सत्य सूर्य की प्रखर किरण है
अपना आलोक दिखाएगा
परत-दर-परत एकत्र तिमिर को
मोम सदृश पिघलाएगा।
तिमिर की कालिमा में छिपकर
निशिचर नित शक्ति बढ़ाएगा
छँटने लगी गहनता जो इसकी
वह हाहाकार मचाएगा।
उलूक और चमगादड़ सम प्राणी
अंधकार में ही पंख फैलाएगा
करे प्रहार कोई क्षेत्र में उसके
कैसे वह सहन कर पाएगा।
सत्य की किरण से लड़ने को
असत्य अपनी भीड़ बढ़ाएगा
अपना आधिपत्य जमाने को
चहुँओर वह भ्रम फैलाएगा।
जाना-परखा कमजोर नब्ज़ को
फिर पकड़ उसे ही दबाएगा,
लोगों में छिपी दुर्बलताओं को
अपनी शक्ति बनाएगा।
सत्य सूर्य की प्रखर किरण है
अपना आलोक दिखाएगा
परत-दर-परत एकत्र तिमिर को
मोम सदृश पिघलाएगा।
मालती मिश्रा
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