वक्त गया अहिंसा का
हिंसा ने अपनी जड़ें जमाई,
अहिंसा के मार्ग पर चलना अब
इस युग में कायरता कहलाई।
सहिष्णुता और उदारता
बस सुनने में शोभा देते हैं,
इन राहों पर चलने वाले
सदा कटघरे में खड़े होते हैं।
दृष्टि रहे सदा लक्ष्य पर
राह अपनी सुविधा अनुसार,
लक्ष्य प्राप्त करने के लिए
हर बाधा का हो सख्त उपचार।
क्यों अपनी क्षति सहन करें
क्यों न अब हथियार उठाएँ हम,
शत्रु समझता जिस भाषा को
क्यों न उसी भाषा में समझाएँ हम।
बहुत हो चुकी सौहार्द की बातें
बहुत हो चुका वार्तालाप,
दिखलाना जरूरी है अब
पापियों को उनकी औकात।
जिस जमीं पर पैर जमा करके
आतंक को पनाह देते हैं,
पैरों के नीचे की वह धरती
हम क्यों न अब खींच लेते हैं।
मालती मिश्रा
Bahut sundar
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