्व तो वैसे ही इतने प्रसिद्ध होते हैं कि आने वाली पीढ़ियाँ उनके बारे में पढ़ती और याद रखती हैं फिर तो ये नामकरण उन शहीदों के नाम पर होना चाहिए जो देश की सुरक्षा करते हुए कुर्बान हो जाते हैं, जिन्हें हम जानते तक नहीं। यदि उनके नाम पर विश्वविद्यालय, अस्पताल, योजनाएँ, सड़कें, पुरस्कार आदि होंगे तो देश की भावी पीढ़ियाँ उनके योगदान और उनके इतिहास से भी परिचित होंगी। विरोध करने की बजाय यदि विपक्ष इस प्रकार का कोई सुझाव देता तो उसकी गिरती छवि सुधरती परंतु ऐसा नही हुआ, बल्कि जिस कांग्रेस को आतताई औरंगजेब के नाम पर रोड का नाम होने से कोई आपत्ति नहीं हुई उसे महाराणा प्रताप के नाम से आपत्ति है। यह देश का दुर्भाग्य ही है जो एक ऐसी पार्टी ने दशकों तक इस देश पर राज्य किया।
परंतु यदि कहीं कुछ गलत हुआ हो तो उसका सुधार आवश्यक होता है और इस समय इसी दिशा में यदि कुछ करने का प्रयास किया जा रहा हो तो देशवासियों का कर्तव्य बनता है कि हम उनका सहयोग करें जो हमें संकीर्ण मानसिकता से बाहर निकाल कर हमारे अस्तित्व से परिचित कराने का प्रयास कर रहे हैं।
मालती मिश्रा
खैर ये तो रही कटाक्ष की बात अब आते है सत्य पर....
अभी हाल ही में जनरल वी० के० सिंह ने 'अकबर' रोड का नाम बदल कर 'महाराणा प्रताप' रोड करने की माँग की है, इस बात से ही कांग्रेसियों में अच्छी खासी खलबली और विरोध का वातावरण है, फिर ऋषि कपूर के ट्वीट (जिसमें उन्होंने गाँधी परिवार को आइना दिखा दिया है) ने आग में घी डालने का काम किया है, विरोधियों के तोते उड़े हुए हैं उन्हें सबकुछ अपने हाथों से फिसलता हुआ महसूस हो रहा है। सचमुच छोटी-छोटी सी बातों, छोटे-छोटे से कार्यों का भी विरोध प्रदर्शन इतने बड़े स्तर पर होना यह दर्शाता है कि इतने सालों में कांग्रेस ने सत्ता में रहकर सिर्फ अपने चापलूसों की फौज बढ़ाई है जो समय आने पर उसके नमक का कर्ज चुका सकें, विपक्ष में भी कांग्रेस का सिर्फ एक ही मकसद है सरकार के विकासोन्मुख कार्यों को बाधित करना, इससे देश का विकास बाधित हो रहा है इस बात से उन्हें कोई लेना देना नहीं।
ऋषि कपूर जी ने कहा कि देश की संपत्ति और सड़कों पर किसी एक परिवार की बपौती नहीं तो क्या गलत कहा? सत्य ही तो है जहाँ देखो वहीं गाँधी परिवार के नाम पर सड़कें, इमारतें, अस्पताल, योजनाएँ, पुरस्कार सभी कुछ है, सवाल करने पर ये जवाब मिलता है कि कांग्रेस ने अर्थात् गाँधी परिवार ने देश के लिए बहुत कुर्बानियाँ दी हैं। इसका तात्पर्य तो ये हुआ कि देश को आजाद अकेले गाँधी परिवार ने कराया बाकी सभी शहीदों की शहादत तो नगण्य हो गई। रिटायर्ड मेजर जनरल डी जी बख्शी ने अभी हाल ही में किसी न्यूज चैनल पर एक आंकड़ा दिया 60000 में से 26000 सैनिकों की शहादत का परिणाम है देश की आजादी, फिर ताज किसी एक परिवार के सिर पर क्यों!!!!
