शुक्रवार

हिन्दी दिवस मात्र औपचारिकता

*हिन्दी-दिवस मात्र औपचारिकता*
14 सितंबर 2018 को हिन्दी दिवस के रूप में  अधिकतर सरकारी विभागों और विद्यालयों में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। वे लोग जो अंग्रजी बोलने में, अंग्रेजियत दिखाने में गर्व महसूस करते हैं, जिन्हें पढ़े-लिखे समाज में हिन्दी-भाषी होने पर शर्म महसूस होती है, वही एकाएक एक दिन के लिए स्वयं को हिन्दी भाषी दर्शाने में गर्वानुभूति करते हैं। आज समाज में हम स्वयं को प्रतिस्पर्धा की दौड़ में आगे रखने के लिए अंग्रेजी के अघोषित गुलाम बन चुके हैं। अंग्रेजी हमारे भीतर इतनी रच-बस चुकी है कि हम अंग्रेजी के शब्दों का हिन्दी अर्थ भूल चुके हैं। और जानने का प्रयास करना तो दूर उल्टा प्रसन्न होते हैं कि अंग्रेजी तो आती है। ऐसे में वर्ष में एक दिन हिन्दी दिवस मना कर स्वयं को हिन्दी भाषी दर्शाने से भी पीछे नहीं रहते। पर क्या हम यह एक दिन भी दिल से मनाते हैं.... नहीं...... यह भी औपचारिकता मात्र होती है..... कार्यालयों में हिन्दी दिवस या हिन्दी सप्ताह मनाया जाता है पर बहुधा देखने में आता है कि हिन्दी दिवस के आयोजन का निमंत्रण पत्र भी अंग्रेजी में छपा होता है। जिन लोगों को रोज अंग्रेजी बोलने की आदत पड़ चुकी हो उनसे एक दिन के लिए आप हिन्दी बोलने की आशा कैसे कर सकते हैं? स्वयं को ही उनकी जगह रखकर सोचिए।
विद्यालयों में भी हिन्दी दिवस मात्र औपचारिकता बनकर रह गई है.....प्रातःकालीन सभा में हिन्दी दिवस पर भाषण होता है, फिर कुछ विद्यार्थियों द्वारा कविता, नाटक, गीत आदि में से कुछ एक बोलने/करने को कहा जाता है, जिसे अध्यापक/अध्यापिका द्वारा ही तैयार करवाया जाता है, बच्चों से नारे, सूक्ति, कविता, कहानी आदि में से कुछ लिखवाकर बोर्ड सजवा दिया जाता है बड़े-बड़े अक्षरों में *हिन्दी दिवस* के साथ।
बस हिन्दी दिवस यहीं *प्रार्थना-सभा से प्रार्थना सभा तक* ही सीमित होता है। इसके बाद तो इस बात पर नजर रखी जाती है कि बच्चे हिन्दी में बात न करें क्योंकि हिन्दी वातावरण विद्यालयों की प्रतिष्ठा को धूमिल जो करता है। तो जब हम विद्यार्थी जीवन की नींव ही गलत डाल रहे हैं, फिर कैसे आशा कर सकते हैं कि इमारत हिन्दीमयी होगी। जब बच्चा कदम-कदम पर घर में फिर बाहर भी हिन्दी का अनादर होते देख रहा है तो वह खुद कैसे आदर करेगा?
हिन्दी दिवस पर समाचार-पत्रों के पृष्ठ हिन्दी के सम्मान में सजे नजर आते हैं पर सिर्फ एक दिन के लिए, उसके बाद या उससे पहले यह सम्मान कहाँ होता है? हिन्दी के समाचार पत्रों में भी अंग्रेजी के शब्दों का बाहुल्य होता है.... आज हमारे देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं जो यह मानते हैं कि हिन्दी के बिना तो काम चल जाएगा परंतु अंग्रेजी के बिना नहीं.... वहीं दूसरी तरफ हिन्दी दिवस पर इसे मातृभाषा.. राजभाषा...राष्ट्रभाषा कहते हुए गर्व की अनुभूति होती है।
 यह "दिवस" मनाने की परंपरा भी तो हमनें पाश्चात्य सभ्यता से ही ग्रहण की है.....मातृ-दिवस, पितृ-दिवस और तौ और प्रेम-दिवस (वैलेन-टाइन-डे) आदि आदि।
तो अब हिन्दी दिवस भी मना लेते हैं। प्रश्न यह उठता है कि यदि हम हिन्दी को पूरा मान-सम्मान देते तो क्या हमें इस प्रकार *दिवस* के रूप में दिखावे की आवश्यकता होती? नहीं... दिखावा और औपचारिकता की आवश्यकता वहीं होती है जहाँ वास्तविकता नहीं होती।
हमारे जैसे हिन्दी-भाषी लोगों को इस दिन बहुत प्रसन्नता होती है कि चलो *हिन्दी दिवस* मनाने के बहाने ही सही कुछ तो सम्मान मिला हमारी भाषा को!

मालती मिश्रा 'मयंती'✍️

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