जल भर भर ले आए मेघा
घटा घिरी घनघोर
दादुर मोर पपीहा बोले
झींगुर करता शोर।।
रिझरिम रिमझिम बरसे सावन
लगे नाचने मोर
टर टर करते दादुर निकले
धूम मची चहुँओर ।।
प्यास बुझी प्यासी धरती की
मनहि रही हरषाय
तप्त हृदय की तृषा मिटी अब
हिय शीत हुआ जाय।।
तड़ तड़ करती बूँदें देखो
तरुवर को नहलाय
मंद हवा के पवन झकोरे
नव संगीत सुनाय।।
मालती मिश्रा 'मयंती'
लाजवाब.... बहुत बढ़िया रचना।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार नीतू जी🙏
हटाएंसुंदर रचना 👌
जवाब देंहटाएंदिल से आभार अनुराधा जी
हटाएंबहुत सुंदर मीता अनुप्रास अलंकार से सुसज्जित लावण्य रचना।
जवाब देंहटाएंचम चम चमके बिजुरिया
बादल घड़ड़ घड़काय
ऐसे बरसे सावन सुरंगा
मन ताक धिनक हुई जाय।
आपके स्नेह की सदा आभारी रहूँगी मीता🙏
हटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंआभार आ०🙏
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार आ०🙏
हटाएंधन्यवाद आदरणीया🙏
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