नाम बदलने का विरोध करने वालों का इल्जाम है कि मौजूदा सरकार इतिहास बदलने का प्रयास कर रही है परंतु वह ये क्यों भूल जाते हैं कि इतिहास को गलत पेश करने का कार्य तो उन्होंने ही किया था क्या इतिहास सिर्फ किसी एक परिवार की कहानी कहता है? सरकार का कर्तव्य है कि इतिहास को सत्य और पूरा पेश किया जाए तो देर से ही सही सरकार कर रही है। अभी तक तो राजनीति में चापलूसी ही होती रही है राज्य सरकारें केंद्र में मौजूद कांग्रेस सरकार (गाँधी परिवार) को खुश करने के लिए किसी न किसी गाँधी के नाम पर किसी सड़क या इमारत का नामकरण कर देतीं जैसे मुंबई में ही 'बांद्रा वर्ली सी लिंक' का नाम बदल कर 'राजीव सेतु' कर दिया गया। परंतु उस समय यह सवाल नही उठाया गया कि सरकार का ध्यान कार्य की बजाय नाम परिवर्तन पर क्यों है। यदि नामकरण करना ही है और ऐसे लोगों के नाम पर करना है जिनका योगदान देश के प्रति रहा हो तो गाँधी परिवार से ज्यादा महत्वपूर्ण नाम हैं- सुभाष चंद्र बोस, शहीद भगत सिंह, राजगुरू, लक्ष्मी बाई, महाराणा प्रताप और भी बहुत से, परंतु हर जगह इन्हें नजर अंदाज किया गया। मुंबई में किसी भी महान फिल्मी व्यक्तित्व के नाम पर कुछ भी नहीं है, जबकि कला के क्षेत्र में लता मंगेशकर, रफी, किशोर कुमार जैसे कितने ही ऐसे महान कलाकार हैं जिन्होंने विदेशों में भी हमारे देश का नाम बढ़ाया है। खेल जगत में किसी खिलाड़ी के नाम कोई पुरस्कार नही परंतु 'राजीव गाँधी गोल्ड कप कबड्डी' हो सकता है जैसे राजीव गाँधी ही कबड्डी के जन्मदाता रहे हों। ऐसे-ऐसे लोगों के नाम पर योजनाओं पुरस्कारों के नाम रखे गए जिन्होंने स्वयं के बलबूते पर कुछ भी नहीं किया, जिन्हें विरासत में प्रसिद्धि और चाटुकारिता में उपलब्धि मिल गई। जैसे 'राजीव गाँधी खेल रत्न' 'इंदिरा आवास योजना' 'संजय गाँधी योजना' 'राजीव गाँधी स्पेशलिटी हॉस्पिटल' आदि।
आजादी के बाद सत्ता कांग्रेस के हाथ में क्या आई बाकी सभी स्वतंत्रता सेनानियों की शहादत उनके योगदान को दरकिनार कर संपूर्ण उपलब्धि एक ही परिवार के नाम कर दिया गया और दशकों से उसी का महिमामंडन होता आ रहा है।
मेरा प्रश्न महज एक ही है कि इमारतों या सड़कों का नामकरण क्यों होता है? इसलिए कि लोग उस इमारत या सड़क को जानें ? या उस व्यक्ति को याद रखें और आने वाली पीढ़ियाँ उन्हें जाने जिनका नाम उन बेजान चीजों को दिया गया है.......
शायद दोनों.....या फिर दूसरा विकल्प ज्यादा सही है...
ऐसे में तो यही कहूँगी कि राजनीति से या सत्ता से जुड़े व्यक्तित्व तो वैसे ही इतने प्रसिद्ध होते हैं कि आने वाली पीढ़ियाँ उनके बारे में पढ़ती और याद रखती हैं फिर तो ये नामकरण उन शहीदों के नाम पर होना चाहिए जो देश की सुरक्षा करते हुए कुर्बान हो जाते हैं, जिन्हें हम जानते तक नहीं। यदि उनके नाम पर विश्वविद्यालय, अस्पताल, योजनाएँ, सड़कें, पुरस्कार आदि होंगे तो देश की भावी पीढ़ियाँ उनके योगदान और उनके इतिहास से भी परिचित होंगी। विरोध करने की बजाय यदि विपक्ष इस प्रकार का कोई सुझाव देता तो उसकी गिरती छवि सुधरती परंतु ऐसा नही हुआ, बल्कि जिस कांग्रेस को आतताई औरंगजेब के नाम पर रोड का नाम होने से कोई आपत्ति नहीं हुई उसे महाराणा प्रताप के नाम से आपत्ति है। यह देश का दुर्भाग्य ही है जो एक ऐसी पार्टी ने दशकों तक इस देश पर राज्य किया।
परंतु यदि कहीं कुछ गलत हुआ हो तो उसका सुधार आवश्यक होता है और इस समय इसी दिशा में यदि कुछ करने का प्रयास किया जा रहा हो तो देशवासियों का कर्तव्य बनता है कि हम उनका सहयोग करें जो हमें संकीर्ण मानसिकता से बाहर निकाल कर हमारे अस्तित्व से परिचित कराने का प्रयास कर रहे हैं।
मालती मिश्रा
Yes it's time to real Roar,"India.aa India"
जवाब देंहटाएंYes it's time to real Roar,"India.aa India"
जवाब देंहटाएंजाग रहा है देश मेरा
हटाएं