जम्मू-कश्मीर के 'उरी' मे हुए आतंकी हमले में हमारे 18 जवान शहीद हो गए पूरा देश गुस्से से उबल रहा है। पूरे देश को पाकिस्तान से बदला चाहिए, उनको भी आज बदला चाहिए जो अफजल गुरू, याकूब मेमन और बुरहान वानी को शहीद बताते हैं। उन्हें भी बदला चाहिए जो यह तो कहते हैं कि आतंक का कोई धर्म नहीं होता किंतु आतंकवादियों के मृत शरीर का अंतिम संस्कार इस्लाम धर्म के अनुसार करवाने की आज भी वकालत कर रहे हैं। फिर आप ही बता दीजिए जनाब बदला कौन ले? अकेले मोदी जी?
मैं दो-तीन दिनों से बड़े ध्यान से इस हमले से जुड़ी खबरों और लोगों की प्रतिक्रियाओं का अवलोकन कर रही हूँ, शहीदों के परिवारों की दशा देख आँसू छलक पड़ते हैं। ऐसी परिस्थिति में उनके परिवार और गाँव-कस्बे के लोगों का क्रोधित होना और बदले की माँग करना बिल्कुल सही है परंतु हमने किसी भी परिवार को 56 इंच के सीने, अच्छे दिन आदि पर सवाल उठाते नही देखा न सुना। परंतु देश के जो बुद्धिजीवी हैं उनका पहला प्रश्न यहीं से शुरू होता है- "कहाँ गए अच्छे दिन, 56 इंच का सीना सिकुड़ गया" आदि।
आम जनता भावावेश में बहकर तुरंत बदले की माँग करे या यह कहे कि अब हिंदुस्तान को पाकिस्तान पर आक्रमण कर देना चाहिए तो समझ में आता है कि वह राजनीति या कूटनीति की बारीकियाँ नहीं जानती परंतु यदि समाज और देश का बुद्धिजीवी वर्ग और राजनीतिक पार्टियाँ ऐसी माँग करने लगें या ऐसा न करने के लिए प्रधानमंत्री को जिम्मेदार ठहराने लगें तो यह सिर्फ आम जनता को भड़काने वाली बात होगी, यानी यहाँ भी राजनीति ही हो रही है।
कम से कम राजनीतिक पार्टियों से तो हम यह उम्मीद करते ही हैं कि उन्हें यह पता है कि पाकिस्तान भी इस समय हिंदुस्तान को युद्ध के लिए उकसा रहा है क्योंकि वह नहीं चाहता कि मोदी जी अपने मकसद यानी पाकिस्तान का हुक्का-पानी बन्द करवाने में सफल हो सकें।
UN में होने वाली बैठक में मोदी जी पाकिस्तान के आतंकी गुटों के समर्थन का मुद्दा उठाने वाले हैं तथा पाकिस्तान को आतंकी देश घोषित किया जाए, पूरी तरह अलग-थलग कर दिया जाए इस का प्रयास करेंगे, इसीलिए वह ऐसे हमलों के द्वारा युद्ध के लिए उकसा रहा है।
भारत के पास पाकिस्तान से बदला लेने के युद्ध के अलावा और भी रास्ते हैं, यदि भारत ने अन्य बड़े देशों को विश्वास में लिए बिना युद्ध शुरू कर दिया तो पाकिस्तान परमाणु छोड़ सकता है, (जिसकी वह पहले से ही धमकी देता है) इस आशंका के चलते अन्य बड़े देश भारत पर युद्ध रोक देने का दबाव बनाएँगे और चूँकि भारत एक शरीफ और अन्तर्राष्ट्रीय कानून को मानने वाला देश है तो उसे रुकना पड़ेगा। ऐसे में क्या परिणाम हासिल होगा? परमाणु बम भारत के पास भी है पर वह पहले न इस्तेमाल करने के लिए वचनबद्ध है यह बात पाकिस्तान और पूरा विश्व जानता है।
दूसरा रास्ता भारत के पास यही है कि वह पाकिस्तान को अलग-थलग बिल्कुल अकेला कर दे फिर कार्यवाही करे, जिसकी कोशिश लगातार मोदी जी कर रहे हैं परिणाम भी सामने आ रहे हैं तथा पाकिस्तान की बौखलाहट भी नजर आ रही है।
तीसरा रास्ता है कि पाकिस्तान अधिकृत क्षेत्रों में आतंकियों के ठिकानों को ढूँढ़ कर नष्ट करना और अब यही होने वाला है।
