राजनीति का गिरता स्तर
चुनावी दौर में पक्ष और विपक्ष की राजनीतिक पार्टियों के द्वारा एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाना अकल्पनीय नहीं है बल्कि यह एक सहज प्रक्रिया है कि अपने प्रतिद्वंदी की कमियों उसके नकारात्मक कार्यों को जनता के समक्ष लाना और अपने सकारात्मक विचारों और समाज और देश के हितार्थ योजनाओं को जनता के समक्ष रखना उसके पश्चात् निर्णय को जनता पर छोड़ दिया जाना चाहिए कि वह किसको अपना नेता चुनना चाहे या किस पार्टी के हाथ पाँच वर्ष तक देश चलाने का उत्तरदायित्व सौंपे, यही उत्तरदायित्व है राजनीतिक पार्टियों का। परंतु आजकल की राजनीति धर्मयुद्ध या कर्मयुद्ध न होकर केवल सत्तायुद्ध बनकर रह गई है। आजकल न वाणी की मर्यादा रही न ही कर्मों की मर्यादा बची बस यदि कुछ शेष है तो स्वार्थ लोलुपता और विलासिता। राजनीतिक पार्टियों में न व्यक्ति के लिए सम्मान है न व्यक्तित्व के लिए और न ही पद की गरिमा के प्रति। वर्तमान में चलने वाले चुनावी प्रचार-प्रसार को देखकर तो मन क्षुब्ध हो जाता है कि ऐसे लोगों के हाथ यदि सत्ता की बागडोर आ जाएगी तो क्या देश का अस्तित्व खतरे में नहीं आ जाएगा जो खुलेआम देशद्रोह को बढ़ावा देने के पक्ष में हों जो देश के रक्षकों का कोई मानवाधिकार न मानते हुए आतंकवादियों के मानवाधिकार के लिए लड़ते हों। जो प्रधानमंत्री के पद की गरिमा को विस्मृत कर उन्हें सरेआम गालियाँ दें, क्या ऐसे लोग इस पद पर आसीन होकर पद की गरिमा को धूमिल न कर देंगे। परंतु इससे भी अधिक सोचनीय स्थिति तब उत्पन्न होती है जब ये पार्टियाँ शत्रु देश का पक्ष सिर्फ इसलिए लेती हैं ताकि अपने देश की सरकार की छवि अपने देश के साथ-साथ विदेशी स्तर पर खराब कर सकें। उन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि अपने देश की सरकार की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खराब करके अपनी छवि को सुधार लेंगे परंतु यह विचारणीय है कि जो व्यक्ति अपने देश को सम्मान नहीं दे सकता, सिर्फ सत्ता प्राप्ति के प्रयास में एक व्यक्ति विशेष का विरोध करते-करते देश के सम्मान और सुरक्षा से खेलने लगता है, क्या उसके हाथों में देश सुरक्षित होगा? एक-दूसरे को हराने के लिए हर संभव प्रयास करना गलत नहीं है परंतु यह ध्यान रखना आवश्यक है कि इस प्रयास में कहीं देश की गरिमा तो धूमिल नहीं हो रही है? आजकल सत्ता का लालच इतना प्रबल हो चुका है कि इसे पाने के लिए आज सभी विपक्षी जो कभी एक-दूसरे के कट्टर शत्रु हुआ करते थे, वो आज एकमत होकर बस एक ही व्यक्ति को हराने के लिए प्रयास कर रहे हैं।
चुनाव में हर राजनीतिक पार्टी के पास देश के प्रति सकारात्मक मुद्दा होना आवश्यक है ताकि वो जनता को बता सकें कि उस क्षेत्र विशेष के लिए वो क्या योजना लाए हैं किंतु वर्तमान में पार्टियों के पास यदि कुछ है तो वो है विरोधी पार्टी के लिए गालियाँ। वो जितना अधिक अपमानजनक बातें कह सकें स्वयं को उतना ही श्रेष्ठ समझते हैं। ऐसी परिस्थितियों में जनता को ही विश्लेषण करना होगा कि किस पार्टी से देश व समाज का हित हुआ है, किसने देश के प्रति कितना सम्मान दर्शाया है और स्वविवेक से ही चुनाव करना होगा। देश की जनता को ही तय करना होगा कि लालच में आकर दिल्ली की जनता की तरह फिर पाँच वर्ष पछताना है या समझदारी का परिचय देना है।
