गुरुवार

जीना नहीं है आसान खुद को भुला करके
नया शख्स बनाना है खुद को मिटा करके

मिटाकर दिलो दीवार से यादों के मधुर पल
इबारत है नई लिखनी पुरानी को मिटा करके

माना कि जी रहे हम दुनिया की नजर में
चाँद भी मुस्काया मेरी हस्ती को मिटा करके

भाती बहुत हैं मन को गगन चूमती इमारतें
रखी नींव ख़्वाहिशों की बस्ती को मिटा करके

सपनों का घर बसाना आसां नहीं जहां में
नया आशियाँ है बनता औरों का मिटा करके

मालती मिश्रा 'मयंती'✍️

20 टिप्‍पणियां:

  1. सपनों का घर बसाना आसां नहीं जहां में
    नया आशियाँ है बनता औरों का मिटा करके
    बेहतरीन रचना 🙏

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    1. आदरणीया बहुत-बहुत आभार आपका, सदा स्नेह बनाए रखें लेखनी को ऊर्जा मिलती है।🙏

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  2. वाह!!! बहुत खूब .... बहुत सुन्दर

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    1. मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए दिल से आभार नीतू जी🙏

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  3. हम अपनी ही सीढियाँ कुचलकर उपर जा पाते हैं.
    बेहतरीन रचना.
    रंगसाज़

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    1. हौसलाअफजाई के लिए हार्दिक आभार रोहितास जी।

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  4. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 30 सितम्बर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. धन्यवाद आ० सूचित करने के लिए और मेरी कृति को शामिल करने के लिए।

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  5. सपनों का घर बसाना आसां नहीं जहां में
    नया आशियाँ है बनता औरों का मिटा करके
    वाह शानदार रचना

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  6. वाह!!!
    बहुत खूब ....बहुत लाजवाब...

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  7. वाहहह... बेहतरीन कृति मालती जी👌👌

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    1. बहुत खुशी आपको ब्लॉग पर देखकर श्वेता जी, बहुत-बहुत आभार🙏

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  8. वाह बहुत खूब मीता शानदार ।

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    1. आभार मीता, आप तो मेरी ऊर्जा स्रोत हो😊

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