रविवार

आरक्षण विकास में बाधा

 जब परिवार मे कोई एक बच्चा अन्य बच्चों की तुलना में शारीरिक या मानसिक रूप से कमजोर या असक्षम होता है तो यह आवश्यक हो जाता है कि माता-पिता अपनी उस संतान का अन्य संतानों की तुलना में अधिक ख्याल रखें व उसकी विशेष देख-रेख करें ताकि वह बच्चा भी परिवार के अन्य बच्चों की तरह अपना जीवन निर्वाह कर सके | ऐसा करना तो माता-पिता का धर्म है जिसे वो बिना किसी दबाव स्वेच्छा से करते हैं, किंतु अगर परिवार के अन्य बच्चे इसका गलत अर्थ निकाल कर स्वयं के लिए भी उसी प्रकार की विशेष सुरक्षा, विशेष संरक्षण की मांग करने लगे तो उस परिवार का क्या भविष्य होगा ? पिता की कमा-कमाकर कमर टूट जाएगी और घर में सदैव कंगाली का राज होगा क्योंकि तब ईर्ष्यावश सक्षम सदस्य भी नाकारा होकर बैठा होगा और पूरे परिवार का अकेला खेवन हार अकेला पिता ही होगा, क्या ऐसा घर कभी-भी संपन्न हो सकता है? सवाल ही नही उठता....एक कहावत है- बैठे मिले खाने को तो कौन जाए कमाने को,  और जब कमाएँगे ही नही तो विकास कैसा??? इस समय बिल्कुल ऐसी ही स्थिति हमारे देश की है......
चारों ओर आरक्षण की आग धधक रही है....
हमारा समाज आज के परिप्रेक्ष्य में इतना पंगु हो चुका है कि उसे सही-गलत में या तो चुनाव करना नहीं आता या फिर वह स्वार्थ में इतना अंधा हो चुका है कि अपने अतिरिक्त कुछ और सोच ही नही पाता | आरक्षण अपनी अकर्मण्यता को पोषित करने का भी एक साधन है....आज व्यक्ति बिना परिश्रम किए सब कुछ पा लेना चाहता है...उसे कर्म से नही सिर्फ सकारात्मक परिणाम से मतलब है, क्यों नही व्यक्ति कर्मठता को  पोषित करता?? जितनी आग लोगों के भीतर आरक्षण पाने की धधकती है उतनी ही आग यदि परिश्रम की धधके तो हमारा देश अन्य विकसित देशों से किसी भी दृष्टि से पीछे न होगा परंतु ऐसा इसलिए संभव नहीं हो पा रहा है क्योंकि इस देश के द्वारा पोषित इसी के कपूतों ने ही विकास के मार्ग को अवरुद्ध करने के जाल बिछा रखे हैं और अपने रुतबे अपने ओहदों का दुरुपयोग करते हुए सिर्फ अपने स्वार्थ साधना हेतु आम जनता को भड़काते हैं और स्वयं तमाशबीन बनकर देश को आरक्षण के आग में जलते हुए देखते हैं | ऐसा करके ये प्रत्यक्ष रूप से कुछ हासिल तो नही कर पाते किंतु अपने उस विरोधी की छवि पर एक काला धब्बा जरूर लगा देते हैं जो इनके विपरीत देश को विकास की ओर ले जाने के लिए प्रयासरत होता है....जो दिन-रात परिश्रम करके देश को विकास की ओर अग्रसर करता है......ये आगजनी और दंगे-फसाद के द्वारा देश को फिर से वापस लाकर वहीं खड़ा कर देते हैं जहाँ से उसके विकास की यात्रा का आरंभ हुआ था |

