शुक्रवार

राष्ट्रभाषा हिन्दी हो

आहत होती घर में माता
गर सम्मान न मिल पाए,
उसके पोषित पुत्र सभी अब
गैरों के पीछे धाए।

हिन्दी की भी यही दशा है
आज देश में अपने ही,
सर का ताज न कभी बनेगी
टूट गए वो सपने ही।।

हिन्द के वासी हिन्दुस्तानी
कभी हार ना मानेंगे,
राष्ट्रभाषा हिन्दी हो ये
बच्चा-बच्चा जानेंगे।।

आज यही ललकार हमारी
सब हिन्दी के रिपुओं से।
मान वही हम वापस लेंगे
था जो इसका सदियों से।।

©मालती मिश्रा 'मयंती'✍️

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