सोमवार

मेरे हिन्दी अध्यापक

विषय- *मेरा पसंदीदा व्यक्तित्व*
विधा- *संस्मरण*

आज *हिन्दी दिवस* है, इसलिए सभी साहित्यकारों का मन मचलता है हिन्दी भाषा के लिए लिखने को....मेरा भी मन हुआ..तब आज के विषय को लेकर मेरे मस्तिष्क में सवाल आया कि ऐसा कौन सा व्यक्तित्व है जिसे मैं आज *हिन्दी दिवस* के दिन याद करूँ... तो मेरे पसंदीदा लेखक, कवि कवयित्रियों से इतर जो एक छवि मेरे मस्तिष्क में उभरी वो है मेरे हिन्दी के अध्यापक *श्री शिवराम अवस्थी* जी की।
मैंने अपनी प्राथमिक और मिडिल शिक्षा एक पब्लिक स्कूल से प्राप्त की क्योंकि यह स्कूल बिल्कुल हमारे घर के पास ही था। उस समय वह अपने क्षेत्र का माना हुआ स्कूल था। अनुशासन ,शिक्षा का स्तर सभी उच्चकोटि के और इसीलिए परीक्षा परिणाम हमेशा बहुत अच्छा होता।
प्रारंभिक कक्षाओं से निकलकर जब मैं पाँचवीं कक्षा में पहुँची तब हमारे हिन्दी के अध्यापक हुए *श्री शिवराम अवस्थी*। अवस्थी सर कोई तीस-पैंतीस वर्ष के थे, छरहरे से गेहुँआ रंग और उनका सरल किन्तु अनुशासित स्वभाव उनके व्यक्तित्व को अन्य अध्यापकों से अलग करता था। उस समय विद्यार्थियों को दंडित करना गैरकानूनी नहीं था, अंग्रेजी विषय की कक्षा में मुझे भी सजा होती थी किन्तु मुझे याद नहीं कि अवस्थी सर नें किसी को दंडित किया हो। आज मैं खुद भी अध्यापिका हूँ और देखती हूँ कि हिन्दी विषय को आज विद्यालयों में उतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता जितना अन्य विषयों को, और तो और काट-छाँट कर पाठ्यक्रम को इतना संक्षिप्त कर देते हैं कि विद्यार्थियों को विषय का पूर्ण ज्ञान नहीं हो पाता। उस समय हमें पाठ्यक्रम में क्या है क्या नहीं ये नहीं पता होता था जो हमारे अध्यापक ने पढ़ा दिया वही पाठ्यक्रम होता था और अवस्थी सर हिन्दी को इसप्रकार पढ़ाते थे कि उनके पढ़ाने के बाद उन्हें पाठाधारित प्रश्नोत्तर लिखवाने की आवश्यकता नहीं होती थी हम स्वयं उत्तर लिखने में सक्षम होते थे। उनका उच्चारण इतना शुद्ध होता था कि जब वह कठिन शब्दों का श्रुतलेख लिखवाते तो एक-एक वर्ण की ध्वनि स्पष्ट होती और इसी कारण कभी मैं श्रुतलेख में गलती नहीं करती। रस और छंद अवस्थी सर ऐसे पढ़ाते थे कि उनके पढ़ाने के बाद रसों और छंदों की पहचान सोदाहरण ऐसे कंठस्थ हो जाते थे कि ऐसा प्रतीत होता कि अब कभी नहीं भूलूँगी। जिस प्रकार अवस्थी सर मेरे पसंदीदा अध्यापकों में से एक थे वैसे मैं उनकी सबसे पसंदीदा शिष्या थी। एक बार (जब मैं छठीं या सातवीं में हूँगी) प्रधानाचार्य के दफ्तर में मुझे बुलाया गया, मैं डरी तो नहीं पर मस्तिष्क में सवाल जरूर था कि क्यों बुलाया होगा? जब मैं पहुँची तो अवस्थी सर वहाँ पहले से ही उपस्थित थे, प्रधानाचार्य जी ने मुझे पेन देते हुए एक कागज पर *आशीर्वाद* लिखने को कहा... जब मैंने लिख दिया तो एकाएक उन्होंने अवस्थी सर की ओर देखा, अवस्थी सर के होंठों पर जीत की मुस्कुराहट थी। उन्होंने मुझे जाने को कहा मैं ज्यों ही बाहर निकली मेरे कानों में अवस्थी सर की आवाज पड़ी "देखा सर, मैं कह रहा था ये गलत नहीं लिखेगी।" वह पल मेरे लिए गर्वानुभूति का था, उस समय मुझे ज्ञात हुआ कि उन्हें इस बात का पूर्ण विश्वास था कि मैं हिन्दी लिखने में मात्राओं की गलती नहीं कर सकती। अवस्थी सर न सिर्फ मेरे अध्यापक थे बल्कि कभी-कभी विद्यालय में वो मेरे अभिभावक का दायित्व निभाते। कभी कहीं पिकनिक पर जाना हो, किसी प्रतियोगिता में भाग लेना हो या अन्य किसी प्रकार का कोई क्रिया कलाप हो तो उसकी सूचना मेरे घर पर बाद में पहुँचती निर्णय पहले ही हो चुका होता अवस्थी सर के द्वारा। उनका जो निर्णय होता था वो मेरे बाबूजी को मान्य होता था। मेरे बाबू जी का मानना था कि यदि सर ने मुझे लेकर ऐसा कोई निर्णय लिया है तो वह मेरे लिए सही होगा क्योंकि मेरी योग्यता के विषय में उन्हें बेहतर पता है और कभी भी उनके किसी निर्णय को लेकर निराशा नहीं हुई।  अवस्थी सर मेरे अध्यापक होने के साथ-साथ मेरे आदर्श भी थे वह अपने पेशे को लेकर ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ थे तथा विद्यार्थियों के हित के लिए हमेशा क्रियाशील रहते थे। दसवीं कक्षा के बाद अवस्थी सर से मुलाकात नहीं हुई पर आज भी जब भी अध्यापक की बात होती है तो मेरे मनोमस्तिष्क में अवस्थी सर की छवि ही उभरती है।
मालती मिश्रा 'मयंती'✍️

2 टिप्‍पणियां:

Thanks For Visit Here.