सोमवार

अरु.. भाग -५

 


गतांक से आगे

दूर कहीं से कुत्ते के रोने की आवाज अमावस्या की स्याह रात की नीरवता को भंग कर रही थी। सौम्या को ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे झिंझोड़कर जगा दिया हो। उसकी नजर खिड़की से बाहर कालिमा की चादर ओढ़े आसमान पर गई। पूरा आसमां उसके खाली जीवन की तरह सूना था, बहुत दूर कहीं एक अकेला धुंधला सा तारा अपने अस्तित्व की जंग लड़ता हुआ हारने की कगार पर बेजान-सा होता दिखाई पड़ रहा था। तभी उसके कानों में एक मधुर संगीत की धुन सुनाई पड़ी। वह ध्यान से सुनने लगी कि यह आवाज कहाँ से आ रही थी, शायद हॉल से!! बेसुध सी उठकर उसने शॉल ओढ़ी और पैरों में चप्पल डालते हुए कमरे से निकलकर आवाज की दिशा में बढ़ने लगी। अगले कुछ ही क्षणों में वह स्टोर-रूम के बाहर खड़ी थी। उसने दरवाजा खोला तो देखकर सन्न रह गई, वही बॉक्स जो उससे गिर गया था और सारा सामान बिखर गया था, इस समय वहीं फर्श पर खुला रखा था और उसमें से सामान नीचे बिखरे हुए नहीं लग रहे थे बल्कि ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने निकालकर करीने से रखे हैं। 'लेकिन ये कैसे हो सकता है..उस दिन तो जब मैं यहाँ इसे रखने आई थी तो यह पहले से ही सहेजकर अपनी जगह रखा हुआ था।' सोचती हुई वह ये देखने लगी कि ये संगीत की धुन कहाँ से आ रही है??

तभी उसकी नज़र वहीं पास में रखे एक जूलरी-बॉक्स पर पड़ी, जो खुला हुआ था और उसमें एक लड़के और लड़की का युगल नृत्य की मुद्रा में घूम रहा था, यह संगीत की मीठी सी धुन उसी में से आ रही थी। सौम्या वहीं बैठ गई और उन सामानों को एक-एक करके देखने लगी.. उसमें सुंदर-सी छोटी-सी डायरी थी जिसके कवर पर गुलाब की पंखुड़ियाँ बनी थीं, उसे खोलते ही उसमें अंग्रेजी में लिखा था...I 

"L❤️ve U Janu...

The WHOLE world is nothing Without u.

So Happy Valentine's Day...

For just My Aru..."

उसके साथ ही दो और डायरी थीं लेकिन उन पर उस डायरी की भाँति प्रेम संदेश नहीं था। कुछ ग्रीटिंग कार्ड्स थे, कुछ सुंदर-सुंदर फ्रैंडशिप बैंड भी थे। एक लाल रंग का पेन होल्डर जिसे छोटे से खरगोश ने पकड़ रखा था। कुछ नकली गुलाब के फूल थे। इन सब सामानों के साथ एक बड़ा-सा ग्रीटिंग कार्ड था। सौम्या ने उसे लिफाफे में से निकाला, यह बहुत सुंदर-सा कार्ड था, इसमें भिन्न-भिन्न आकार के छोटे-छोटे से खाँचे बने हुए थे जिनपर एक कवर पड़ा हुआ था जिस पर अंग्रेजी के अक्षर अंकित थे। उस कवर को उठाकर देखते तो उसी अक्षर से कोई न कोई प्यार भरा संदेश लिखा था।

सौम्या बड़े ही ध्यान से एक-एक सामान देख रही थी। वह ये भी सोचना भूल गई कि यह बॉक्स इस वक्त यहाँ कैसे! अचानक उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसका हाथ पकड़कर उसे उठाया और एक ओर लेकर चल दिया। वह निर्विरोध उसके साथ चल दी। अब वह स्टडी रूम में थी। कमरे के बीचों-बीच रखें मेज के एक ओर रखी कुर्सी पर वह चेतना शून्य सी बैठ गई। 

अचानक बत्ती चली गई वह हड़बड़ाकर खड़ी हो गई, ऐसा लगा उसकी चेतना लौट आई। कमरे में घुप्प अँधेरा था, अपनी आँखों के सामने रखकर देखने पर भी अपना ही हाथ दिखाई न दे ऐसा अँधेरा था। धीरे-धीरे कमरे में बेहद मद्धिम सा प्रकाश हुआ और यह प्रकाश धीरे-धीरे बढ़ते-बढ़ते एक जीरो वॉट के बल्ब की रोशनी से भी कम रोशनी पर रुक गया। सौम्या ने अपने अब तक के जीवन में कभी भी रोशनी ऐसे बढ़ते नहीं देखी थी। अचानक कमरे में धुआँ सा भरने लगा। वह इधर-उधर देखने लगी लेकिन उसे समझ नहीं आया कि धुआँ कहाँ से आ रहा है। दाँत बजा देने वाली सर्दी में भी सौम्या पसीने से भीग गई। 

"बैठ जाओ!" एक सरसराती सी बेहद सर्द आवाज कमरे में गूँजी। वह डर के मारे यंत्रचालित सी वहीं बैठ गई। उसे ऐसा लगा जैसे उसके सामने मेज के दूसरी ओर कोई स्त्री बैठी है परंतु वह साफ दिखाई नहीं पड़ रही थी। उसका चेहरा और शरीर कुछ भी स्पष्ट नहीं हो रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह धुएँ की बनी हुई है, धुएँ के हवा में इधर-उधर तैरने के साथ ही उसकी आकृति भी तैरती हुई प्रतीत हो रही थी। 