आज क्या सचमुच हमारे देश में आरक्षण की आवश्कता है?? और यदि है तो जिन्हें है उन्हें इसका लाभ कहाँ मिल पाता है..
ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ आज भी गरीबी ने अपना दामन पसारा हुआ है, जहाँ आज भी लोग अशिक्षित और बेरोजगार हैं वो तो आरक्षण के विषय में पूरी तरह से जागरूक भी नहीं हैं, आरक्षण का लाभ उठाना तो दूर की बात है|आज आरक्षण का लाभ भी वही लोग उठा पाते हैं जो शिक्षित और संपन्न हैं, जिसका परिणाम ये होता है कि अमीर और अमीर होता जाता है और गरीब और अधिक गरीब होता जाता है....कुल मिलाकर इस आरक्षण से उस समस्या का समाधान नही हुआ जिसके लिए इसका आरंभ हुआ था|तो फिर आवश्यकता क्या है इसकी???
आरक्षण समाज व देश के हित में होना चाहिए, उनको विनाश के गर्त में ले जाने के लिए नही परंतु आज इस "आरक्षण" नाम का ही दुरुपयोग होने लगा है, जिसका मन समाज का नुकसान करने या पब्लिसिटी पाने का होता है वही आरक्षण का मुद्दा उठा देता है....या फिर राजनीति के क्षेत्र में जो भी पार्टी दूसरी पार्टी या सरकार की छवि खराब करना चाहती है वो कुछ असामाजिक किस्म के तत्वों को मोहरा बनाकर आरक्षण को हथियार बनाकर समाज में असंतुलन पैदा कर देते हैं, फलस्वरूप होता क्या है राज्य व देश का विकास फिर से दशकों पीछे चला जाता है|

अभी हाल ही में हुए गुजरात दंगे को ही ले लें, इस दंगे ने कितने घरों के दीये बुझा दिए, कर्फ्यू लगा, बंद हुआ इस गुजरात बंद के दौरान अनाज,डायमंड और इलेक्ट्रॉनिक का बाजार पूर्ण रूप से बंद रहा एक समाचार के अनुसार रोज लगभग दस हजार करोड़ का नुकसान हुआ, केमिकल इंडस्ट्री में लगभग एक हजार करोड़, टेक्सटाइल में लगभग दो हजार करोड़ का नुकसान रोजाना हुआ इसके अतिरिक्त एएसटीएस में लगभग ४.१८ करोड़ तथा बीआरटीएस को लगभग ३.६६ करोड़ का नुकसान हुआ| अहमदाबाद में ११.४३  करोड़ का नुकसान हुआ २५ से ज्यादा सरकारी कार्यालय, तीन मंजिला मॉल, फायर ब्रिगेड का दफ्तर, ए.टी.एम. इन सबको आग के हवाले कर दिया गया......किसको फायदा हुआ इस दंगा स्वरूपी आंदोलन से ?
क्या इससे ऐसा नही प्रतीत होता कि यह आंदोलन सिर्फ सरकार गिराने या सरकार की छवि खराब करने के लिए किया गया, आंदोलन का ऐसा स्वरूप तो कतई नही होता....जहाँ पर किसी की मदद हेतु सामने खड़ी भीड़ में से एक-दो व्यक्ति भी निकल कर नहीं आते, क्योंकि उन्हे अपना समय किसी की जिंदगी से ज्यादा कीमती लगता है.......वहाँ लाखों की संख्या में भीड़ यूँ ही तो नहीं एकत्र हो सकती है............
निःसंदेह उस भीड़ को एकत्र करने हेतु इतना पैसा खर्च किया गया होगा जो उनके समय की कीमत से कहीं अधिक होगा...........और इतना पैसा खर्च करना आंदोलन कारी मुखिया के अकेले के बस की बात तो नहीं फिर क्यों न यही समझा जाये कि ये आंदेलनकारी किसी बड़ी बाजी का एक मोहरा मात्र है, नहीं तो जो गुजरात २००२ से चैन-ओ-अमन से सांसें ले रहा था, जिसकी गर्विता के गुण पूरे भारत में गाए जाते थे, उसी गुजरात को आंदोलन की आग में जलाना इतना आसान न होता|
समाज का संपन्न वर्ग यदि आरक्षण पाने हेतु स्वयं को ओ.बी.सी. का दर्जा पाने की माँग करने लगे तो बेचारे सचमुच के ओबीसी क्या करेंगे....
आज गुजरात के सम्पन्न पटेल वर्ग को आरक्षण चाहिए, जाट वर्ग जो कि संपन्न वर्ग ही है वो पहले से ही आरक्षण की लाइन में खड़े हैं........ जो आरक्षण पाने के लिए रेलों की पटरियाँ उखाड़ कर तो अपनी ताकत का प्रदर्शन कर सकते हैं परंतु जहाँ परिश्रम करके रोजगार हासिल करने की बात आती है तो उसके लिए आरक्षण चाहिए.......कल को राजपूत वर्ग और फिर ब्राह्मण वर्ग को भी आरक्षण चाहिए होगा........और इसे माँगने का तरीका.......हिंसक आंदोलन.......फिर देश को इस आरक्षण रूपी दानव से क्या प्राप्त हुआ ? सिर्फ अकर्मण्य कर्मचारी और आंदोलन के रूप में दंगे-फसाद........बस यह आरक्षण रूपी जहर समाज को जहरीला बना रहा है, विकास में बाधा है यह आरक्षण........इसके कारण अयोग्यता को आरक्षण मिलता है और योग्यता को बेरोजगारी.........
कॉलेजों में प्रवेश हेतु १०℅ की छूट मिलती है आरक्षित वर्ग को.......उस समय उस बच्चे के दिल पर क्या बीतती होगी जो दिन-रात परिश्रम करके योग्यता हासिल तो कर लेता है परंतु उसका स्थान वह बच्चा ले जाता है जो योग्यता मे उससे १०℅ पीछे होता है परंतु आरक्षण की बैसाखी उसका सहारा बन जाती है.....क्या इस प्रकार हम देश को विकसित देश बना पाएँगे?  योग्यता ही विकास का आधार होती है और आरक्षण देश को अयोग्यता प्रदान कर रहा है.......शिक्षा का क्षेत्र हो या रोजगार का आरक्षण हर जगह रुकावट बनता है....तो क्यों नहीं आरक्षण को ही समाप्त कर दिया जाए........
यदि आरक्षण देना आवश्यक ही है तो समाज के उस वर्ग को मिलना चाहिए जो आर्थिक रूप से कमजोर है या फिर देश के उन सपूतों के परिवार को जो देश बचाते-बचाते शहीद हो गए..इसके अलावा मैं नही मानती कि आरक्षण का किसी अन्य रूप मे कोई फायदा है.....देश के विकास का आधार योग्यता होनी चाहिए न कि जातिगत आरक्षण......जातिगत आरक्षण व्यक्ति में आगे बढ़ने की भावना का विकास नहीं करती बल्कि बिना परिश्रम दूसरों को पीछे ढकेलने की भावना को विकसित करती है, यह योग्यता का मार्ग अवरुद्ध करके अयोग्यता को जबरन आगे ढकेलने का कार्य करती है.....परिणाम स्वरूप परिश्रम व बुद्धिमत्ता कुंठित होती है, उसका अपमान होता है और ऐसी स्थिति में एक योग्य प्रतिभागी भी यही सोचने पर विवश हो जाता है कि काश वह भी किसी एस.सी. ,एस.टी. या ओ.बी.सी. के घर पैदा हुआ होता तो आज उसकी योग्यता को आरक्षण से न हारना पड़ता....
आरक्षण सिर्फ व्यक्ति का ही नही देश के विकास को भी अवरुद्ध कर रहा है, जिस देश के कार्यालयों में, मिनिस्ट्री में, या देश को आर्थिक आधार देने वाले विभागों में योग्यता की बजाय अयोग्यता का वर्चस्व होगा वहाँ कैसा विकास ????

