रविवार

पिघलता अस्तित्व

अपनी नहीं औरों की खुशी को
अपनी खुशी बनाया मैंने,
कष्ट औरों की हरने के लिए
अपना अस्तित्व मिटाया मैंने।

जन्म से युवावस्था के सोपान तक
कर्तव्य वहन सीखने में गुजार दिया,
बाकी का सारा जीवन स्व त्याग कर
अपनों की खुशी पर वार दिया।

ज्यों शमा जलकर तिमिर हर लेता
त्यों सबके जीवन में लाने को सवेरा,
औरों का अस्तित्व बनाने को
बूँद बूँद पिघलता अस्तित्व मेरा।
मालती मिश्रा

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