खाली बेंच सी जिंदगी
उस पुराने से दिखते मकान के बाहर
पेड़ों के झुरमुटों के बीच
कुछ छोटे-बड़े पेड़ों के नीचे
रखे उस खाली बेंच सी है जिंदगी
आँधी-तूफानों से घिरी हुई
धूप में तपती और वर्षा में सिहरती
सर्दियों की ठिठुरन में
सर्द पड़ी हुई
हवाओं की लाई गर्द तन पर लपेटे
पतझड़ के पत्तों
से ढकी-सी जिंदगी
अंबर के साए में घर के आँचल से
अनछुई
धरती में जिद के पैर जमाए
बोझिल-सी
परित्यक्त जिंदगी
इस खाली बेंच सी जिंदगी।
मालती मिश्रा 'मयंती'✍️
Nice composition
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद
हटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंइस उत्साहवर्धन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय
हटाएं