तुम सब जैसा मानव मैं पर,
अपनी कोई पहचान नहीं।
जोकर बन सभी हँसाता हूँ,
अपने भावों को दबा कहीं।
दिल में बहता गम का सागर,
होंठों पर हँसी जरूरी है।
तन्हा छिप-छिपकर रोते हैं,
बाहर हँसना मजबूरी है।
जोकर बन खुशियाँ बाँटी हैं,
दुहरा जीवन हम जीते हैं।
यूँ बूँद-बूँद रिसते गम को,
हम घूँट-घूँट कर पीते हैं।
पहना चेहरे पर चेहरा,
अपना चेहरा छिपाते हैं।
हिय दर्द भरा घन उमड़े जब,
हम नव खुशियाँ बरसाते हैं।
चित्र साभार.. गूगल से
©मालती मिश्रा 'मयंती'✍️
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 14/05/2019 की बुलेटिन, " भई, ईमेल चेक लियो - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसूचित करने के लिए आभार शिवम् जी
हटाएंसबको हँसाने के लिए अपना ग़म दबाये रखते हैं ये जोकर...
जवाब देंहटाएंसुचिंतन@
सादर आभार वाणी गीत जी😊
हटाएंसुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंविकास नैनवाल जी प्रतिक्रिया देकर उत्साह बढ़ाने के लिए आभार।
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