जरूरी नहीं कि दर्द उतना ही हो जितना दिखाई देता है,
नहीं जरूरी कि सत्य उतना ही हो जितना सुनाई देता है।
जरूरी नहीं कि हर व्यथा को हम अश्कों से कह जाएँ,
नहीं जरूरी कि दर्द उतने ही हैं जो चुपके से अश्रु में बह जाएँ।
दिल में रहने वाले ही जब अपना बन कर छलते हों,
संभव है कुछ अनकही आहें उर अंतस में पलते हों।
अधरों पर मुस्कान सजाए हरपल जो खुश दिखते हैं,
हो सकता है उनके भीतर कुछ अनकहे जख्म हर पल चुभते रिसते हैं।
जरूरी नहीं कि हर मुस्कान के पीछे खुशियों की फुलवारी हो,
गुलाब तभी मुस्काता है जब कंटक से उसकी यारी हो।
मालती मिश्रा 'मयंती'
चित्र साभार गूगल से
सुंदर,सकारात्मक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २८ जुलाई २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
श्वेता जी बहुत-बहुत धन्यवाद रचना को शामिल करने और सूचित करने के लिए।
हटाएंवाह! बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद शुभा जी।
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