मन को भाती हृदय समाती
अति सुंदर गुनगुनाती सी
बुझे दिलों में दीप जलाती
कण-कण सौरभ बिखराती सी
आशा की नई किरण बन आती
चहुँओर खुशियाँ बिखराती सी
हर मन के संताप मिटाती
बन बदली प्रेम बरसाती सी
माँ ममता के आँचल में छिपाती
बहन बन लाड़ लड़ाती सी
बन भार्या हमकदम बन जाती
मित्र सम राह दिखाती सी
नारी का है रूप अपरिमित
अनुपम छवि दर्शाती सी
प्रेम-त्याग सौहार्द समर्पण
हर रूप सौरभ बिखराती सी
संपूर्ण वर्ष में एक दिवस ही पाती
फिर भी नही खुशी समाती सी
हर पल हर दिन हर माह की सेवा
बस एक दिन फलीभूत हो पाती सी
महिला दिवस के पाकर बधाइयाँ
मन ही मन फिरे मुसकाती सी
जान-समझ कर मूरख बनती
फिर भी नही कुछ भी जताती सी।
मालती मिश्रा
दिलबाग विर्क जी आभार।
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