शनिवार

जनता सब पहचान रही

रात दिवा जिन जिन बातों का
खुलकर विरोध करते थे,
उनकी विदेश-यात्राओं पर
तुम तंज कसा करते थे।
परिणाम मिला जब आज सुखद
सब विदेश-यात्राओं का,
विश्व आतंकी घोषित हुआ
चैन उड़ा आकाओं का।
पहले तो तुम उछले-कूदे
मन ही मन बस रोए हो,
कलपे तड़पे सिर धुन-धुनकर
चिल्लाए पछताए हो।
नहीं बनी जब बात कहीं तो
नया स्वांग रचाने लगे,
लुटेरों के पंद्रह साल की
कोशिश ये बताने लगे।
कितना ही स्वांग रचो अब तुम
जनता को भरमाने को,
जनता सब पहचान रही है
तुम्हारे ताने-बाने को।

मालती मिश्रा 'मयंती'✍️

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