गुरुवार

'सेक्युलर' एक राजनीतिक शब्द

आजकल समाज, देश और मुख्यतः मीडिया में 'सेक्युलर' शब्द बहुत प्रचलित है। कोई इस शब्द के प्रयोग में अपनी शान समझते हैं तो कुछ लोग इस शब्द को गाली की तरह भी प्रयोग करते हैं। लोग समझते हैं कि यदि वह अपने आप को सेक्युलर यानी धर्म-निरपेक्ष दर्शाएँगे तो समाज में उनका सम्मान बढ़ जाएगा। परंतु आजकल यह धर्म-निरपेक्षता या सेक्युलरिज्म महज स्वार्थ-सिद्धि का जरिया मात्र रह गया है। इस शब्द का प्रयोग सिर्फ और सिर्फ राजनीति में किया जाता है, और राजनीति मे सेक्युलरिज्म सिर्फ वोट-बैंकिंग का साधन है। आज जनता को समझना चाहिए उसे अपनी सोच-समझ को जागृत करना चाहिए और यह देखना चाहिए कि क्या सेक्युलर कहलाने वाले तथाकथित राजनीतिज्ञों से सचमुच समाज में समता और एकता की भावना पनपी है???? 
धर्म-निरपेक्ष का तात्पर्य है कि सभी धर्मों को समान समझना और उनका सम्मान करना....इसका तात्पर्य यह तो बिल्कुल नहीं कि हम किसी अन्य धर्म के सम्मान हेतु अपने धर्म का अपमान करें!!! साधारण सी बात है कि यदि हम अपने ही धर्म का सम्मान नहीं कर सकते तो दूसरों के धर्म का सम्मान कैसे कर सकते हैं? ऐसा सम्मान मात्र दिखावा और आडंबर ही हो सकता है सत्य नहीं। धर्म-निरपेक्षता का यह अर्थ तो कदापि नहीं हो सकता कि अन्य धर्म को बढ़ावा देने हेतु अपने धर्म का ह्रास करें। आजकल धर्म-निरपेक्षता के नाम पर यही हो रहा है, अपना मुस्लिम वोट बैंक बढ़ाने के लिए हिंदू राजनेता टोपी पहन कर नमाज तक पढ़ने का दिखावा करते हैं और यह सोचते हैं कि उनके हिंदू होने के कारण हिंदू वोट तो उनके हैं ही नमाज पढ़कर, इफ्तार पार्टी देकर वो मुस्लिम वोट भी हासिल कर लेंगे। इस एक विषय पर हमें मुस्लिमों की तारीफ जरूर करनी चाहिए कि वो अपने-आप को सेक्युलर दर्शाने के लिए अपना धर्म छोड़ मंदिरों में पूजा करने नहीं जाते, कहने का तात्पर्य हे़ै कि वो दिखावा नहीं करते।
आजकल सेक्युलरिज्म समाज में समानता नहीं विषमता का द्योतक हो चला है। जो लोग पहले दूसरों के धर्मों का सम्मान अपनी खुशी से करते थे वो आज अपने धर्म को अपमानित होते देख सिर्फ अपने धर्म की रक्षा में जुट गए हैं और होना भी यही चाहिए, यदि एक पुत्र अपनी माँ का अपमान करेगा तो दूसरे पुत्र का कर्तव्य है कि वह उसे रोके।
सेक्युलरिज्म ने हमें क्या दिया??? असुरक्षा, घृणा, अपमान,एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ और इन सबसे बड़ा और खतरनाक आतंकवाद!!! हम कितना भी कह लें कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता परंतु यह सभी जानते हैं कि चाहे आतंकवाद का धर्म न भी हो परंतु आतंकवादियों का धर्म जरूर होता है और राजनीतिक पार्टियों के नेता स्वयं को सेक्युलर और उदारवादी दिखाने के लिए तथा दूसरे धर्म विशेष के लोगों के प्रति स्वयं को निष्ठावान तथा समर्पित दिखाने के लिए उनके भीषण कुकृत्यों को भी सही सिद्ध करने का प्रयास करते हैं यही कारण है कि समाज ही नहीं देश में बड़े पैमाने पर अपराध और अपराधिक तत्व पनपते हैं। और एक धर्म जो सदा से स्वयं के अतिथि देवो भव के मूल्यों को लेकर चला वह आज अपने इन्हीं परोपकारी भावनाओं के कारण स्वयं को छला हुआ महसूस कर रहा है। इस 'सेक्युलर' शब्द ने समाज में समानता के भाव तो नहीं परंतु एक-दूसरे के धर्मों के प्रति घृणा भाव जरूर भर दिया है। इसने धर्मों के मध्य प्रतिद्वंद्वता का भाव भर दिया है जिसके कारण दो धर्म और समुदाय के मध्य दुश्मनी का भाव भरकर ये सेक्युलर सिर्फ तमाशबीन बन गए हैं, जब ये दुश्मनी की हवा धीरे-धीरे मद्धिम होने लगती है तो ये किसी न किसी का शिकार करके फिर से आग को हवा देकर दूर से तमाशबीन बन जाते हैं।

साभार....मालती मिश्रा 

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