आजकल कुछ लोग नोटा के प्रति भी रुझान दर्शा कर स्वयं को योद्धा समझने लगते हैं, कोई प्रत्याशी पसंद नहीं तो नोटा दबा दिया परंतु कभी चिंतन नहीं करते कि नोटा का बटन दबाकर किसका हित किया? जबकि समझदारी तब होती कि जब प्रत्याशी पसंद नहीं आता तो दोनों या जितने भी हैं उनका तुलनात्मक विश्लेषण कर लें और जो सबसे कम बुरा हो उसका चयन करना चाहिए, क्योंकि ये नोटा कभी-कभी सबसे अनुपयुक्त प्रत्याशी को विजेता बनाकर नोटा वालों पर ही शासन करने का अधिकार दे देता है। अतः यह जनता के ही कर्तव्य क्षेत्र में आता है कि वह समाज व देश को कैसा नेता दे? हमें अपने निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर देश के हित के विषय में सोचना होगा तभी हमारा निर्णय निष्पक्ष हो सकता है और तभी हम स्वार्थ लोलुपता में घिरे नेताओं को सही सबक सिखा सकते हैं। जनता को ही यह दिखाना होगा कि उसे मुफ्तखोरी नहीं परिश्रम और स्वाभिमान पसंद है, जनता को ही दिखाना होगा कि वह जाति-धर्म के आधार पर नेता नहीं चुन सकती। जिस दिन हमारे देश की जनता इन सब भावनाओं से ऊपर उठकर सिर्फ देशभक्ति को सर्वोपरि रखते हुए जाति-धर्म के नाम पर तथा व्यक्तिगत लाभ के नाम पर वोट देना बंद कर देगी, उस दिन ये नेतागण भी समाज व देशहित की बातें करना सीख जाएँगे। तभी देश उन्नतिशील होगा और उन्नत देश का नागरिक स्वतः सुखी व सम्पन्न होगा, क्योंकि देश को विकसित करने के लिए नागरिकों का विकास आवश्यक है और ऐसा तभी संभव है जब जाति-धर्म, वंशवाद और स्वार्थी प्रवृत्तियों का अंत हो जाए।
मालती मिश्रा 'मयंती'✍️
चुनावी दौर में पक्ष और विपक्ष की राजनीतिक पार्टियों के द्वारा एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाना अकल्पनीय नहीं है बल्कि यह एक सहज प्रक्रिया है कि अपने प्रतिद्वंदी की कमियों उसके नकारात्मक कार्यों को जनता के समक्ष लाना और अपने सकारात्मक विचारों और समाज और देश के हितार्थ योजनाओं को जनता के समक्ष रखना उसके पश्चात् निर्णय को जनता पर छोड़ दिया जाना चाहिए कि वह किसको अपना नेता चुनना चाहे या किस पार्टी के हाथ पाँच वर्ष तक देश चलाने का उत्तरदायित्व सौंपे, यही उत्तरदायित्व है राजनीतिक पार्टियों का। परंतु आजकल की राजनीति धर्मयुद्ध या कर्मयुद्ध न होकर केवल सत्तायुद्ध बनकर रह गई है। आजकल न वाणी की मर्यादा रही न ही कर्मों की मर्यादा बची बस यदि कुछ शेष है तो स्वार्थ लोलुपता और विलासिता। राजनीतिक पार्टियों में न व्यक्ति के लिए सम्मान है न व्यक्तित्व के लिए और न ही पद की गरिमा के प्रति। वर्तमान में चलने वाले चुनावी प्रचार-प्रसार को देखकर तो मन क्षुब्ध हो जाता है कि ऐसे लोगों के हाथ यदि सत्ता की बागडोर आ जाएगी तो क्या देश का अस्तित्व खतरे में नहीं आ जाएगा जो खुलेआम देशद्रोह को बढ़ावा देने के पक्ष में हों जो देश के रक्षकों का कोई मानवाधिकार न मानते हुए आतंकवादियों के मानवाधिकार के लिए लड़ते हों। जो प्रधानमंत्री के पद की गरिमा को विस्मृत कर उन्हें सरेआम गालियाँ दें, क्या ऐसे लोग इस पद पर आसीन होकर पद की गरिमा को धूमिल न कर देंगे। परंतु इससे भी अधिक सोचनीय स्थिति तब उत्पन्न होती है जब ये पार्टियाँ शत्रु देश का पक्ष सिर्फ इसलिए लेती हैं ताकि अपने देश की सरकार की छवि अपने देश के साथ-साथ विदेशी स्तर पर खराब कर सकें। उन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि अपने देश की सरकार की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खराब करके अपनी छवि को सुधार लेंगे परंतु यह विचारणीय है कि जो व्यक्ति अपने देश को सम्मान नहीं दे सकता, सिर्फ सत्ता प्राप्ति के प्रयास में एक व्यक्ति विशेष का विरोध करते-करते देश के सम्मान और सुरक्षा से खेलने लगता है, क्या उसके हाथों में देश सुरक्षित होगा? एक-दूसरे को हराने के लिए हर संभव प्रयास करना गलत नहीं है परंतु यह ध्यान रखना आवश्यक है कि इस प्रयास में कहीं देश की गरिमा तो धूमिल नहीं हो रही है? आजकल सत्ता का लालच इतना प्रबल हो चुका है कि इसे पाने के लिए आज सभी विपक्षी जो कभी एक-दूसरे के कट्टर शत्रु हुआ करते थे, वो आज एकमत होकर बस एक ही व्यक्ति को हराने के लिए प्रयास कर रहे हैं।