मोदी सरकार कमजोर नहीं है इसका पता तो शत्रुओं के खेमें में मची बौखलाहट को देखकर ही लगाया जा सकता चाहे वो शत्रु देश के बाहर के हों या आतंकियों का समर्थन करने वाले भीतर के शत्रु हों।
उरी के इतने बड़े अटैक के बाद भी कश्मीर के कुछ हिस्सों में अभी भी मीडिया या सुरक्षा कर्मियों की गाड़ियों पर पत्थर फेंके जा रहे हैं तो क्या हम यह कह सकते हैं कि यदि हिंदुस्तान पाकिस्तान पर आक्रमण कर भी देता है तो देश कें अंदर के ही दुश्मन इसे कमजोर नहीं करेंगे? जो आज युद्ध न करने के लिए मोदी जी को कायर बता रहे हैं वही युद्ध शुरू होने के बाद दोष भी देंगे कि इन्होंने बिना सोचे समझे इतने जवानों को शहीद कर दिया।
नहीं भूलना चाहिए कि आज भी हमारे देश में भेड़ की खाल में भेड़िये हैं जो अभी उकसा रहे हैं बाद में पीठ में छुरा घोंपेंगे और फिर किसी नुकसान या अनहोनी के चलते राजनीति करेंगे कि इस सरकार ने देश और देशवासियों की परवाह नहीं की।
हम मानते हैं कि बदला अब आवश्यक हो गया है किंतु इस प्रकार से घेरकर कि दुश्मन चाहकर भी कुछ न कर सके, इसके लिए पहले से अधिक सशक्त भूमि (रूप रेखा,स्थिति) तैयार करनी होगी ताकि सभी देश हिंदुस्तान का साथ दें और हमारे कम से कम नुकसान के साथ शत्रु देश का अस्तित्व मिटाया जा सके। इसका परिणाम आना भी शुरू हो चुका है, अब उन्हें यह बताना आवश्यक है कि हमारे जवानों की जान इतनी सस्ती नहीं कि कोई भी ले ले।
मालती मिश्रा
मैं दो-तीन दिनों से बड़े ध्यान से इस हमले से जुड़ी खबरों और लोगों की प्रतिक्रियाओं का अवलोकन कर रही हूँ, शहीदों के परिवारों की दशा देख आँसू छलक पड़ते हैं। ऐसी परिस्थिति में उनके परिवार और गाँव-कस्बे के लोगों का क्रोधित होना और बदले की माँग करना बिल्कुल सही है परंतु हमने किसी भी परिवार को 56 इंच के सीने, अच्छे दिन आदि पर सवाल उठाते नही देखा न सुना। परंतु देश के जो बुद्धिजीवी हैं उनका पहला प्रश्न यहीं से शुरू होता है- "कहाँ गए अच्छे दिन, 56 इंच का सीना सिकुड़ गया" आदि।
आम जनता भावावेश में बहकर तुरंत बदले की माँग करे या यह कहे कि अब हिंदुस्तान को पाकिस्तान पर आक्रमण कर देना चाहिए तो समझ में आता है कि वह राजनीति या कूटनीति की बारीकियाँ नहीं जानती परंतु यदि समाज और देश का बुद्धिजीवी वर्ग और राजनीतिक पार्टियाँ ऐसी माँग करने लगें या ऐसा न करने के लिए प्रधानमंत्री को जिम्मेदार ठहराने लगें तो यह सिर्फ आम जनता को भड़काने वाली बात होगी, यानी यहाँ भी राजनीति ही हो रही है।
कम से कम राजनीतिक पार्टियों से तो हम यह उम्मीद करते ही हैं कि उन्हें यह पता है कि पाकिस्तान भी इस समय हिंदुस्तान को युद्ध के लिए उकसा रहा है क्योंकि वह नहीं चाहता कि मोदी जी अपने मकसद यानी पाकिस्तान का हुक्का-पानी बन्द करवाने में सफल हो सकें।
UN में होने वाली बैठक में मोदी जी पाकिस्तान के आतंकी गुटों के समर्थन का मुद्दा उठाने वाले हैं तथा पाकिस्तान को आतंकी देश घोषित किया जाए, पूरी तरह अलग-थलग कर दिया जाए इस का प्रयास करेंगे, इसीलिए वह ऐसे हमलों के द्वारा युद्ध के लिए उकसा रहा है।
