प्रेम,सौहार्द्र के बीज रोप कर
मानवता के पौध लगाते हैं
नफरत से सूखी बगिया में
कुछ प्रेम के फूल खिलाते हैं
चलो इंसान उगाते हैं ...
विलुप्त हो चुके परमार्थ को
हर इक जीव में जगाते हैं
स्वार्थ के काले पन्नो में
इक उजली किरण सजाते हैं
चलो इंसान उगाते हैं...
स्वार्थ साधना के इस युग में
सेवा का अलख जगाते हैं
इंसां से इंसां का नाता
सबको याद दिलाते हैं
चलो इंसान उगाते हैं..
प्रतिस्पर्धा के खर-पतवार
बंजर भूमि बनाते हैं
प्रेम सहयोग की खाद डालकर
स्नेह के पौध उगाते हैं
चलो इंसान उगाते हैं..
धन लोलुप्सा के मारे मानव
मन में शैतान जगाते हैं
लालच की गठरी फेंक हम
चलो शैतान भगाते हैं
चलो इंसान उगाते हैं..
नर है नादान समझ सका न
मानवता में भगवान समाते हैं
जीत-हार की छोड़ के बातें
चलो भगवान जगाते हैं
चलो इंसान उगाते हैं...
अज्ञान के घोर अंधकार में
ज्ञान की ज्योति जलाते हैं
शिक्षा पर समानता का हक
हम जन-जन तक पहुँचाते हैं
चलो इंसान उगाते हैं...
नारी जननी,भार्या, भगिनी है
इसका हम महत्व बताते हैं
तिरस्कार जो करते इनका
उन्हें ज्ञान का मार्ग दिखाते हैं
चलो इंसान बनाते हैं....
साभार....मालती मिश्रा
बेहद खूबसूरत रचना।
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार राजेश जी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार राजेश जी
जवाब देंहटाएंbahut hi achchi kavita
जवाब देंहटाएंThank you Siddhartha Ji
जवाब देंहटाएंBahut badhiya
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