ऐसी परिस्थति में सरकार को चाहिए कि जातिगत आरक्षण को पूर्णतः समाप्त कर दिया जाना चाहिए और इसका आधार पूर्ण रूप से आर्थिक पिछड़ापन और सैनिकों की शहादत होना चाहिए........
मैं जानती हूँ वर्तमान परिस्थतियों में सरकार विरोधी गतिविधियाँ जिस प्रकार एकत्र होकर अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए प्रयासरत हैं ऐसी परिस्थिति में यह कदम उठाना सरकार के लिए सहज नही है किंतु कहीं न कहीं से शुरुआत आवश्यक है, यदि देश का विकास चाहिए तो देश में योग्यता को बढ़ावा देना होगा न कि आरक्षण को...........

जातिगत आरक्षण आज हमारे समाज और देश के लिए अभिशाप बन चुका है इसका समाप्त होना आवश्यक है......

साभार
मालती मिश्रा

5 टिप्‍पणियां:

  1. I totally support the concept of abolition of caste based reservation. Our central government must think about it. And now after the savage protest in Gujarat for reservation it is clear that people are no more concerned for the development of our country.

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  2. No doubt this reservation policy has become a burning issue. I do not feel good with this system as the purpose is already solved. It was introduce for the upliftment of the weaker section of Indian society. Today it has become a tradition and blind concept. Thanks to Mrs Malti Mishra to highlight such an issue which has almost become a cancer for the society.

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  3. No doubt this reservation policy has become a burning issue. I do not feel good with this system as the purpose is already solved. It was introduce for the upliftment of the weaker section of Indian society. Today it has become a tradition and blind concept. Thanks to Mrs Malti Mishra to highlight such an issue which has almost become a cancer for the society.

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