भारत के पास पाकिस्तान से बदला लेने के युद्ध के अलावा और भी रास्ते हैं, यदि भारत ने अन्य बड़े देशों को विश्वास में लिए बिना युद्ध शुरू कर दिया तो पाकिस्तान परमाणु छोड़ सकता है, (जिसकी वह पहले से ही धमकी देता है) इस आशंका के चलते अन्य बड़े देश भारत पर युद्ध रोक देने का दबाव बनाएँगे और चूँकि भारत एक शरीफ और अन्तर्राष्ट्रीय कानून को मानने वाला देश है तो उसे रुकना पड़ेगा। ऐसे में क्या परिणाम हासिल होगा? परमाणु बम भारत के पास भी है पर वह पहले न इस्तेमाल करने के लिए वचनबद्ध है यह बात पाकिस्तान और पूरा विश्व जानता है।
दूसरा रास्ता भारत के पास यही है कि वह पाकिस्तान को अलग-थलग बिल्कुल अकेला कर दे फिर कार्यवाही करे, जिसकी कोशिश लगातार मोदी जी कर रहे हैं परिणाम भी सामने आ रहे हैं तथा पाकिस्तान की बौखलाहट भी नजर आ रही है।
तीसरा रास्ता है कि पाकिस्तान अधिकृत क्षेत्रों में आतंकियों के ठिकानों को ढूँढ़ कर नष्ट करना और अब यही होने वाला है।
मोदी सरकार कमजोर नहीं है इसका पता तो शत्रुओं के खेमें में मची बौखलाहट को देखकर ही लगाया जा सकता चाहे वो शत्रु देश के बाहर के हों या आतंकियों का समर्थन करने वाले भीतर के शत्रु हों।
उरी के इतने बड़े अटैक के बाद भी कश्मीर के कुछ हिस्सों में अभी भी मीडिया या सुरक्षा कर्मियों की गाड़ियों पर पत्थर फेंके जा रहे हैं तो क्या हम यह कह सकते हैं कि यदि हिंदुस्तान पाकिस्तान पर आक्रमण कर भी देता है तो देश कें अंदर के ही दुश्मन इसे कमजोर नहीं करेंगे? जो आज युद्ध न करने के लिए मोदी जी को कायर बता रहे हैं वही युद्ध शुरू होने के बाद दोष भी देंगे कि इन्होंने बिना सोचे समझे इतने जवानों को शहीद कर दिया।
नहीं भूलना चाहिए कि आज भी हमारे देश में भेड़ की खाल में भेड़िये हैं जो अभी उकसा रहे हैं बाद में पीठ में छुरा घोंपेंगे और फिर किसी नुकसान या अनहोनी के चलते राजनीति करेंगे कि इस सरकार ने देश और देशवासियों की परवाह नहीं की।
हम मानते हैं कि बदला अब आवश्यक हो गया है किंतु इस प्रकार से घेरकर कि दुश्मन चाहकर भी कुछ न कर सके, इसके लिए पहले से अधिक सशक्त भूमि (रूप रेखा,स्थिति) तैयार करनी होगी ताकि सभी देश हिंदुस्तान का साथ दें और हमारे कम से कम नुकसान के साथ शत्रु देश का अस्तित्व मिटाया जा सके। इसका परिणाम आना भी शुरू हो चुका है, अब उन्हें यह बताना आवश्यक है कि हमारे जवानों की जान इतनी सस्ती नहीं कि कोई भी ले ले।
मालती मिश्रा
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22-09-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2473 में दी जाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
आपकी बहुत-बहुत धन्यवाद मेरी प्रस्तुति को शामिल करने के लिए।
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंsashkt abhivaykti aur vicharniy bhi..sorry..likhne mein galti hui pahle
जवाब देंहटाएंपारुल जी बहुत-बहुत आभार, आपकी प्रतिक्रिया से अभिव्यक्ति को बल मिला।, धन्यवाद।
हटाएंबहुत बढ़िया। संतुलित आकलन...
जवाब देंहटाएंरश्मि शर्मा जी शुक्रिया अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराने के लिए, ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
हटाएंbhaut mast ji
जवाब देंहटाएंप्रदीप मौर्य जी धन्यवाद
हटाएंप्रदीप मौर्य जी धन्यवाद
हटाएंबिलकुल सटीक आकलन.
जवाब देंहटाएंसहीं कहाँ आपने
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