पलकों मे नींद न थी मन में न था चैन
जाने क्यों हृदय की बढ़ती धड़कनें
होने लगी थीं बेचैन
रजनी के नीरव संसार में उसे
धड़कनों की मधुर तान दे रही थी सुनाई
निशि दो पहर से अधिक बीतने को हो आई
चंद्रिका के अस्त हो जाने से
उपवन में अँधेरे ने अपना परचम फहराया
अम्बर ने थाल के मोती जमीं पर बिखराया
वह उसी रजनी के तम की गहराई में
आँख गड़ाए न जाने क्या देखना चाहती
कदाचित अपने-आप को तलाशती
भूत वर्तमान भविष्य कभी-कभी
छिपते तारों के रूप में चमक उठते
रसीली कल्पनाओं के हृदय घट भर उठते।
मालती मिश्रा
तलाश रचना अच्छी है मालती जी good morning
जवाब देंहटाएंतलाश रचना अच्छी है मालती जी good morning
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद श्रीमान
हटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद श्रीमान
हटाएंGood evening ma'am
जवाब देंहटाएंनमस्कार
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