अकस्मात् वह रोने लगी, उसकी सिसकियाँ कमरे में गूँजने लगीं, सौम्या ने देखा कि उस धुएँ की आकृति के अस्पष्ट चेहरे से आँसुओं के स्थान पर एक आँख से खून और दूसरी आँख से चिंगारियाँ निकल रही थीं। सौम्या को अपना शरीर पत्ते की मानिंद काँपता हुआ महसूस हुआ। उसने अपने दोनों बाजुओं को जोर से भींच कर पकड़ लिया।

अचानक रोने की आवाज आनी बंद हो गई और एक सरसराती-सी आवाज मानों कानों के पास से सरगोशी करती निकल गई, "मेरे बारे में जानना चाहती है?"

"त्..तुम कौन हो? क..क्या चाहती हो म्मुझसे?" 

सौम्या ने बड़ी मुश्किल से साहस बटोर कर पूछा।

"मैं तुझे पहले ही बता चुकी हूँ कि ये घर मेरा है, मैं तो तुझे कब का निकालकर फेंक चुकी होती लेकिन यहाँ आने के बाद दूसरे ही दिन तुम दोनों पति-पत्नी की बहस सुनकर मुझे पता चल गया कि जिस आग में मैं जली हूँ, उसी आग में तू भी जल रही है। न सिर्फ मेरा रोग बल्कि विश्वासघात से उत्पन्न मेरी व्यथा को भी तूने भी भोगा है। तू भी तड़प रही है मेरी तरह, इसीलिए मैंने तुझे यहाँ रहने दिया लेकिन तू तो मेरे ही घर में ऐसे जताती है जैसे मैं यहाँ अवांछित हूँ। तू भी मेरी उपेक्षा करती है, मुझसे घृणा करती है।" कहते हुए वह आकृति फिर रोने लगी। 


"मैं तुमसे भला क्यों घृणा करूँगी? मैं तो बस जानना चाहती हूँ कि तुम कौन हो, रोती क्यों हो और मुझसे क्या चाहती हो, क्या मैं तुम्हारे लिए कुछ कर सकती हूँ?" 

न जाने सौम्या में इतना साहस कैसे आया कि उसने एक ही साँस में पूछ लिया। एकाएक कमरे में फिर से घुप्प अँधेरा छा गया, अजीब सी महक कमरे में भरने लगी, उस गहरे अंधेरे में उसे अपने सामने अँधेरे से भी गहरे काले रंग की आकृति दिखाई देने लगी। सौम्या को लगा जैसे उस आकृति का सर्द हाथ उसके हाथ के ऊपर है, वह अपने आप को हवा में तैरती हुई महसूस कर रही थी, मस्तिष्क बोझिल हो चला था। आँखों के समझ सिवाय अँधेरे और दूर-दूर तक खालीपन के अहसास के सिवा कुछ नहीं था, बस उसे ऐसा लग रहा था कि उसके कानों में कुछ आवाजें आ रही हैं और दिमाग में कुछ घटनाएँ चलचित्र की भाँति चल रही हैं, हाथ पता नहीं क्या कर रहा था पर कागज पर पेन के चलने की आवाज आ रही थी। धीरे-धीरे सब कुछ शून्य में विलीन होने लगा, कुछ शेष था तो बस कागज पर पेन चलने की आवाज और सिसकियाँ।

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सुबह के छः बज चुके थे, अलंकृता आँखें मलती हुई अपने कमरे से बाहर आई तो उसे यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ कि आज पूरा घर अँधेरे में डूबा हुआ था। उसे आश्चर्य हुआ कि मम्मी तो इतनी देर तक कभी नहीं सोतीं। उसने कॉरीडोर की बत्ती जलाई और नीचे हॉल में आकर वहाँ की भी बत्ती जला दी। अब वह सौम्या को खोजने लगी। पर सौम्या न तो अपने कमरे में थी और न ही कहीं और दिखाई दे रही थी। घबराकर उसने अस्मि को भी जगा दिया। मम्मी को कहीं न पाकर वह रोने लगी। रोना तो अलंकृता को भी आ रहा था पर वह रोएगी तो अस्मि को कैसे संभालेगी? स्टोर रूम और स्टडी रूम बंद होने के कारण अभी तक उसने वहाँ नहीं देखा था। अब उसके पास ढूँढ़ने के लिए कोई जगह नहीं बची तो वह स्टडी रूम की ओर भागी।

दरवाजे में बाहर से कुंडी नहीं लगी थी, उसने धक्का देकर दरवाजा खोला और चीख पड़ी..

मम्मी!!!!!

क्रमशः 
चित्र- साभार गूगल से
मालती मिश्रा 'मयंती'

2 टिप्‍पणियां:

  1. बेनामी25 जुलाई, 2023

    कथा लेखन में आपकी लेखनी समर्थ से भी समर्थ है, जब भी पढ़ती हूँ डूब जाती हूँ ♥️ - गीतांजलि

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    1. आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी मेरी लेखनी की ऊर्जा वृद्धि में सहायक है सखी। सस्नेह आभार

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