चुनाव में हर राजनीतिक पार्टी के पास देश के प्रति सकारात्मक मुद्दा होना आवश्यक है ताकि वो जनता को बता सकें कि उस क्षेत्र विशेष के लिए वो क्या योजना लाए हैं किंतु वर्तमान में पार्टियों के पास यदि कुछ है तो वो है विरोधी पार्टी के लिए गालियाँ। वो जितना अधिक अपमानजनक बातें कह सकें स्वयं को उतना ही श्रेष्ठ समझते हैं। ऐसी परिस्थितियों में जनता को ही विश्लेषण करना होगा कि किस पार्टी से देश व समाज का हित हुआ है, किसने देश के प्रति कितना सम्मान दर्शाया है और स्वविवेक से ही चुनाव करना होगा। देश की जनता को ही तय करना होगा कि लालच में आकर दिल्ली की जनता की तरह फिर पाँच वर्ष पछताना है या समझदारी का परिचय देना है।
आजकल कुछ लोग नोटा के प्रति भी रुझान दर्शा कर स्वयं को योद्धा समझने लगते हैं, कोई प्रत्याशी पसंद नहीं तो नोटा दबा दिया परंतु कभी चिंतन नहीं करते कि नोटा का बटन दबाकर किसका हित किया? जबकि समझदारी तब होती कि जब प्रत्याशी पसंद नहीं आता तो दोनों या जितने भी हैं उनका तुलनात्मक विश्लेषण कर लें और जो सबसे कम बुरा हो उसका चयन करना चाहिए, क्योंकि ये नोटा कभी-कभी सबसे अनुपयुक्त प्रत्याशी को विजेता बनाकर नोटा वालों पर ही शासन करने का अधिकार दे देता है। अतः यह जनता के ही कर्तव्य क्षेत्र में आता है कि वह समाज व देश को कैसा नेता दे? हमें अपने निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर देश के हित के विषय में सोचना होगा तभी हमारा निर्णय निष्पक्ष हो सकता है और तभी हम स्वार्थ लोलुपता में घिरे नेताओं को सही सबक सिखा सकते हैं। जनता को ही यह दिखाना होगा कि उसे मुफ्तखोरी नहीं परिश्रम और स्वाभिमान पसंद है, जनता को ही दिखाना होगा कि वह जाति-धर्म के आधार पर नेता नहीं चुन सकती। जिस दिन हमारे देश की जनता इन सब भावनाओं से ऊपर उठकर सिर्फ देशभक्ति को सर्वोपरि रखते हुए जाति-धर्म के नाम पर तथा व्यक्तिगत लाभ के नाम पर वोट देना बंद कर देगी, उस दिन ये नेतागण भी समाज व देशहित की बातें करना सीख जाएँगे। तभी देश उन्नतिशील होगा और उन्नत देश का नागरिक स्वतः सुखी व सम्पन्न होगा, क्योंकि देश को विकसित करने के लिए नागरिकों का विकास आवश्यक है और ऐसा तभी संभव है जब जाति-धर्म, वंशवाद और स्वार्थी प्रवृत्तियों का अंत हो जाए।
मालती मिश्रा 'मयंती'✍️
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 09.09.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3330 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
धन्यवाद आदरणीय
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन राष्ट्रगौरव महाराणा प्रताप को सादर नमन और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय
हटाएंआवश्यक सूचना :
जवाब देंहटाएंसभी गणमान्य पाठकों एवं रचनाकारों को सूचित करते हुए हमें अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है कि अक्षय गौरव ई -पत्रिका जनवरी -मार्च अंक का प्रकाशन हो चुका है। कृपया पत्रिका को डाउनलोड करने हेतु नीचे दिए गए लिंक पर जायें और अधिक से अधिक पाठकों तक पहुँचाने हेतु लिंक शेयर करें ! सादर https://www.akshayagaurav.in/2019/05/january-march-2019.html
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