गुरुवार

हम दोनो....

भूल कर सारे गमों को, क्यों न फिर मुस्काएँ हम दोनो.
न था इस अजनबी संसार में कोई अपना कहने को
तुम्हारे आने से खिल उठे गुल वीरान गुलशन केे
छोड़ कर सब रंज जहाँ के, प्रेम पुष्प खिलाएँ हम दोनो.
भूल कर......
मैं पाता था खुद को अकेला इस दुनिया के मेले में
तन्हाई डराती थी मुझे रातों को अकेले में
मिटा कर सारी तन्हाई जहाँ में खुशियाँ फैलाएँ हम दोनों
भूल कर......
मालती मिश्रा

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