स्मृतियों का खजाना,
सदा मेरे पास होता है।
घूम आती हूँ उन गलियों में,
जब भी मन उदास होता है।
माँ की वो पुरानी साड़ी का पल्लू,
जब मेरे हाथ होता है।
माँ के ममता से भीगे आँचल का,
स्नेहिल अहसास होता है।
बचपन का दामन छूट गया,
पर स्मृतियों ने साथ निभाया है।
जब भी अकेली पाती हूँ खुद को,
स्मृतियों ने मन बहलाया है।
बचपन के सब सखा सहेली,
स्मृतियों में आ जाते हैं।
घायल मन के जज्बातों को,
स्नेहसिक्त कर जाते हैं।
मालती मिश्रा 'मयंती'✍️
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31.12.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
आ० दिलबाग सिंह जी हार्दिक आभार।
हटाएंजब भी अकेली पाती हूँ खुद को,
जवाब देंहटाएंस्मृतियों ने मन बहलाया है।
बचपन के सब सखा सहेली,
स्मृतियों में आ जाते हैं।
घायल मन के जज्बातों को,
स्नेहसिक्त कर जाते हैं।
बहुत ही सुंदर सृजन मालती जी ,आपको और आपके समस्त परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
आपके स्नेहिल टिप्पणी के लिए हृदयतल से आभार आदरणीया।
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन
हार्दिक आभार आदरणीय
हटाएंसुन्दर सृजन - - नूतन वर्ष की असीम शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय, नववर्ष आपके लिए मंगलमम हो।
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