मंगलवार

मेरो लल्ला नन्हो सो बालक

मेरो कान्हा को माखन प्यारो
खावन को इत-उत धायो
माँ जसुदा ने मटकिन भर धरी है
कान्हा जित मन उतनो खायो
पर कान्हा तो नटखट ह्वै चले
गोपियन के मटकी फोड़न धायो
कबहुँ कन्हैया को मन उचट्यो
लै ग्वाल-बालन को गोपिन घर घुस आयो
इत-उत निरखे मौका देख्यो
लै सहार गोपन के छीकौं चढ़ जायो
तनिक के खावे अधिक फैलावे
बालन को झिक झिक माखन खवायो
सब कोऊ जाने किसने कियो है
लै शिकायत गोपिन जसुमति घर आयो
नटखट कान्हा के बहानो अनोखो
मोरी बँहियाँ छोटी छीको कैसे चढ़ पायो
मैया तेरो मुझसे सनेह अति भारी
जिससे ग्वाल-बाल मोसे चिढ़ जायो
डाँट खिलावन को तेरो मैया 
सबने मिल कर ढोंग रचायो
माखन सबने मिल खुद खायो है
मोहि अबोध को नाहक फँसायो
तूने मेरो लै माखन भर-भर धरयो है
मैं काहू घर क्यों कर जायो
माँ सकल दिवा मैं गैयन के पाछे
इत-उत जंगल-जंगल धायो
गैयन संग भाग-भाग के मैया 
हाथ-पाँव मेरो दुखन लाग्यो
ता पर ये ग्वालिन सब निष्ठुर
मोरी मैया को मोरे प्रति भड़कायो
कह कन्हैया भये अति भावुक
अँखियन में आँसू भर लायो
देख जसोदा व्याकुल ह्वै गईं
तुरतहि गोपियन को झिड़क लगायो
मेरो लल्ला नन्हो सो बालक
तुम्हरी मटकी कैसे पायो
तुम सबन को भरम भयो है
मेरो कान्हा को नाहक रुलायो
कहि कै मैया भई अति भावुक
लै कान्हा को हृदय लगायो।।
मालती मिश्रा





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